For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बिना किसी अनुरणन के

*मध्‍यमेधा का

एक चम्‍मच सूरज उठाए

कर्मनाशा आहूतियों को

जब भी मढ़ना चाहा

राग हिंडोल के वर्क से

अतिचारी क्षेपक

हींस उठे

पिनाकी नाद से

और डहक गया

सारा उन्‍मेष.......

तकलियां.....

बुनती ही रहीं

कुहासाछन्‍न आकाश

बिना किसी अनुरणन के

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

*मध्‍यमेधा- मध्‍यम वर्ग की मेधा (बांग्‍ला शब्‍दार्थ)

Views: 485

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 8, 2013 at 12:03pm

हार्दिकबधाई आपको श्री राजेश कुमार झा जी,मई तो दो दिन तक आपकी रचना, आदरणीय सौरभ जी, संदीप कुमार  पटेल ज़ी और आपके मध्य टिप्पणियों से ही रचना को पूर्ण रूप से आत्मसात कर पाया हूँ, तब कही टिप्पणी करपाया हूँ
 जय हो आदरणीय आती सुंदर रचना

Comment by Dr.Ajay Khare on February 8, 2013 at 11:35am

sunder rachana badhai

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 7, 2013 at 4:04pm
बहुत सुन्दर तरीके से आपने मेरे सारे भ्रम हर लिए हैं आदरणीय रचना तार्किक दृष्टि से इतनी गहरी थी 
अब पता पड़ रहा है 
एक बार पुनः   बधाई दे  रहा हूँ स्वीकार कीजिये  
Comment by राजेश 'मृदु' on February 7, 2013 at 3:44pm

आदरणीय सौरभ जी, आपके कथन से बड़ा बल मिलता है कि ''व्‍योम में व्‍याप गया तुमुल पिनाकी का नाद मात्र था'' ऐसा ही हो श्रीहरि रक्षा करें ।  मैं अत्‍यधिक खुश था जब मेरी रचना को माह की सर्वश्रेष्‍ठ रचना मानी गई किंतु कुछ मिनटों के बाद ही ज्ञात हुआ कि मेरा बहुत ही आत्‍मीय स्‍वजन बड़े कष्‍ट में है, सो सारी खुशी रसातल चली गई । इस रचना के पीछे इन्‍हीं परस्‍पर विरोधी घटनाओं का हाथ रहा, और मैं बिलकुल निस्‍सहाय होकर सिर्फ देख ही सकता था क्‍योंकि स्‍वजन की बीमारी का उपचार मेरे पास नहीं, सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on February 7, 2013 at 3:32pm

आदरणीय संदीप जी 'मध्‍यमेधा' शब्‍द मैंने अपने लिए प्रयोग किया है, और जो सारे विश्‍व की मेधा है वह तो सूर्य के बिम्‍ब से स्‍पष्‍ट है, इस मेधा से प्राप्‍त उत्‍फुल्‍लता (राग हिंडोल के वर्क से  मढ़ना चाहा ) ने जब भी मुझे पूरना चाहा एक पल को लगा कि मैं अपने उद्देश्‍य में सफल रहा किंतु अगले ही पल वे भाव तिरोहित हो गए जिसका कारण वे अदृश्‍य ताकतें (अतिचारी क्षेपक) रहीं जो अत्‍यंत बलशाली (पिनाकी नाद के समान जो शिव जी के धनुष से निकलती है ) थी एवं जिनके कारण मेरा सारा उन्‍मेष (तात्‍कालिक खुशी के भाव) तिरोहित हो गए और मैं पुन: समय के कुचक्र (कुहासाछन्‍न आकाश) से घिरता चला गया जिसे काल (तकलियां) बिना किसी पूर्व सूचना के (बिना किसी अनुरणन के) ना जाने कब से मेरे ही लिए रच रही थी ( बुनती ही रहीं)  सादर

Comment by ram shiromani pathak on February 6, 2013 at 9:04pm

हींस उठे

पिनाकी नाद से

और डहक गया

सारा उन्‍मेष.......

तकलियां.....

बुनती ही रहीं

कुहासाछन्‍न आकाश!!!!!!!!!!!!!!!!उत्तम अति उत्तम मित्र बधाई!~


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2013 at 8:37pm

अतिचारी क्षेपकों का हर बार गुत्थियाँ उलझाना अनादि काल से ’सूर्य’ का कार्य कठिन किये हुए है. और व्योम में व्याप गया तुमुल. किन्तु तुमुल पिनाकी का नाद मात्र था ? अकिंचन जन अपना काम करते रहे हैं,, अनादिकाल से. इस भाव को बहुत सुन्दर बिम्ब मिला है. यदि सही तो,  कुहासाछन्न आकाश  के साथ भले ही  भी लग जाये, कार्य की अनवरतता को जताता हुआ.

बहुत ही सांकेतिक रचना हुई है. सुन्दर भावरूप. बधाई, राकश भाईजी.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 6, 2013 at 7:37pm

लीजिये वक़्त लगा लेकिन अंततः बिना गूँज के की गयी शब्दों की बुनाई समझ में आ ही गयी
बेहद गहरी है मेधा |
किन्तु सवाल कौंधता है क्यूँ मध्यम वर्ग की मेधा
मेधा का वर्गीकरण

Comment by राजेश 'मृदु' on February 6, 2013 at 7:10pm

अच्‍छा हुजूर !  दुर्मिल गज़ल लिखने वाले को क्लिष्‍ट लग रही है, लगता है आप आज बहुत ही मस्‍त मूड में हैं इसीलिए बना रहे हैं

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 6, 2013 at 6:52pm

बहुत क्लिष्ट लग रही है आज हिंदी सच कहूँ डिक्सनरी की जरुरत है दादा
फिर प्रतिक्रिया दूंगा

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
24 minutes ago
दिनेश कुमार posted a blog post

प्रेम की मैं परिभाषा क्या दूँ... दिनेश कुमार ( गीत )

प्रेम की मैं परिभाषा क्या दूँ... दिनेश कुमार( सुधार और इस्लाह की गुज़ारिश के साथ, सुधिजनों के…See More
25 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

दोहा पंचक - राम नाम

तनमन कुन्दन कर रही, राम नाम की आँच।बिना राम  के  नाम  के,  कुन्दन-हीरा  काँच।१।*तपते दुख की  धूप …See More
25 minutes ago
Sushil Sarna posted blog posts
25 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"अगले आयोजन के लिए भी इसी छंद को सोचा गया है।  शुभातिशुभ"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका छांदसिक प्रयास मुग्धकारी होता है। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह, पद प्रवाहमान हो गये।  जय-जय"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी, आपकी संशोधित रचना भी तुकांतता के लिहाज से आपका ध्यानाकर्षण चाहता है, जिसे लेकर…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई, पदों की संख्या को लेकर आप द्वारा अगाह किया जाना उचित है। लिखना मैं भी चाह रहा था,…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए है।हार्दिक बधाई। भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ । "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, हार्दिक धन्यवाद  आभार आपका "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद  आभार आदरणीय अशोक भाईजी, "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service