इक प्रयोग "पञ्च चामर ग़ज़ल"
झुके कभी कभी उठे नज़र बड़ी कमाल है
अदायगी ग़ज़ब कि बेनजीर बेमिसाल है
इधर उधर घुमा घुमा अजीब घूर घूर के
जबाब मांगती नज़र बड़ा गहन सवाल है
तराश नाजुकी भरी कि लब लगें गुलाब से
महक रही नफस नफस हसीं शबे विसाल है
नदी नहीं दिखे यहाँ समा रहा जिगर जहाँ
सियाह चश्म झील से गुमा हुआ गजाल है
सदैव सत्य बोलना बुरा भले रहे मगर
जरूर आजमाइए असर भरा ख़याल है
जहर भरा हरेक हर्फ़ चख सकीं न दीमकें
इसी प "दीप" आजकल मचा हुआ बबाल है
संदीप पटेल "दीप"
Comment
आदरणीया भावना तिवारी जी इस प्रयोग को सराहने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर आभार
सदैव सत्य बोलना बुरा भले रहे मगर
जरूर आजमाइए असर भरा ख़याल है.................प्रयोग यह क़माल है OBO निहाल है................BADHAAI ..SANDEEP JI...
आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम
इस हौसलाफजाई के लिए आपका ह्रदय से आभारी हूँ
स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये सादर
आदरणीय म्रदु जी सादर
आपने रचना को मान दिया इसके लिए आभारी हूँ
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
प्रिय संदीप बहुत ही प्रवाह मई लय युक्त ग़ज़ल कही है मजा आ गया पढ़ के दिली दाद कबूले,मक़्ते वाला शेर तो बस कमाल का है |
आदरणीय संदीप जी बहुत ही सुन्दर अशआर कहे हैं हार्दिक बधाई
अरे... ????
एक ही शीर्षक से दो अलग-अलग प्रविष्टियाँ ?.. . सही...हम उलझ गये
इस बहर की सबसे बड़ी खासियत इसका आरोह अवरोह है जिसके कारण ऐसी लहरदार लय तैयार होती है कि पढ़ने सुनने वाला आनंद में बहता चला जाता है ... बहुत खूब कहा है
कई अशआर खूब पसंद आए
/सदैव सत्य बोलना बुरा भले रहे मगर
जरूर आजमाइए असर भरा ख़याल है/
बेहतरीन ग़ज़ल. और प्रवाह ऐसा कि बस एक सांस में पूरा पढ़ गया. दाद कबूल हो. :)
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