पत्थर दिलों के पिघलने तो दो
ज़रा होश अपने संभलने तो दो
सारा चमन तो जलाया है तुमने
कोई फूल अब थोडा खिलने तो दो
हर शाख पर अब तो उल्लू है बैठा
कहीं इन परिंदों को मिलने तो दो
अंधेरों से डरते सभी हैं यहाँ पर
जरा तुम ये सूरज निकलने तो दो
ये आँखें ही कल की हकीकत रचेंगी
मगर आज ख्वाबों को पलने तो दो
-पुष्यमित्र उपाध्याय
Comment
//ये आँखें ही कल की हकीकत रचेंगी
मगर आज ख्वाबों को पलने तो दो//
क्या कहने भाई पुष्यमित्र जी , अच्छी ग़ज़ल कही है , बधाई स्वीकार करें ।
सुन्दर भाव ..
पुष्यमित्रजी, आपके संप्रेषण में अद्भुत संभावनाएँ हैं. आप सहज हैं यह आपकी विशिष्टता है. विधाओं को आत्मसात करें, भाई.
आपसे बहुत कुछ सुने की हार्दिक अपेक्षा है. शुभेच्छाएँ.
bahut sunder udgaar badhai ho upadhya ji
कोई फूल थोड़ा अब खिलने तो दो " अच्चा लगा . बधाई।
ये आँखें ही कल की हकीकत रचेंगी
मगर आज ख्वाबों को पलने तो दो
अ्च्छे भाव पिरोए हैं ... बधाई।
विजय निकोर
पत्थर दिलों के पिघलने तो दो
ज़रा होश अपने संभलने तो दो
सारा चमन तो जलाया है तुमने
कोई फूल अब थोडा खिलने तो दो... बहुत उम्दा बात कही भाई उपाध्याय जी ....
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