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दोहा विशिष्ट /डॉ. प्राची

सप्त सिन्धु घट बह रहे, कर्ण पार स्वर सप्त.

व्योम वृहत निज व्याप्त है, सप्त वर्ण संतृप्त//१//

**************************************************

तर्षण लब्धासक्ति का, करता उर संतप्त.

तर्कण कर तर्पण करें, वृथा फिरें अभिशप्त//२//

**************************************************

मुद्रा, कीर्ति, स्वरुप भ्रम, क्षणिक करें मन तृप्त.

तप्त इष्टि परिशान्तिनी, शक्ति उर अनुज्ञप्त//३//

**************************************************

डॉ. प्राची 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 11, 2013 at 9:31pm

दोहे पसंद कर अनुमोदित करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय प्रभात कुमार रॉय जी 

Comment by prabhat kumar roy on March 11, 2013 at 4:53pm

सुंदर और अर्थपूर्ण दोहे। हार्दिक बधाई।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 24, 2013 at 8:08pm

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 24, 2013 at 8:06pm

हा हा हा..  . एकदम सटीक.   तप्त सही शब्द है.  :-)))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 24, 2013 at 8:01pm

आदरणीय सौरभ जी,

'उग्र' शब्द की तीव्रता मेरे अनुसार यहाँ कुछ ज्यादा लगेगी, 

इसमें विध्वंसक इच्छाओं का पुट मिलता सा प्रतीत होता है.

यहाँ तप्त इष्टि परिशान्तिनी ही रहने देते हैं.

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 24, 2013 at 7:49pm

हा हा हा हा...   यानि हम मास्साब ... :-))))

तप्त इष्टि परिशान्तिनी .. वाह ! बहुत सुन्दर प्रयोग !

वैसे इन संदर्भों में तब तप्त को उग्र किया जाय तो कैसा रहे आदरणीया ?  यह एक सुझाव भर है. न बने तो छोड़ना अच्छा.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 24, 2013 at 7:21pm

आदरणीय सौरभ जी,

संधि के आधारभूत नियम बताने  के लिए हार्दिक आभार...कभी सोचा नहीं था कि स्कूली शिक्षा के सालों बाद हिंदी व्याकरण को समझने की पुनः अंतरेच्छा भी कभी जागृत होगी.:-)))

कृपया एक राय दें,

वैसे तो अंतिम दोहे के तृतीय पद में शब्द को "तप्तेप्सा" किया जाना चाहिए, पर, क्या यहाँ पर "तप्त  इष्टि परिशान्तिनी" यह उपयुक्त लगेगा?

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 24, 2013 at 7:14pm

आदरणीय विजय निकोर जी, 

आपसे शब्द, लय , भाव और अर्थ सब पर सराहना पा कर मन बेहद संतुष्टि का अनुभव कर रहा है, हार्दिक आभार इस उत्साहवर्धक सराहना के लिए आदरणीय. सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 24, 2013 at 7:13pm

पुनः आभार आ. राजेश झा जी, स. सुमन मिश्रा जी.

Comment by vijay nikore on January 24, 2013 at 6:44pm

 

आदरणीया प्राची जी,

पहली बार पढ़ा तो शब्द चयन और लय को सराहा,

अब  दूसरी बार पढ़ा तो  भाव और अर्थ को सराहा।

सुन्दर रचना के लिए बधाई।

सादर,

विजय निकोर

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