डा . तुकबंद की तबाहियां
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निकला मेरा जनाजा उनके इश्क की छाँव में
फूल बिछाए हमने बिखेरे कांटे उन्होंने राह में
भूल गए वो कि जनाजा तो काँधे पे जाएगा
गुजरेंगी इस राह से कोई बहुत याद आएगा
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आशिक और शायरों की है अलग पहचान
जानते हैं सब फिर भी बनते हैं अनजान
आशिकी में आशिक बस करते हैं आह आह
पढ़े गजल शायर लोग करते हैं वाह वाह
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रेशमा और शेरा बैठे थे नदी किनारे
तभी आ गए दोनों के ससुर बिचारे
देख कर उन्हें दोनों सकपका गए
जान हश्र दिन में तारे नजर आ गए
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अनारकली को जंजीरों का गम न था
सलीम को नीचे तहखानो का इल्म न था
बाप था उसका बहुत ही होशियार
सलीम जैसा शेर हाय हो गया शिकार
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भेज दो शेर अपने ख्वाबों के मंजर से
चुन चुन के तेरे नाम इक गजल लिख दूं
दिल जिगर और जान तेरे नाम कर चुके
तमन्ना है चुन सितारे एक अदब लिख दूं
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प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा ११-१-२०१३
Comment
आदरणीय अशोक जी
सादर
आभार प्रोत्साहन हेतु
आदरणीय प्रदीपजी सादर, सुन्दर तुकबन्दियाँ. मजा आगया. बधाई.
आभार, आदरणीय प्रदीपजी.
आदरणीय गुरुदेव सौरभ जी
सादर अभिवादन
सर जी आशिकी एक दिन जरूर रंग लाएगी
कबीरा से डा . तुकबंद तक पी.एच .डी . कराएगी
आपको सुख मिला . आभार
इस झोला छाप तुक्काड़ को मेरा नमन.. . हम जैसे रोगियों के लिए जीवन-रसना इसी पानी की धार से आती है. अरे भाई, अपन भी आशिक भये. जय होऽऽऽ
आदरणीय बाग़ी जी, सादर
झोला छाप डाक्टरों से भी भारत में मरीज ठीक होते हैं.सभी मरते नही.
आपके हस्ताक्षर हुए, आभार
आदरणीय अनन्त जी
सादर
धन्यवाद
//आशिक और शायरों की है अलग पहचान
जानते हैं सब फिर भी बनते हैं अनजान
आशिकी में आशिक बस करते हैं आह आह
पढ़े गजल शायर लोग करते हैं वाह वाह//
क्या बात है आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी, तुकबंदी में भी कमाल की बात कही है, बधाई स्वीकार करें |
आदरणीय कुशवाहा सर दर्द और हंसी का सुन्दर चित्रण, मजेदार रचना है सर हार्दिक बधाई.
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