शिक्षित बनो ,
शिक्षा का विस्तार करो !
परतंत्रता के जंजीरों से मुक्त हो ,
नए विचारों का स्वागत करो !
सृष्टि का मूल हो तुम ,
अपना महत्व समझो ,जानो !
मूक बन अब न सहो
उठो, बोलो
विश्व को अपने विचारों से अवगत करो !
इस विश्व के कुत्सितता को
शिक्षा का सूरज बन मिटाओ !
नयी सुबह लाओ !
स्वच्छ मानसिकता से युक्त मानव का निर्माण करो !
इस परिवर्तन के मार्ग में बाधाए आएँगी
उनसे न डरो , आगे बढ़ो !
समीप है वह दिन
जब सब कहेंगे ,आहा ! यह विश्व है मनभावन !
और गर्व से कहोगी तुम ,
हाँ ! मैं जननी हूँ
मैंने किया है इस नव विश्व का सृजन ! अन्वेषा ............
वर्तमान में आज जो भी घटित हो रहा, समाचार पत्र, दूरदर्शन और इन्टरनेट के माध्यम से इस पर काफी वाद -विवाद चल रहा है ! उसका हल सिर्फ कानून लागु करने से नहीं हो सकता ! हर एक स्तर पर शिक्षा की जरुरत है, हर एक स्त्री का शिक्षित होना जरुरी है ताकि हर माँ अपने बच्चे को शिक्षित कर सके और एक मानसिक रूप से स्वस्थ मानव की रचना कर सके , तभी हम एक सुंदर विश्व की कल्पना कर सकते है !
Comment
Saurabh ji aapka ishara kis bindu ko tha., maine samjha hai...bus baat yeh hai ki aapka aur mera najariya kaafi alag hai...we all r individuals and its not possible to have same thinking...so it wud be better if I respect ur thinking and U do mine....Thanks for commenting Sir
अन्वेषाजी, आपने मेरे कहे के सिरे को सही पकडा है. इसी विन्दु की तरफ़ इशारा था.
सादर
//दुष्कर्म करने वाले लोग या तो अशिक्षित घरो के होते है या ऐसे घरो के जहाँ स्त्री का सम्मान नहीं होता //
एक स्वस्थ दिमाग , स्वस्थ जीवन का निर्माण शिक्षा और संस्कार ही दे सकता है ! और मनुष्य को प्रथम शिक्षा तो माँ से ही मिलता है ! एक सुसंस्कृत माँ के प्रभाव को इनकार नहीं किया जा सकता ! माँ शिक्षित होने से धन से धनी घर संस्कार से भी समृद्ध होता है ! बच्चे शिक्षित होते है और बेरोजगारी या तो नहीं रहती या उसका हल निकल आता है !
//आप देखेंगे की दुष्कर्म में पकडे जाने वाले ज्यादातर अशिक्षित घर से होते है या ऐसे घरो से होते है जहाँ स्त्री का सम्मान नहीं होता।//
ऐसा हमेशा नहीं है, अन्वेषाजी. यह एक विशेष मानसिकता के तहत होता है. अभी जो कुछ काण्ड तुरत दिमाग़ में आ रहे हैं वे मधुमिता या जेसिका या नुपूर या बिहार की अति प्रसिद्ध बेबी के काण्ड या नागमणी प्रसंग आदि याद आ रहे हैं. यह अत्यंत समृद्ध घरों से ताल्लुक रखते लोगों से संबंधित हैं.
बागी जी , राजेश कुमारी जी , अशोक कुमार जीजी, संदीप कुमार जी ...आप सभी ने पसंद किया ...बहुत बहुत शुक्रिया !
समीप है वह दिन
जब सब कहेंगे ,आहा ! यह विश्व है मनभावन !
और गर्व से कहोगी तुम ,
हाँ ! मैं जननी हूँ
मैंने किया है इस नव विश्व का सृजन !प्रबुद्ध विचारों से जन्मी इस रचना के लिए हार्दिक धन्यवाद, अन्वेषाजी. रचना के भाव और उद्येश्य बहुत ही सकारात्मक हैं. इसकी प्रस्तुति को सीधी-सपाट बयानबाज़ी से थोड़ा बचाना था. लेकिन यह भी सत्य है कि परिस्थितिजन्य भाव कभी-कभी इंगितों में नहीं मुखर हो कर ही असरदार हुआ प्रतीत होते हैं. इस लिहाज़ से आपकी रचना उचित भी बन पड़ी है.
समीप है वह दिन
जब सब कहेंगे ,आहा ! यह विश्व है मनभावन !
और गर्व से कहोगी तुम ,
हाँ ! मैं जननी हूँ
मैंने किया है इस नव विश्व का सृजन !
सकारात्मक सोच और शुभ स्वप्न की भावनाओं को उत्सर्जित करती उपरोक्त पंक्तियाँ इस रचना की आत्मा हैं.
शुभकामनाएँ व बधाई
एक बात : विश्व को अपने विचारों से अवगत करो के स्थान पर विश्व को अपने विचारों से अवगत कराओ उचित वाक्य होगा न ! दूसरे, किसी शब्द में ’ता’ प्रत्यय जुड़ जाय तो वह संज्ञा स्त्रीलिंग की तरह व्यवहृत होती है. प्रयुक्त शब्द कुतिस्तता के लिए ऐसा कह रहा हूँ.
सादर
सुन्दर रचना आदरेया, सच है आज संसकारों कि शिक्षा कि जरूरत बहुत शिद्दत से कि जा रही है. बधाई स्वीकारें.
सीधे मन से निकले सार्थक आशावादी भाव से सराबोर इस रचना हेतु बधाई घर से ही नव समाज नव विश्व की नींव रखी जाए
और गर्व से कहोगी तुम ,
हाँ ! मैं जननी हूँ
मैंने किया है इस नव विश्व का सृजन !
वाह वाह, क्या बात कही है आदरणीया, हम सुधरेंगे जग सुधरेगा, बात तो सही है , सुधार अपने घर से होना चाहिए, किन्तु यह भी सही है कि, जहाँ राम वहाँ रावण, जहाँ कृष्ण वहाँ कंस और साधु के संग शैतान भी जन्म लेते रहे हैं ।
एक अच्छी रचना पर बधाई स्वीकार करें आदरणीया ।
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