कोई हद नहीं थी ,
उसके ऐतबार की !
एक अंतहीन अंधविश्वास ,
शायद !अतिशयोक्ति थी प्यार की !!
कोई प्रतिरोध नहीं किया ,
सोचा न क्या होगा अंजाम ,
घुटन भरी ज़िन्दगी ,
जीती रही गुमनाम !!
जब कोई अपना ही ,
दिन रात प्रताड़ित करता है !
एक नहीं सैकड़ों बार ,
जी जी कर फिर वो मरता है !
मानसिक बीमार कर दिया इतना ,
इसलिए उसने आत्मदाह किया ,
घुटन भरी ज़िन्दगी ने ,
ऐसा करने पर मजबूर किया !!
इतना भयंकर निर्णय ,
कोई ऐसे ही नहीं लेता है !
गम के समंदर से घिर कोई ,
ज़ब अन्दर ही घुटकर रोता है !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक /अप्रकाशित
Comment
ऐसे दुर्भागी लोगों की मानसिक अवस्था को आपने कितने सुंदर ढंग से अपनी रचना में ढाला है.
''जब कोई अपना ही ,
दिन रात प्रताड़ित करता है !
एक नहीं सैकड़ों बार ,
जी जी कर फिर वो मरता है !''
मार्मिक अभिव्यक्ति .......
अपने विशेष ताने - बाने के कारण ये रचना विशेष हो गयी है.........बधाई स्वीकारें भाई !!!
जब कोई अपना ही ,
दिन रात प्रताड़ित करता है !
एक नहीं सैकड़ों बार ,
जी जी कर फिर वो मरता है !
बहुत खूब कहा
बधाई, आदरणीय राम जी,
सादर
बेइंतहा प्यार, अटूट विश्वास , फिर छला जाना, मानसिक यंत्रणा का दौर....और आत्महत्या... इस भाव तूफ़ान को सशक्तता से अभिव्यक्त किया गया है राम शिरोमणि जी .
इस रचना हेतु हार्दिक बधाई
आत्महत्या जैसा दुस्साहसी निर्णय कोई वैसे ही नहीं लेता जब जिन्दगी से विश्वास उठ् जाए तब कोई यह कदम उठाता है एक मार्मिक रचना लिखी है जो बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती है बहुत बहुत बधाई आपको , जो बोल्ड अक्षरों में टंकण त्रुटियाँ हैं उन्हें ठीक कर लीजिये
श्री राम शिरोमणि पाठक जी सादर, सुन्दर रचना प्रस्तुत कि है आपने मगर शब्दों में त्रुटी पर एडमिन द्वारा आपको अवगत कराया गया है. सच है इसमें सुधार करें रचना का आनंद और बढ़ जाएगा. हार्दिक बधाई."मौलिक/अप्रकाशित" एडमिन द्वारा अनिवार्य कर दिया गया है. स्वागत.
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