For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : बुना कैसे जाये फ़साना न आया

(बह्र: मुतकारिब मुसम्मन सालिम)

(वज्न: १२२, १२२, १२२, १२२

बुना कैसे जाये फ़साना न आया,
दिलों का ये रिश्ता निभाना न आया,

लुटाते रहे दौलतें दूसरों पर,
पिता माँ का खर्चा उठाना न आया,

चला कारवां चार कंधों पे सजकर,
हुनर था बहुत पर जिलाना न आया,

दिलासा सभी को सभी बाँटते हैं,
खुदी को कभी पर दिलाना न आया,

जहर से भरा तीर नैनों से मारा,
जरा सा भी खुद को बचाना न आया,

किताबें न कुछ बांचने से मिलेगा,
बिना ज्ञान दर्पण दिखाना न आया,

बुढ़ापे ने दी जबसे दस्तक उमर पे,
रुके ये कदम फिर चलाना न आया,

मुहब्बत का मैंने दिया बेसुधी में,
बुझा तो दिया पर जलाना न आया,

समंदर के भीतर कभी कश्तियों को,
बिना डुबकियों के नहाना न आया.

("मौलिक व अप्रकाशित")

Views: 679

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by MAHIMA SHREE on February 2, 2013 at 11:07pm

बहुत ही अच्छी गज़ल के लिए बधाई आपको अनंत जी

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 2, 2013 at 7:10pm

बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है बंधुवर

आदरणीय अशोक सर के कहे से सहमत हूँ ...........अशआर की संख्या पे नहीं अपितु कहे के भार को बढ़ाइए बहुत बहुत बधाई सहित हार्दिक शुभकामनाएं

Comment by ram shiromani pathak on February 2, 2013 at 6:57pm

भाई अरुण जी सुन्दर गजल कही है आपने,बधाई स्वीकारें.

Comment by अरुन 'अनन्त' on February 2, 2013 at 6:09pm

आदरणीय अशोक सर आपका कथन सर आँखों पर. निःसंकोच आपके विचार सही हैं. मैं आपका और आपके विचारों का मान रखता हूँ. आगे से कोशिश करूँगा कि भाव और खुल के आयें. मेरी किसी बात का बुरा लगा हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ, मैं ह्रदय से यहाँ सबका आदर और सम्मान करता हूँ. सादर

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 2, 2013 at 5:57pm

भाई जी सादर,मुझे पहले शेर के मिसरा ए सानी से शिकायत नही है. मैंने दिलासा बांटना ऐसा कभी नहीं सुना. दूसरे शेर में इसके ठीक विपरीत मिसरे में देखें जैसा आपने सोचकर लिखा है उसके लिए क्या उपयुक्त है,  "बिना डुबकियों के नहाना न आया" और "लगा डुबकियों के नहाना न आया," भाई मैंने अपने मन की कह दी.जैसा मुझे लगा,यह नितांत मेरे अपने विचार हैं सही गलत कि कसौटी नही हैं.सादर.

Comment by अरुन 'अनन्त' on February 2, 2013 at 2:22pm

आदरणीय अशोक सर प्रणाम, जी क्षमा न कहें आपका हक़ बनता आप निःसंकोच कह सकते हैं, मैं ये दो शे'र जो सोंच के लिखा साझा करना चाहता हूँ.

पहला खुद पर आजमाया है जब कभी भी मेरे साथी मित्रों को कोई परेशानी होती है तो समझाता हूँ दिलासा देता हूँ परन्तु कई बार जब समस्याएं मेरे ही सामने आ जाती हैं तो खुद को दिलासा देने में असमर्थ महसूस करता हूँ.

कई बार देखा है सुना है की नाव में पानी भरते ही वो डूब जाया करती है, कभी ये नहीं देखा न सुना की नाव पानी में डूबकर ऊपर आ गई हो. यही सोंचकर लिखा है.

सादर.

Comment by अरुन 'अनन्त' on February 2, 2013 at 2:15pm

मित्रवर मनोज जी सराहना एवं सहयोग हेतु आभार.

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 2, 2013 at 1:52pm

लुटाते रहे दौलतें दूसरों पर,
पिता माँ का खर्चा उठाना न आया,................वाह! बहुत बढ़िया.

भाई अरुण जी सुन्दर गजल कही है आपने,बधाई स्वीकारें. क्षमा करें मगर दो शेर ऐसे हैं जो कुछ अतिरिक्त चाह रहे हैं, दिलासा बांटना कुछ ठीक नही लगा.और कश्तियों का समंदर के भीतर डुबकी लगा कर नहाना क्या कहते हैं आप?

दिलासा सभी को सभी बाँटते हैं,
खुदी को कभी पर दिलाना न आया,

समंदर के भीतर कभी कश्तियों को,
बिना डुबकियों के नहाना न आया.

Comment by Manoj Nautiyal on February 2, 2013 at 8:24am

वाह शर्मा साहब ......बुढ़ापे ने दी जबसे दस्तक उमर पे,
रुके ये कदम फिर चलाना न आया, .....सच कहा है आपने ...बधाई आपको इस दार्शनिकता की जमीन पर उकरी हुयी सुन्दर गजल के लिए |

Comment by अरुन 'अनन्त' on February 1, 2013 at 5:14pm

आभार आदरेया

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
15 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service