इक प्रयोग "पञ्च चामर ग़ज़ल"
बुरा न बोलिए उसे अगर कठिन गुजर हुआ
सिवाय वक़्त के बता न कौन हमसफ़र हुआ
तलाशते रहा जिसे रखे मिलन कि तिश्नगी
सुनी नहीं सदा अजीज यार बे-खबर हुआ
बदल नहीं सके उसे कहा सनम जिसे कभी
सनम रहा सनम बने न प्यार का असर हुआ
बढीं तमाम गर्दिशें चली हवा गुमान की
बुझा चिराग प्यार का निजाम बेअसर हुआ
गुरूर जिस्म पे कभी न कीजिये हुजूर यूँ
उसूल सुन हयात का मनुज नहीं अमर हुआ
न राह दिख रही मुझे न "दीप" मंजिलें दिखीं
मगर रुके न आज तक तलाश ही सफ़र हुआ
संदीप पटेल "दीप"
Comment
is ki behr yeh banti hai- mafaa'ilun*4(1212)
संदीप जी पञ्च चामर ग़ज़ल का प्रयोग पसंद आया। धन्यवाद आपको
बढीं तमाम गर्दिशें चली हवा गुमान की
बुझा चिराग प्यार का निजाम बेअसर हुआ ..........waah ...asardaar.....badhaai ...!!
आदरणीय गुरुदेव मेरी कहे तथ्य पर सहमती जताने हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार
स्नेह, मार्गदर्शन और आशीष यूँ ही बनाये रखिये
//जबकि उर्दू बहर मैं हम मात्राएँ गिरा सकते हैं
छंद और उर्दू बहर में मुझे यही तकनीकी अंतर दीख पड़ता है //
सौ बात की एक बात.. और कितनी सटीक बात ! आपने छंद और ग़ज़ल के मध्य का अंतर स्पष्ट किया है.. आगे पुनः आगे, भाई संदीप जी.
आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी सादर प्रणाम
आदरणीय चरण जीत जी सादर
ये पञ्च चामर एक छंद है जिसके विधान में हम लघु गुरु मात्राएँ क्रमशः लेते हैं
आपका बहुत बहुत शुक्रिया
sandeep ji aap badia likhte he kafi deep jakar badhai
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