*मध्यमेधा का
एक चम्मच सूरज उठाए
कर्मनाशा आहूतियों को
जब भी मढ़ना चाहा
राग हिंडोल के वर्क से
अतिचारी क्षेपक
हींस उठे
पिनाकी नाद से
और डहक गया
सारा उन्मेष.......
तकलियां.....
बुनती ही रहीं
कुहासाछन्न आकाश
बिना किसी अनुरणन के
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
*मध्यमेधा- मध्यम वर्ग की मेधा (बांग्ला शब्दार्थ)
Comment
हार्दिकबधाई आपको श्री राजेश कुमार झा जी,मई तो दो दिन तक आपकी रचना, आदरणीय सौरभ जी, संदीप कुमार पटेल ज़ी और आपके मध्य टिप्पणियों से ही रचना को पूर्ण रूप से आत्मसात कर पाया हूँ, तब कही टिप्पणी करपाया हूँ
जय हो आदरणीय आती सुंदर रचना
sunder rachana badhai
आदरणीय सौरभ जी, आपके कथन से बड़ा बल मिलता है कि ''व्योम में व्याप गया तुमुल पिनाकी का नाद मात्र था'' ऐसा ही हो श्रीहरि रक्षा करें । मैं अत्यधिक खुश था जब मेरी रचना को माह की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी गई किंतु कुछ मिनटों के बाद ही ज्ञात हुआ कि मेरा बहुत ही आत्मीय स्वजन बड़े कष्ट में है, सो सारी खुशी रसातल चली गई । इस रचना के पीछे इन्हीं परस्पर विरोधी घटनाओं का हाथ रहा, और मैं बिलकुल निस्सहाय होकर सिर्फ देख ही सकता था क्योंकि स्वजन की बीमारी का उपचार मेरे पास नहीं, सादर
आदरणीय संदीप जी 'मध्यमेधा' शब्द मैंने अपने लिए प्रयोग किया है, और जो सारे विश्व की मेधा है वह तो सूर्य के बिम्ब से स्पष्ट है, इस मेधा से प्राप्त उत्फुल्लता (राग हिंडोल के वर्क से मढ़ना चाहा ) ने जब भी मुझे पूरना चाहा एक पल को लगा कि मैं अपने उद्देश्य में सफल रहा किंतु अगले ही पल वे भाव तिरोहित हो गए जिसका कारण वे अदृश्य ताकतें (अतिचारी क्षेपक) रहीं जो अत्यंत बलशाली (पिनाकी नाद के समान जो शिव जी के धनुष से निकलती है ) थी एवं जिनके कारण मेरा सारा उन्मेष (तात्कालिक खुशी के भाव) तिरोहित हो गए और मैं पुन: समय के कुचक्र (कुहासाछन्न आकाश) से घिरता चला गया जिसे काल (तकलियां) बिना किसी पूर्व सूचना के (बिना किसी अनुरणन के) ना जाने कब से मेरे ही लिए रच रही थी ( बुनती ही रहीं) सादर
हींस उठे
पिनाकी नाद से
और डहक गया
सारा उन्मेष.......
तकलियां.....
बुनती ही रहीं
कुहासाछन्न आकाश!!!!!!!!!!!!!!!!उत्तम अति उत्तम मित्र बधाई!~
अतिचारी क्षेपकों का हर बार गुत्थियाँ उलझाना अनादि काल से ’सूर्य’ का कार्य कठिन किये हुए है. और व्योम में व्याप गया तुमुल. किन्तु तुमुल पिनाकी का नाद मात्र था ? अकिंचन जन अपना काम करते रहे हैं,, अनादिकाल से. इस भाव को बहुत सुन्दर बिम्ब मिला है. यदि सही तो, कुहासाछन्न आकाश के साथ भले ही भी लग जाये, कार्य की अनवरतता को जताता हुआ.
बहुत ही सांकेतिक रचना हुई है. सुन्दर भावरूप. बधाई, राकश भाईजी.
लीजिये वक़्त लगा लेकिन अंततः बिना गूँज के की गयी शब्दों की बुनाई समझ में आ ही गयी
बेहद गहरी है मेधा |
किन्तु सवाल कौंधता है क्यूँ मध्यम वर्ग की मेधा
मेधा का वर्गीकरण
अच्छा हुजूर ! दुर्मिल गज़ल लिखने वाले को क्लिष्ट लग रही है, लगता है आप आज बहुत ही मस्त मूड में हैं इसीलिए बना रहे हैं
बहुत क्लिष्ट लग रही है आज हिंदी सच कहूँ डिक्सनरी की जरुरत है दादा
फिर प्रतिक्रिया दूंगा
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