मन में अक्षय स्नेह सभी के
समरस भाव प्रवणता है
फिर भी जाने क्योंकर सबने
बांटी कलुष,कृपणता है
छूत-पाक का लावा-लश्कर
हुलस चूम कब यम आया
कसक धकेले, सदा अकेले
बूंद-बूंद कब ग़म आया
फंसा जुए में गला सभी का
पगतल अतल विकलता है
जाने फिर भी हर लिलार पर
किसने मली खरलता है
तपिश उड़ेले स्वाद कषैले
लिए जागते दीप कहां
रूचिर अधर पर लुटे प्राण को
मिला दूसरा सीप कहां
कहां बनी दारूण यह अरणी
मोद मधुर जो दलता है
हर प्रबोध से नयन चुराए
वक्र ताल ही चलता है
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत सुन्दर रचना ......
मन में अक्षय स्नेह सभी के
समरस भाव प्रवणता है
फिर भी जाने क्योंकर सबने
बांटी कलुष,कृपणता है.............वाह जहां कुछ नहीं लगना वहां भी हम कृपण ही रहे.
सुन्दर रचना.पंक्ति पंक्ति शब्द संयोजन मन मुग्ध कर रहा है और भावों के तो क्या कहने. हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय राजेश कुमार झा जी सादर.
बहुत सुन्दर, वाह!
विजय निकोर
भाव समृद्ध रचना के लिए आपको अतिशय बधाइयाँ, आदरणीय राजेश जी. शिल्प के क्षेत्र में अवश्य ही सार्थक प्रयास करें.
आपकी रचनाओं की कहन और उसके निहितार्थ के विभिन्न आयामों को आपकी शाब्दिकता के साँचे में देख-बूझ कर हम कई-कई बार संतुष्ट हो चुके हैं.
विश्वास है आदरणीय, मेरे कहे को आप उदारता और संपूर्णता में स्वीकार कर रहे हैं.
सादर
वाह!! बहुत ही सुंदर और मननीय प्रस्तुति . हमेशा की तरह बार बार पढने पर भी दुबारा पढने का लोभ नहीं छूटता .. बधाई आपको
छूत-पाक का लावा-लश्कर
हुलस चूम कब यम आया
कसक धकेले, सदा अकेले
बूंद-बूंद कब ग़म आया-----राजेश झा जी पुनः एक सुन्दर प्रविष्टि शानदार शब्द भाव लय प्रवाह बहुत बहुत सुन्दर
क्या बात है बहुत सुन्दर आदरणीय राजेश जी ......बधाई हो आपको
हर प्रबोध से नयन चुराए
वक्र ताल ही चलता है-------बहुत सुन्दर बधाई राजेश कुमार झा जी
'हर प्रबोध से नयन चुराए...
वाह! अति सुन्दर प्रस्तुति!
कसक धकेले, सदा अकेले
बूंद-बूंद कब ग़म आया
तपिश उड़ेले स्वाद कषैले............BAHUT SUNDAR ..KAVYANUBHOOTI ...BADHAI ..WAAH ..!!
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