{चार चरण मात्रा ३२ यति (१०,८,८,६) , चरणान्त समतुकांत तथा चरणान्त में जगण वर्जित, अंत में गुरु (२)}
(1)निश्शंक जिए जा , कर्म किये जा , ,फल की मत कर ,अभिलाषा
भगवन सब जाने ,सब पहचाने , कृपा करेंगे ,रख आशा
कर मनन निरंतर ,हिय अभ्यंतर,तन मन सुख की ,परिभाषा
पर लोभ बुरा है , क्षोभ बुरा है, पर मन जीते , मृदु भाषा
(2)
शिव हरि नाम भजो ,मद बिषय तजो ,जितेंद्रिय नाम,सुख पाओ
भज दुर्गे अम्बा , माँ जगदम्बा ,मातु रूप नौ , तुम ध्याओ
हृदय से सम्मान, शक्ति सा मान , कर नारी का , दिख लाओ
देवों का प्यारा ,मात्र दुलारा , जन संस्कारी ,हो जाओ
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Comment
प्रिय विनीता शुक्ला जी आपको मेरे शब्द रुचिकर लगे हृदय से आभारी हूँ |
अनुकरणीय, सुंदर पंक्तियाँ. बधाई राजेश कुमारी जी.
आदरणीय प्रदीप कुमार जी आपकी उत्साह वर्धन करती हुई प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार
आदरणीया राजेश कुमारी जी
सादर
एक नया पाठ , सीखने हेतु.
रचना हेतु बधाई.
आदरणीया राजेशकुमारीजी, यह इस छंद का रोचक और विविध स्वरूप ही है कि रचनाकारों को इनका पता चले तो बिना आकष्ट हुए नहीं रह सकते. आपका सद्-प्रयास अनुकरणीय है, आदरणीया. इस रोचक छंद के सर्वग्राही और सर्वसमाही स्वरूप को हम स्वीकार करें तो अधिक उचित होगा, जिसका उदाहरण अपने साहित्य वाङ्गमय में पहले से ही शास्त्रज्ञों द्वारा उपलब्ध कराया गया हैं.
सादर
आदरणीय सौरभ जी उत्साह वर्धन करने हेतु हृदय से आभारी हूँ यदि आपकी कसौटी पर ये छंद दस बीस प्रतिशत भी खरे उतरते हैं तो मैं अपना प्रयास सार्थक दिशा में समझूंगी और इस छंद के पूर्ण ज्ञान के लिए सतत प्रयत्न करुँगी क्यूंकि ये छंद मुझे बहुत बहुत पसंद आया है पुनः आभार
//उधर छंद त्रिभंगी को लेकर घमासान मचा हुआ है //
आदरणीय राजेश कुमार झाजी, यह अवश्य है कि अपना मुँह ऊपर उठा कर हम उच्छिष्ट प्रक्षेपित करें तो परिणाम वही होगा जो शाश्वत हुआ करता है. किंतु, आदरणीय, कार्य के दीखते स्वरूप से इतर सर्वग्राही उद्येश्य के प्रति संवेदनशीलता विषपान तक के लिए सोत्प्रेरित करती है, जब शिव स्वरूप होगये, फिर राख क्या शृंगार क्या.. के अंतर्गत..
आदरणीय, विधानों पर एकांगी या आत्म-मंतव्य प्रेरित कोई प्रयास छंद के परिप्रेक्ष्य में पूर्व में ही बिदक चुके नव-हस्ताक्षरों और आज के रचनाकारों को और भी तटस्थ कर देगा. आज की रचनाकार पीढ़ी के समक्ष किसी छंद-विधान का सर्वग्राही तथा सर्वसमाही स्वरूप आये, तबही वह इन सनातनी/ शास्त्रीय छंदों क प्रति आत्मीयता और सन्निकटता का अनुभव करेगी. यह कार्य हम सभी के लिए और भी सरल हो जाता है जबकि छंदों पर उदार उदाहरण छंद-मर्मज्ञों के सूर्य-चंद्र-नक्षत्रों द्वारा उपलब्ध कराये गये हैं.
आगे, आप सुधी पाठक और संवेदनशील रचनाकार भी हैं, आपकी सोच सिर-माथे. किसी उद्येश्यपरक चर्चा को अन्यथा रंग न मिले.. :-))
सादर
आपको मेरी रचना पसंद आई सुमन जी इस हेतु हार्दिक आभार आपका
राजेश कुमार झा जी चूँकि ये मेरा प्रथम प्रयास है तो त्रुटियाँ तो संभवतः होंगी जिनमे धीरे धीरे सुधार होगा ये समझो पहली सीढ़ी पर ही चढी हूँ बहुत सीखना बाकी है आपका हार्दिक आभार मेरा प्रयास पसंद आया
आदरणीया राजेशकुमारीजी, आपके गंभीर प्रयास पर अतिशय बधाइयाँ. रचनाकर्म ही सतत होतो आचण के अनुसार रचनाधर्म होता है. रचनाधर्म प्रयासों पर सांगोपांग दृष्टि की अपेक्षा करता है. रचनाकार विधानों को समुच्चय में देख-समझ कर तदनुरूप प्रयास करें. आपकी रचनाधर्मिता पर आपको सादर नमन.
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