व्यसन बना जी का जंजाल ,
असमय ही खाए जा रहा काल !
इतनी सुन्दर ज़िन्दगी को ,
क्यूँ व्यर्थ में गवांते हो !
जानते हो की बुरी है ,
फिर भी पीते या खाते हो !!
व्यसन के अतिरिक्त कोई ,
कार्य नहीं है शेष !
अल्प दिनों बाद केवल
रह जाओगे अवशेष !!
फटे कपड़ों में जब इनके बच्चे ,
घर से बाहर निकलते है ,
लोग दया दिखाते बच्चों पर ,
व्यसनी को गाली देते है !!
सोचो ऐसे व्यसनी को ,
उनके अपने कैसे सहते है,
नशा करने के बाद ,
जब घर में झगडा करते है !!
अतः परित्याग करो विकारों का ,
हो जाओगे पूर्ण शुद्ध !
उचित प्रयोग करो पैसे का ,
क्यूँ कर रहे अपनों से युद्ध !!
राम शिरोमणि पाठक "दीपक "
मौलिक /अप्रकाशित
Comment
तम्बाकू मदिरा व्यसन के दुष्परिणामों से आगाह कराती सुन्दर अभिव्यक्ति. इस हेतु हार्दिक बधाई.
पर कहीं कहीं प्रवाह में अटकाव है, यदि रचनाएं मात्राओं पर साधेंगे तो यह अटकाव दूर होने लगेगा.
शुभेच्छा.
शिरोमणि जी, कितनी खूबी से व्यसन पर व्यर्थता के बारे में रचना लिखी है आपने.
व्यसन करने वालों पर तरस आता है और उसके परिवार वालों पर रहम .....बेहद मार्मिक रचना
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