For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कोई फूल अब थोडा खिलने तो दो

पत्थर दिलों के पिघलने तो दो
ज़रा होश अपने संभलने तो दो

सारा चमन तो जलाया है तुमने
कोई फूल अब थोडा खिलने तो दो

हर शाख पर अब तो उल्लू है बैठा  
कहीं इन परिंदों को मिलने तो दो

अंधेरों से डरते सभी हैं यहाँ पर
जरा तुम ये सूरज निकलने तो दो

ये आँखें ही कल की हकीकत रचेंगी
मगर आज ख्वाबों को पलने तो दो

-पुष्यमित्र उपाध्याय

Views: 510

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 16, 2013 at 6:49pm

//ये आँखें ही कल की हकीकत रचेंगी
मगर आज ख्वाबों को पलने तो दो//

क्या कहने भाई पुष्यमित्र जी , अच्छी ग़ज़ल कही है , बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Parveen Malik on February 16, 2013 at 12:46pm

सुन्दर भाव ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 15, 2013 at 5:29pm

पुष्यमित्रजी, आपके संप्रेषण में अद्भुत संभावनाएँ हैं. आप सहज हैं यह आपकी विशिष्टता है. विधाओं को आत्मसात करें, भाई.

आपसे बहुत कुछ सुने की हार्दिक अपेक्षा है.  शुभेच्छाएँ.

Comment by Dr.Ajay Khare on February 15, 2013 at 1:16pm

bahut sunder udgaar badhai ho upadhya ji

Comment by mrs manjari pandey on February 15, 2013 at 9:56am

कोई फूल थोड़ा  अब खिलने तो दो "    अच्चा लगा . बधाई।

Comment by vijay nikore on February 15, 2013 at 1:49am

ये आँखें ही कल की हकीकत रचेंगी
मगर आज ख्वाबों को पलने तो दो

 

अ्च्छे भाव पिरोए हैं ...  बधाई।

विजय निकोर

 

Comment by नादिर ख़ान on February 15, 2013 at 12:18am

पत्थर दिलों के पिघलने तो दो
ज़रा होश अपने संभलने तो दो

सारा चमन तो जलाया है तुमने
कोई फूल अब थोडा खिलने तो दो... बहुत उम्दा बात कही भाई उपाध्याय जी ....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service