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ग़ज़ल - प्यार से बोल जरा प्यार अगर करती है

(बह्र: रमल मुसम्मन मखबून मुसक्कन)

वज्न : 2122, 1122, 1122, 22

चोर की भांति मेरी ओर नज़र करती है,

प्यार से बोल जरा प्यार अगर करती है,

फूल से गाल तेरे बाल तेरे रेशम से,

चाल हिरनी सी मेरी जान दुभर करती है,

धूप सा रूप तेरा और कली सी आदत,

बात खुशबू को लिए साथ सफ़र करती है,

कौन मदहोश न हो देख तेरी रंगत को,

शर्म की डाल झुकी घाव जबर करती है,

मार डाले न मुझे चाह तुझे पाने की,

मौत के पास मुझे रोज उमर करती है..

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 658

Comment

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Comment by अरुन 'अनन्त' on January 20, 2013 at 11:10am

आदरणीय बागी सर प्रणाम, आपकी दृष्टी ग़ज़ल पर पड़ी, ग़ज़ल यूँ ही मुकम्मल हो गई, ग़ज़ल आपको अच्छी लगी मेरा लेखन कार्य सफल हुआ, यूँ ही आशीष बनाए रखें. सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 20, 2013 at 11:09am

मित्रवर राम शिरोमणि जी आभार ग़ज़ल आपको पसंद आई.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 19, 2013 at 3:26pm

//मार डाले न मुझे चाह तुझे पाने की,
मौत के पास मुझे रोज उमर करती है..//

वाह वाह क्या कहन है,जबरदस्त , अच्छी ग़ज़ल, बधाई प्रिय अरुण जी ।

Comment by ram shiromani pathak on January 18, 2013 at 7:37pm

अरुण जी, बहुत खूबसूरत गजल.

उत्तम अति उत्तम महोदय ,

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 18, 2013 at 11:44am

आदरणीया राजेश कुमारी जी प्रणाम, ग़ज़ल को पसंद करने हेतु एवं सुन्दर टिप्पणियां हेतु हार्दिक आभार स्नेह यूँ ही बनाये रखें. सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 18, 2013 at 11:43am

आदरणीया शन्नो जी आपको ग़ज़ल पसंद आई ह्रदय से धन्यवाद.

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 18, 2013 at 11:42am

आदरणीय श्याम जी आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 17, 2013 at 9:06pm

प्रिय अरुण जी इस रूमानियत से भरी मुसल्सल  ग़ज़ल के लिए दाद कबूल करें

Comment by Shanno Aggarwal on January 17, 2013 at 8:06pm

अरुण जी, बहुत खूबसूरत गजल. 

Comment by Shyam Narain Verma on January 17, 2013 at 5:08pm

बहुत खूब !

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