सूनेपन का रंग ...
पतझड़ के सूखे पत्तों -सा पीला,
मेले में खो गए भयभीत
बालक की नब्ज़-सा नीला,
या अमावस के गहन
अंधकार-सा गंभीर और काला,
सूनेपन का रंग
कैसा होता है?
घोर आतंक-सा वातावरण,
मौसम पर मौसम बेचैन,
जँगली हाँफ़ती हवाएँ
दानव-सी हँसी हँसती,
हर मास एक और पन्ना पलट
करता है गए मास का
अंतिम संस्कार।
पर सूनापन पड़ा रहता है,
वहीं का वहीं,
पुराने कपड़ों की गठरी-सा।
इस सूनेपन का रंग
सूनेपन में आज कोई पूछे मुझसे।
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(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय प्रदीप भाई:
इस कविता की सराहना के लिए आपका शत-शत आभार।
सादर,
विजय निकोर
बाहर कोलाहल अंदर सूना पन
व्यथा ह्रदय की जाने कौन
उसका मन या मेरा मन
बधाई सर जी
सादर
आदरणीय अशोक जी:
इस कविता की सराहना के लिए आपका शत-शत आभार।
सादर और सस्नेह,
विजय निकोर
आदरणीय विजय निकोर साहब सादर, सच है बाहर की खुशियाँ अन्दर के सूनेपन को नहीं पाट सकती. सुन्दर अभिव्यक्ति हार्दिक बधाई स्वीकारें.
प्रणाम भाई,...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति की है आपने सूनेपन की ..बधाई स्वीकारें
आदरणीय बागी जी:
आश्रीर्वाद-सी आपकी सराहना सुखकर लगी ।
अतिशय धन्यवाद।
विजय निकोर
आदरणीय निकोर साहब, सूनेपन के बदरंग रंग में आपने कुछ और रंग तलाशने का प्रयास किया है जो रचना की गंभीरता को एक उचाई प्रदान करता है, रचना अच्छी बन पड़ी है, बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीया प्रवीण जी:
सराहना के लिए आपका आभारी हूँ,
आपसे मिली सराहना मेरा संबल है।
विजय निकोर
आदरणीय संदीप जी:
कविता की सरहाना के लिए आपका हार्दिक आभार।
आशा है, ऐसे ही मनोबल बनाए रखेंगे।
विजय निकोर
पर सूनापन पड़ा रहता है,
वहीं का वहीं,
पुराने कपड़ों की गठरी-सा।
इस सूनेपन का रंग
सूनेपन में आज कोई पूछे मुझसे।
सूनेपन को सुनदर और सहज रूप में व्यक्त किया आपने बधाई ..
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