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अजीब विडम्बना देखो ,
शिष्टाचार विलुप्त हो गया !
बेटा! बेटा नहीं रहा ,
बाप हो गया !
लज्जा आती है इन्हे ,
प्रणाम ,.नमस्कार करने में !
थोडा भी संकोच नहीं ,
महिला मित्र से गले मिलने में !!
मै सोच रहा हूँ ,
क्या होगा आनेवाला कल !
मेरे उदार संस्कारों का ,
कैसा है ये फल !!
प्रायः सुनता रहता हूँ ,
हाय ,बाय और हेल्लो ,
कितना स्नेह छुपा है इनमे ,
प्रणाम नमस्कार तो बोलो !!
प्रयत्न किया समझाने का ,
पश्चात संकृति है अभिशाप!
प्रायः डांट दिया जाता ,
अपना काम करिए चुपचाप !!
राम शिरोमणि पाठक "दीपक "
अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 14, 2013 at 4:59pm

आज की पीढ़ी में यदा कदा ऐसी भावनाएं पढने सुनने को मिलती हैं तो दिल खुश हो जाते है ये भावनाएं अच्छे संस्कारों के ही परिणाम हैं जिसकी आज देश के युवा वर्ग को बहुत जरूरत है पहली बार आपके भाव पढ़े बहुत बहुत बधाई एवं शुभ कामनाएं


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 14, 2013 at 4:22pm

कथ्य बढ़िया है, शिल्प और भी बढ़िया हो सकता है, प्रयास करते रहे, सुधार की प्रक्रिया अनवरत चलती है । बधाई इस अभिव्यक्ति पर ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 14, 2013 at 12:36pm

जो जैसा देखा महसूस किया उसे वैसे ही निर्विकार रूप में प्रस्तुत करने के लिए बधाई राम शिरोमणि जी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 14, 2013 at 12:00am

राम शिरोमणि जी, आपकी प्रस्तुत रचना मेरी दृष्टि में आयी आपकी कोई पहली रचना है. इसकी सर्वप्रथम बधाई.

कविता-कर्म और सपाट तथ्य-प्रस्तुतिकरण में अंतर होता है. आप निरंतरता के साथ प्रयासरत रहें.

शुभेच्छाएँ

Comment by ram shiromani pathak on January 13, 2013 at 4:18pm

मैंने देखा यहाँ पर आप जैसे कितने ही अच्छे कवि है !
थोड़ा बहुत लिख लेता हूँ मै भी ,और आप लोगों का सानिध्य रहेगा तो बहोत कुछ सीखने को मिलेगा !!कोई भी गलती हो तो कृपया अपना अमूल्य सुझाव दीजियेगा !!धन्यवाद्

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 13, 2013 at 4:09pm

आदरणीय पाठक जी सादर 

बिलकुल यही हो रहा है. 

बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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