जब शिवजी का ध्यान भंग करने के लिए मदनदेव को कहा गया तो वे राजी तो हो गए किंतु उनका मन गहरी सोच में पड़ गया उनकी कशमकश को दर्शाने के लिए चौपाईयां लिखी जिसमें आवश्यक सुधार आदरणीय अम्बरीष जी ने सुझाया जिसके बाद इसे ओबीओ के पटल पर रखने का साहस कर पा रहा हूं ।
मदन सदन विकराल उदासी| राग-रंग अब हैं वनवासी||
छंद तिरोहित ताल मलीना| बिलख-बिलख बाजी मन वीणा||
अज विनोद नहीं तनिक सुहाए| नित्य पथिक पथ आज भुलाए||
व्य्रग्र विकल बैठे ऋतुराजा| हिय अंतर अज शिशिर विराजा||
साज-बाज बहु बार पुकारे| सकल वृंद बैठे मनमारे||
एक कूक नहिं कोयल बोली| अनल-अश्रु में रति भी रो ली||
कुंडल हार मुकुट आभूषण| अज पन्नग सम करते सन-सन|
सरस सांझ अज नहीं सुहाए| निशा निकर अज खूब चिढ़ाए||
शिथिल गात कुंतल बिखराए| सकल निशा महि बैठ बिताए||
कूके खग फैला उजियारा| अज प्रभात गहरा अँधियारा||
Comment
भाषा आपने अपने तईं अवधी के बहुत करीब रखने की कोशिश की है. यह आपके प्रयास-निर्भरता को ही बताता है. एक बार छोड़ बार-बार आज के लिए अज का प्रयोग विशेष लगा है. छंद का प्रवाह संयत है, भाई राजेशजी.
संभव हो तो अधोलिखित पद को पुनः देख लें -
अज विनोद नहीं तनिक सुहाए| नित्य पथिक पथ आज भुलाए||
सधन्यवाद
रस टपकत मन तृप्त बहुते ,एक एक शब्द सांचे में जूते
kaamdeo ji santrapt huye ham bhi padkar trapt huye badhai
बहोत सुन्दर चौपाई मित्र....इतना गहर ज्ञान नई की आपको मै बता सकूँ लेकिन जितना समझ आया उतना ही उत्तम अति उत्तम ...हार्दिक बधाई ...
जबरदस्त प्रवाह एवं शब्द शानदार चौपाई लिखी है राजेश झा जी हर्दिक बधाई
साज-बाज बहु बार पुकारे| सकल वृंद बैठे मनमारे||
एक कूक नहिं कोयल बोली| अनल-अश्रु में रति भी रो ली||---vaah vaah
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