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दुःख के रास्ते सुख आता है,
अनुभवों में यह पलता है  
दूर क्षितिज तक जाम है।
जीवन सुख का धाम है,
मृत्यु तुझे सलाम है ।

अटके प्राण स्वजनों में, 
पितृदेव  भटकाव है  
दुःख सहते हरी नाम है 
संकट मोचक हनुमान है
माता-पिता की सेवा ही 
सच्चे चारों धाम है 
मृत्यु तुझे सलाम है ।
 
राम नाम ही सत्य है,
सत्य बोले तो गत है
हरी का नाम अनाम है 
स्वर्ग मिले तो धाम है
मृत्यु तुझे सलाम है । 
 
दुष्कर्मी का नरकवास है
सुकर्मी का बैकुंठवास ।
पितृ लोक अटकाव है,
मृत्यु लोक में वास है;
साकेत राम निवास है 
स्वर्ग मिले तो धाम है 
मृत्यु तुझे सलाम है ।
 
निज गुरु में श्रद्धा-निष्ठां 
ज्ञान प्राप्ति मार्ग है, 
भक्ति का प्रमाण है ।
अनुरागी निष्काम है 
हरी का नाम अनाम है 
निष्फल कर्म प्रधान है 
जीवन सुख का धाम है 
मृत्यु तुझे सलाम है  । 
 
राष्ट्र की रक्षा से बढ़कर 
दूजा न कोई काम है,
मातृभूमि की सोंधी माटी से      
बढ़कर न कोई सुगंध है
इस माटी में देखो 
कैसी अजब मिठास है ।
देश भक्ति के जज्बे में 
आन बान  की शान है ।
जीवन सुख का धाम है 
मृत्यु तुझे सलाम है  । 
 
लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला 

 

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Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 6, 2013 at 6:59pm

बहुत सुन्दर भावों से लवरेज रचना को ढेरों बधाई आदरणीय सर जी 
इस रचना में केवल यह सोचना दुष्कर हो रहा है के
आखिर क्यूँ म्रत्यु को सलाम है 
जबकि सब जीते जी हो रहा है
और इन भावों में जीवन की सफलता है
तो आखिर क्यूँ ???

Comment by vijay nikore on February 6, 2013 at 6:17pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी:

मातृभूमि की सोंधी माटी से     
बढ़कर न कोई सुगंध है
इस माटी में देखो
कैसी अजब मिठास है ।
 
बहुत सच कहा है।
भाव अच्छे लगे।
आपको बधाई।
विजय निकोर
Comment by रविकर on February 6, 2013 at 5:39pm

सुन्दर भाव --
बहुत बहुत आभार आदरणीय अग्रज-

आई माई के लिए, कुदरत का आईन |
दोनों की गोदी सुखद, कहते रहे जहीन |
कहते रहे जहीन, यहाँ माई ले आई |
लेकिन आई मित्र, वहाँ निश्चय ले जाई |
इन्तजार दो छोड़, व्यवस्था करो ख़ुदाई |
ज्यों हर्षित आश्वस्त, देख त्यों हर्षित आई ||

आई = मौत
क्या माई = माँ के स्थान पर भी "आई" लिख सकते हैं-
आदरणीय / आदरेया मार्गदर्शन करें |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 6, 2013 at 1:58pm

आपको रचना के भाव पसंद आये, मेरा प्रयास सार्थक हो गया आदरणीय श्री गणेश जी बागी जी | हार्दिक आभार स्वीकारे 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 6, 2013 at 1:20pm

//राष्ट्र की रक्षा से बढ़कर 

दूजा न कोई काम है,//
बहुत ही सुन्दर भाव से सजित रचना पर कोटिश : बधाई आदरणीय लडिवाला जी |

कृपया ध्यान दे...

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