For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता - कंदील . मुर्दों के टीले पर !

पिछले कुछ दिनों से परेशान
परेशान है मेरा संवेदनशील हृदय 
जबसे बाज़ारों में आहट मिली है कि 
आने वाला है वैश्विक प्रेम पर्व 
सभी आतुर हैं संत वैलेंटाइन के योगदान को स्मरण करने को .
मैंने भी चाहा इस अवसर पर लिख सकूं एक प्रेम पगी कविता 
कई बार देर तक डूबा रहा स्मृतियों - विस्मृतियों की सोच  में 
बार बार खयाल आते रहे 
कि कैसे चंद्रयानी योजनाओं 
और फ़ोर्ब्स की सूची से संपन्न धनाढ्यों के देश में 
अपनी छोटी से छोटी इच्छाओं को
सकुशल और सहजता से पूरा नहीं कर पाता हाशिये का आदमी 
कैसे कुचल दी जाती है उसकी इच्छाएं और अक्सर उसकी देह भी 
वृद्धावस्था पेंशन या एक राशन कार्ड का मिलना 
उसके लिए नहीं होता वैलेंटाइन डे के कार्ड सरीखा 
खेत बिक जाते हैं इलाज में और रखी रह जाती हैं  
ग्रामीण स्वास्थय मिशन की उम्मीदें ब्लोंक की फाइलों में 
कैसे कुम्भ नहाने पुण्य कमाने गया उसका कुनबा 
बिखर जाता है मोअन - जो  - दड़ो की सभ्यता सा 
कैसे उसकी छोटी छोटी उम्मीदें जो हम शहरियों के हितों से कभी नहीं टकराती 
गाँव की चौहद्दी के भीतर दम तोड़ देती हैं 
कोई ह्यूमेन राइट नहीं होता उसका 
वह कभी राइटर की खबर नहीं बनता 
बूट हमारे हों या अंग्रेजों के उसने उनका बुरा नहीं माना 
वह खुश रहता है हमारे मॉलों  के किनारे पैदल ही मंडुआडीह से दशाश्वमेध तक चलकर 
बाबा विश्वनाथ उसके हैं 
उसकी गठरी को कोई खतरा नहीं 
वह तो घर से निकलता ही है सुमिरन कर 
गंगा मैया और महादेव की कृपा हुई तो ज़रूर लौटेगा 
बन्धु - बांधवों को जिमायेगा 
लेकिन वह नहीं जानता या उसके लिए इसकी कोई प्रासंगिकता नहीं 
कि आज व्यवस्था बहुत सुदृढ़ हो गयी है 
वह पहले सा कहीं भी कभी भी किसी राह नहीं चल सकता 
आज वह सुराज है जिसका  सपना उसके पुरखों ने  देखा था 
आज वही सुराज लाठियों के साथ खड़ा है नगर की हर डगर पर 
रुकावटों की बैरीकेडिंग के साथ 
आज वह कहीं भी रूककर भौरी - चोखा नहीं लगा  सकता 
और न हीं कर सकता है आराम देह के थक जाने पर छूछ धूप  में तपती सड़क की फुटपाथ पर 
क्योंकि आज सरकार जाग रही है और उसका महकमा नहीं छोड़ेगा कोई अवसर 
यह बताने का कि सभ्यता ने कितना विकास कर लिया है यह इक्कीसवीं सदी है 
सब कुछ चलता है संविधान सम्मत 
हाँ मुआवजों पर हक है उसका पर मरी देह उसके किसी अपने की है 
यह साबित करना है उसी को
वह भी हमारी तरह इस देश का नागरिक है 
नगर पर उसका भी हक़ है और उल्लास पर भी 
आज उसकी आस्था उसके फाग और ' भाग ' पर बाज़ार का कब्ज़ा है 
और हम सोच रहे हैं कैसे लिखी जाए एक प्रेम कविता 
अब जबकि वेलेंटाइन डे बस आ ही गया है इस खुरदुरी सी  सोच के दरवाज़े को धकियाता बिलकुल पास
अप्रासंगिक करता मेरे टेबल पर पड़ी ' डॉ जिवागो ' और ' प्राइड एंड प्रीजुडिस ' के पन्नों को मेरे मानस से मिटाने की कुचेष्टा के साथ 
और मैं सोच रहा हूँ कब आएगा कोई चे - गवेरा या चारु मजुमदार जलाने  उम्मीद की कंदील 
मुर्दों के टीले पर .
                                                   - अभिनव अरुण 
                                                      {12022013}

