For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इक प्रयोग "पञ्च चामर ग़ज़ल"


इक प्रयोग "पञ्च चामर ग़ज़ल"

झुके कभी कभी उठे नज़र बड़ी कमाल है
अदायगी ग़ज़ब कि बेनजीर बेमिसाल है

इधर उधर घुमा घुमा अजीब घूर घूर के
जबाब मांगती नज़र बड़ा गहन सवाल है

तराश नाजुकी भरी कि लब लगें गुलाब से
महक रही नफस नफस हसीं शबे विसाल है

नदी नहीं दिखे यहाँ समा रहा जिगर जहाँ
सियाह चश्म झील से गुमा हुआ गजाल है

सदैव सत्य बोलना बुरा भले रहे मगर  
जरूर आजमाइए असर भरा ख़याल है

जहर भरा हरेक हर्फ़ चख सकीं न दीमकें  
इसी प "दीप" आजकल मचा हुआ बबाल है


संदीप पटेल "दीप"

Views: 520

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 13, 2013 at 11:56am

आदरणीया भावना तिवारी जी इस प्रयोग को सराहने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर आभार 

Comment by भावना तिवारी on February 11, 2013 at 10:19am

सदैव सत्य बोलना बुरा भले रहे मगर  
जरूर आजमाइए असर भरा ख़याल है.................प्रयोग यह क़माल है OBO निहाल है................BADHAAI ..SANDEEP JI...

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 8, 2013 at 3:47pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम 
इस हौसलाफजाई के लिए आपका ह्रदय से आभारी हूँ 
स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये सादर 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 8, 2013 at 3:47pm

आदरणीय म्रदु जी सादर 
आपने रचना को मान दिया इसके लिए आभारी हूँ 
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 8, 2013 at 3:46pm
आदरणीय विवेक जी सादर 
आपने ग़ज़ल को पढ़ा और सराहा इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद 
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 8, 2013 at 9:24am

प्रिय संदीप बहुत ही प्रवाह मई लय युक्त ग़ज़ल कही है मजा आ गया पढ़ के दिली दाद कबूले,मक़्ते वाला शेर तो बस कमाल का है |

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on February 8, 2013 at 12:13am

आदरणीय संदीप जी बहुत ही सुन्दर अशआर कहे हैं हार्दिक बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 7, 2013 at 11:57pm

अरे... ????

एक ही शीर्षक से दो अलग-अलग प्रविष्टियाँ ?.. . सही...हम उलझ गये

Comment by वीनस केसरी on February 7, 2013 at 11:53pm

इस बहर की सबसे बड़ी खासियत इसका आरोह अवरोह है जिसके कारण ऐसी लहरदार लय तैयार होती है कि पढ़ने सुनने वाला आनंद में बहता चला जाता है ... बहुत खूब कहा है 

कई अशआर खूब पसंद आए

Comment by विवेक मिश्र on February 7, 2013 at 9:25pm

/सदैव सत्य बोलना बुरा भले रहे मगर  
जरूर आजमाइए असर भरा ख़याल है/
बेहतरीन ग़ज़ल. और प्रवाह ऐसा कि बस एक सांस में पूरा पढ़ गया. दाद कबूल हो. :)

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
13 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service