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हल्की- सी पवन क्या चली..
पीपल के बातुनी पत्तों की बातें ही चल पड़ी !
नीम के पत्ते थोड़े से अनुशासन में रहकर हिले ,
और सखुए के पत्तों ने..
पवन के पुकार की कर दी अनसुनी !

चिड़ियों की शुरू हुई चहल पहल..
सबसे छोटी चिड़िया ने की पहल ,
काम कम पर शोर ज्यादा ,
सारे भुवन में उसने मचाई हलचल !

तिमिर ने अपना आँचल समेटा ,
रवि ने ली जम्हाई,
तारे भी थके से थे,
उन्होंने अपनी बाती बुझाई !

शशि को तो मही से है प्रेम ..
वह तो है अलबेला ,
मही को नैनों में रख ,
उसने प्रकृति के नियमों को धकेला !!

कोमल से तृण पर ,
जब मेरे पैर पड़े ,
तृण ने गुदगुदी की,
शबनम हँस पड़े !!

यह सपनों सा आसमान
यह महकी-सी हवा
चिड़ियों की चहचहाहट
पत्तों की सरसराहट
और....
मेरे मन ने मुझसे कहा..
ऐसे मंजुल धरा से
किसे दूर जाना है भला.. .

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Comment

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Comment by Anwesha Anjushree on February 6, 2013 at 6:39pm

 Sourabh ji M not ambitious .I write as I feel good...I know M not writing that great ....I hope my God will forgive me for my weaknesses...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 5, 2013 at 10:51pm

जी अन्वेषाजी, आप सही करती हैं.

सादर

Comment by Anwesha Anjushree on February 5, 2013 at 6:54pm

सौरभ जी शुक्रिया फिर से! प्रातः सैर पर निकल कर जो अहसास आया, लिख डाला ...न छंद मिलाया, न कोशिश की। कविता मेरे लिए जीवन का लय है, बस आती है, जाती है, जो शब्द उस पल मन को भाते है, लिख देती हूँ !  नमन 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 5, 2013 at 6:47am

प्रकृति-सुषमा का सुन्दर शब्द-चित्र ! दृश्यों के शब्द-रूप निखरे हुए हैं.

मुझे मोहनलाल महतो ’वियोगी’ जी की अमर कृति याद हो आयी. काश आपकी पंक्तियाँ भी सरस कथ्य के साथ-साथ सरस प्रवाह में होतीं. बहरहाल, एक सुन्दर और कोमल कविता के लिए हार्दिक बधाई.

Comment by Anwesha Anjushree on February 4, 2013 at 10:21pm

Shukriya Vijay Nikore ji , Ram Shiromani ji , Prachi ji , Laxman Prasad ji aur Rajesh kumari ji....bahut bahut shukriya protsahan ke liye...abhar


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 4, 2013 at 5:16pm

प्राकृतिक छटा कि कितनी सुंदर रचना लिखी है सभी बिंब चटकते हुए शब्द शब्द हँसते हुए ,बहुत सुंदर कल्पना बधाई अन्वेशा जी  

कोमल से तृण पर ,
जब मेरे पैर पड़े ,
तृण ने गुदगुदी की,
शबनम हँस पड़े !!-----

इन शब्दों से मुझे अपनी कविता कि एक पंक्ति याद आई--

जब मेरे उपवन में पाँव पड़े तेरे मखमली घास ने गर्दन झुका दी,

   पीत पुहुपो ने करतल ध्वनि की पल्लवों ने हौले हौले हवा दी

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 4, 2013 at 4:09pm

बहुत सुन्दर अभ्व्यक्ति प्रक्रति को समझती -

यह महकी-सी हवा, चिड़ियों की चहचहाहट ,पत्तों की सरसराहट

और....मेरे मन ने मुझसे कहा..ऐसे मंजुल धरा से किसे दूर जाना है भला :)- बहुत खूब, हार्दिक बधाई अन्वेषा अन्जुश्रीजी 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 4, 2013 at 3:59pm

बहुत मधुर अभिव्यक्ति, बेहद सुन्दर एहसास 

हार्दिक बधाई आ. अन्वेषा जी 

Comment by ram shiromani pathak on February 4, 2013 at 11:22am

कोमल से तृण पर ,
जब मेरे पैर पड़े ,
तृण ने गुदगुदी की,
शबनम हँस पड़े !!

वाह वाह!!!!!!!!!!

सुन्दर अभिव्यक्ति।

Comment by vijay nikore on February 4, 2013 at 3:19am

 

        आदरणीया अन्वेषा जी,

        अभी-अभी आपकी "किसकी सदा" पर प्रतिक्रिया भेजते हुए

        हमने कहा कि ऐसी ही सुन्दर और भी कविताएँ लिखिए ....

        हमें नहीं पता था कि हमारे भाग्य में आपकी एक और

        मार्मिक कविता "मंजुल धारा" बस हमारे पढ़ने की

        प्रतीक्षा कर रही है। बधाई।

        हाँ, आपकी ऐसी ही और कविताओं की आस में,

        सस्नेह और सादर, बहन।

        विजय निकोर

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