Views: 825

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नादिर ख़ान on February 13, 2013 at 11:06am
कैसे उसकी छोटी छोटी उम्मीदें जो हम शहरियों के हितों से कभी नहीं टकराती 
गाँव की चौहद्दी के भीतर दम तोड़ देती हैं 
कोई ह्यूमेन राइट नहीं होता उसका 
वह कभी राइटर की खबर नहीं बनता 
बूट हमारे हों या अंग्रेजों के उसने उनका बुरा नहीं माना 
वह खुश रहता है हमारे मॉलों  के किनारे पैदल ही मंडुआडीह से दशाश्वमेध तक चलकर 
अदरणीय अरुण पांडे जी
क्या ही सच्चाई है इन पंक्तियों में
लाजवाब प्रस्तुति ..
Comment by Ashok Kumar Raktale on February 13, 2013 at 8:19am

आदरणीय 'अभिनव'जी सादर, वेलेंटाइन और अनहोनी के मेल को जो रफ़्तार आपने दी है की बस देखते ही बनाता है.हर पंक्ति लाजवाब है. दिली मुबारकबाद कुबुलें.

Comment by Abhinav Arun on February 13, 2013 at 7:52am
परम स्नेही श्री सौरभ जी ,यह आप का मुझ अनुज पर नेह है.अभिभूत हूँ .आपके शब्द कविता के लिए संजीवनी है.नत् हूँ ,आभार !

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 12, 2013 at 11:42pm

जब आप अपनी रौ में होते हैं, भाईजी, तो बस आप होते हैं और साथ होती है, विसंगताओं के गरमाये टिन के चदरे पर छनछनाती-छटपटाती हुई आहत भावनाएँ शब्दकारी के साथ जो निरीह तो कत्तई नहीं होती, अलबत्ता अपनी तीखी, भेदक आवृति के साथ मस्तिष्क के सुसुप्त तंतुओं को झनझनाती हुई होती हैं ! प्रस्तुत रचना का वेग पाठकों को अपने साथ बहा ही नहीं ले जाता बल्कि सैंतता भी है. कविता के बिम्ब एकदम से ज़मीनी और सामयिक हैं, भाईजी. विकास के सरपट राजमार्ग के सापेक्ष फुटपाथ पर घिसटते जाने को बाध्य एक पूरी जमात की प्रच्छन्न दशा को यह कविता जिस तरह से स्वर देती है वह आपके कवि की उन्नत संवेदनशीलता का परिचायक है.

बहुत दिनों बाद मंच पर कोई रचना देख रहा हूँ जो लगातार थकते जाते किंतु फिर भी जीने को विवश किसी समुदाय की चीख को सार्थक शब्द देती हुई सी है.

भाई अरुण अभिनव जी, हार्दिक बधाई स्वीकार करें. आपकी यह कविता बहुत-बहुत दिनों तक याद रखी जायेगी.

शुभेच्छाएँ.

Comment by Abhinav Arun on February 12, 2013 at 8:05pm
आभार श्रीराम शिरोमणि जी !
Comment by ram shiromani pathak on February 12, 2013 at 7:44pm
बार बार खयाल आते रहे 
कि कैसे चंद्रयानी योजनाओं 
और फ़ोर्ब्स की सूची से संपन्न धनाढ्यों के देश में 
अपनी छोटी से छोटी इच्छाओं को
सकुशल और सहजता से पूरा नहीं कर पाता हाशिये का आदमी 
कैसे कुचल दी जाती है उसकी इच्छाएं और अक्सर उसकी देह भी 
वृद्धावस्था पेंशन या एक राशन कार्ड का मिलना 
उसके लिए नहीं होता वैलेंटाइन डे के कार्ड सरीखा 
खेत बिक जाते हैं इलाज में और रखी रह जाती हैं  
ग्रामीण स्वास्थय मिशन की उम्मीदें ब्लोंक की फाइलों में 
कैसे कुम्भ नहाने पुण्य कमाने गया उसका कुनबा 
बिखर जाता है मोअन - जो  - दड़ो की सभ्यता सा 
कैसे उसकी छोटी छोटी उम्मीदें जो हम शहरियों के हितों से कभी नहीं टकराती 
गाँव की चौहद्दी के भीतर दम तोड़ देती हैं !!!
वाह सर मेरे पास शब्द नहीं है..........क्या बात कही अपने....हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
50 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service