For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सप्त सिन्धु घट बह रहे, कर्ण पार स्वर सप्त.

व्योम वृहत निज व्याप्त है, सप्त वर्ण संतृप्त//१//

**************************************************

तर्षण लब्धासक्ति का, करता उर संतप्त.

तर्कण कर तर्पण करें, वृथा फिरें अभिशप्त//२//

**************************************************

मुद्रा, कीर्ति, स्वरुप भ्रम, क्षणिक करें मन तृप्त.

तप्त इष्टि परिशान्तिनी, शक्ति उर अनुज्ञप्त//३//

**************************************************

डॉ. प्राची 

Views: 978

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 11, 2013 at 9:31pm

दोहे पसंद कर अनुमोदित करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय प्रभात कुमार रॉय जी 

Comment by prabhat kumar roy on March 11, 2013 at 4:53pm

सुंदर और अर्थपूर्ण दोहे। हार्दिक बधाई।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 24, 2013 at 8:08pm

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 24, 2013 at 8:06pm

हा हा हा..  . एकदम सटीक.   तप्त सही शब्द है.  :-)))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 24, 2013 at 8:01pm

आदरणीय सौरभ जी,

'उग्र' शब्द की तीव्रता मेरे अनुसार यहाँ कुछ ज्यादा लगेगी, 

इसमें विध्वंसक इच्छाओं का पुट मिलता सा प्रतीत होता है.

यहाँ तप्त इष्टि परिशान्तिनी ही रहने देते हैं.

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 24, 2013 at 7:49pm

हा हा हा हा...   यानि हम मास्साब ... :-))))

तप्त इष्टि परिशान्तिनी .. वाह ! बहुत सुन्दर प्रयोग !

वैसे इन संदर्भों में तब तप्त को उग्र किया जाय तो कैसा रहे आदरणीया ?  यह एक सुझाव भर है. न बने तो छोड़ना अच्छा.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 24, 2013 at 7:21pm

आदरणीय सौरभ जी,

संधि के आधारभूत नियम बताने  के लिए हार्दिक आभार...कभी सोचा नहीं था कि स्कूली शिक्षा के सालों बाद हिंदी व्याकरण को समझने की पुनः अंतरेच्छा भी कभी जागृत होगी.:-)))

कृपया एक राय दें,

वैसे तो अंतिम दोहे के तृतीय पद में शब्द को "तप्तेप्सा" किया जाना चाहिए, पर, क्या यहाँ पर "तप्त  इष्टि परिशान्तिनी" यह उपयुक्त लगेगा?

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 24, 2013 at 7:14pm

आदरणीय विजय निकोर जी, 

आपसे शब्द, लय , भाव और अर्थ सब पर सराहना पा कर मन बेहद संतुष्टि का अनुभव कर रहा है, हार्दिक आभार इस उत्साहवर्धक सराहना के लिए आदरणीय. सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 24, 2013 at 7:13pm

पुनः आभार आ. राजेश झा जी, स. सुमन मिश्रा जी.

Comment by vijay nikore on January 24, 2013 at 6:44pm

 

आदरणीया प्राची जी,

पहली बार पढ़ा तो शब्द चयन और लय को सराहा,

अब  दूसरी बार पढ़ा तो  भाव और अर्थ को सराहा।

सुन्दर रचना के लिए बधाई।

सादर,

विजय निकोर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service