झूठ सुहाना होता प्रियवर
सबके ही मन भाता है
ऐसी है यह लिपि अनोखी
हर भाषा में चल जाता है
झूठ धर्म इतना समरस है
हर देश में रच-बस जाता है
समता का संदेश सुहावन
जन-जन में फैलाता है
झूठ जानती केवल अपनाना
नहीं किसी को ठगती है
सातों जन्म निभाती सुख से
वफा हमेशा करती है
झूठ तो एक भोली कन्या है
जो चाहे मन बहलाता है
जब चाहे जी अपनाता इसको
जब चाहे जी ठुकराता है
झूठ रसीला इक भोजन है
हर लीवर इसे पचाता है
हर निराश आंखों में आशा
का सागर भर जाता है
झूठ सहायक की भाभी है
अधिकारी की सजनी है
व्यवसायी की पुत्रवधु सम
नेताजी की पत्नी है
स्वर्गलोक की जिज्ञासा यह
नर्क में यह मनभजनी है
पाताल लोक में हर्ष का कारण
धरा पर इससे रजनी है
इसकी महिमा का गुणगान करे जो
हर सुख वह नर पाता है
अंत काल में दान-पुण्य कर
चंदन की चिता सजाता है
करे ध्यान जो सत्य का हरदम
वो अविवेकी, अविचारी है
रस विहिीन, मूढ़ कुबुद्धि
उसकी मत गई मारी है
सत्य का जो आश्रय लेता है
संताप से वह घिर जाता है
बन दरिद्र, भिक्षुक, दुखी जन
बिन चिता के ही जल जाता है
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आप सबका सादर आभार
आदरणीय राजेश जी बहुत ही मजेदार गीत है मज़ा आ गया वाह, इस सुन्दर प्रस्तुत हेतु बहुत बहुत बधाई
झूठ सहायक की भाभी है
अधिकारी की सजनी है
व्यवसायी की पुत्रवधु सम
नेताजी की पत्नी है...................बहुत खूब.
आदरणीय राजेश कुमार झा जी सादर, बहुत सुन्दर झूठ बखान, इतना लयमय झूठ गुनकर बहुत आनंद आया. बधाई स्वीकारें.
क्या बात है !!! झूठ की महत्ता का वर्णन तो अविस्मर्णीय है .... बधाई आपको
भइ वाह ! .. बहुत बढिया !! .. :-)))
आपकी विनोदप्रियता आश्वस्त कर रही है कि आपकी लेखिनी धार समयानुसर तीक्ष्ण होती जायेगी. शिल्प संबंधित चूँकि चर्चा हो चुकी है, अतः यहाँ वह समीचीन नहीं है. आप अपनी मात्रिक रचनाओं की गेयता के लिए मात्र स्वराघातों पर निर्भर न रहकर शब्द-संयोजन को महत्व देंगें.
आपकी रचनाधर्मिता और गंभीर प्रयासों से यह मंच बहुत ही आशान्वित है, आदरणीय राजेश भाईजी. .. .
सादर
झूठ रसीला इक भोजन है
हर लीवर इसे पचाता है
हर निराश आंखों में आशा
का सागर भर जाता है
वाह वाह झूठ पर इतना कुछ बोल दिया कितना महान है झूठ क्यूँ झूठ बोल रहे हो राजेश जी हाहाहा ,मजेदार रचना मुझे अपनी इंग्लिश की एक रचना याद आ गई इसे पढ़ कर, थिंक पोजिटिव सी फ्रॉम माय आईज
आदरणीय प्राची जी, मैं तो सरकारी मुलाजिम हूं अत: जानता हूं कि कहां-कहां भद्रता होती है, वैसे हम भी इसी जमात में हैं इसलिए सही-सही पता है...हाहाहा
सही कहा आपने डॉ0 खरे साहब । सच पर भी एक कविता लिख ही डाली है कभी पोस्ट करूंगा । हमें तो दोनों ही प्रिय हैं जब जैसा तब तैसा
aaj fareb se machi hui he loot kese bhed karoge kya sach he kya jhooth aapki sunder rachna ke liye badhai
झूठ सहायक की भाभी है
अधिकारी की सजनी है
व्यवसायी की पुत्रवधु सम
नेताजी की पत्नी है................हाहाहा
बढ़िया व्यंग लिखा है आदरणीय राजेश जी, बधाई स्वीकारें.
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