हल्की- सी पवन क्या चली..
पीपल के बातुनी पत्तों की बातें ही चल पड़ी !
नीम के पत्ते थोड़े से अनुशासन में रहकर हिले ,
और सखुए के पत्तों ने..
पवन के पुकार की कर दी अनसुनी !
चिड़ियों की शुरू हुई चहल पहल..
सबसे छोटी चिड़िया ने की पहल ,
काम कम पर शोर ज्यादा ,
सारे भुवन में उसने मचाई हलचल !
तिमिर ने अपना आँचल समेटा ,
रवि ने ली जम्हाई,
तारे भी थके से थे,
उन्होंने अपनी बाती बुझाई !
शशि को तो मही से है प्रेम ..
वह तो है अलबेला ,
मही को नैनों में रख ,
उसने प्रकृति के नियमों को धकेला !!
कोमल से तृण पर ,
जब मेरे पैर पड़े ,
तृण ने गुदगुदी की,
शबनम हँस पड़े !!
यह सपनों सा आसमान
यह महकी-सी हवा
चिड़ियों की चहचहाहट
पत्तों की सरसराहट
और....
मेरे मन ने मुझसे कहा..
ऐसे मंजुल धरा से
किसे दूर जाना है भला.. .
Comment
Sourabh ji M not ambitious .I write as I feel good...I know M not writing that great ....I hope my God will forgive me for my weaknesses...
जी अन्वेषाजी, आप सही करती हैं.
सादर
सौरभ जी शुक्रिया फिर से! प्रातः सैर पर निकल कर जो अहसास आया, लिख डाला ...न छंद मिलाया, न कोशिश की। कविता मेरे लिए जीवन का लय है, बस आती है, जाती है, जो शब्द उस पल मन को भाते है, लिख देती हूँ ! नमन
प्रकृति-सुषमा का सुन्दर शब्द-चित्र ! दृश्यों के शब्द-रूप निखरे हुए हैं.
मुझे मोहनलाल महतो ’वियोगी’ जी की अमर कृति याद हो आयी. काश आपकी पंक्तियाँ भी सरस कथ्य के साथ-साथ सरस प्रवाह में होतीं. बहरहाल, एक सुन्दर और कोमल कविता के लिए हार्दिक बधाई.
Shukriya Vijay Nikore ji , Ram Shiromani ji , Prachi ji , Laxman Prasad ji aur Rajesh kumari ji....bahut bahut shukriya protsahan ke liye...abhar
प्राकृतिक छटा कि कितनी सुंदर रचना लिखी है सभी बिंब चटकते हुए शब्द शब्द हँसते हुए ,बहुत सुंदर कल्पना बधाई अन्वेशा जी
कोमल से तृण पर ,
जब मेरे पैर पड़े ,
तृण ने गुदगुदी की,
शबनम हँस पड़े !!-----
इन शब्दों से मुझे अपनी कविता कि एक पंक्ति याद आई--
जब मेरे उपवन में पाँव पड़े तेरे मखमली घास ने गर्दन झुका दी,
पीत पुहुपो ने करतल ध्वनि की पल्लवों ने हौले हौले हवा दी
बहुत सुन्दर अभ्व्यक्ति प्रक्रति को समझती -
यह महकी-सी हवा, चिड़ियों की चहचहाहट ,पत्तों की सरसराहट
बहुत मधुर अभिव्यक्ति, बेहद सुन्दर एहसास
हार्दिक बधाई आ. अन्वेषा जी
कोमल से तृण पर ,
जब मेरे पैर पड़े ,
तृण ने गुदगुदी की,
शबनम हँस पड़े !!
वाह वाह!!!!!!!!!!
सुन्दर अभिव्यक्ति।
आदरणीया अन्वेषा जी,
अभी-अभी आपकी "किसकी सदा" पर प्रतिक्रिया भेजते हुए
हमने कहा कि ऐसी ही सुन्दर और भी कविताएँ लिखिए ....
हमें नहीं पता था कि हमारे भाग्य में आपकी एक और
मार्मिक कविता "मंजुल धारा" बस हमारे पढ़ने की
प्रतीक्षा कर रही है। बधाई।
हाँ, आपकी ऐसी ही और कविताओं की आस में,
सस्नेह और सादर, बहन।
विजय निकोर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online