हर राह पर तेरी रजा
तू ही सनम तू ही खुदा
तो क्यों ही तेरे फैसलों पे
धूल सी जमी रही
बोल क्या कमी रही
क्यों ही तेरे दिल में वो, गैर ही बसा रहा,
क्यों लचकती बांह में गुल वही कसा रहा|
मैं भी तो पलाश बन बिछा था तेरी राह में,
मैं भी तो बहार सब लुटा रहा था चाह में|
क्यों दुआ में जागती
फिर आँख में नमी रही
बोल क्या कमी रही?
कैसे तेरे दिल से मैं नाम उसका खींच लूं,
या कि अपनी चाहतों के मैं गले ही भींच दूं|
तू देख मेरे हाथ से तिनके भी छूटते हुए,
तू देख नन्ही तितलियों के पंख टूटते हुए|
और वो खुदाई अपनी
नींद में रमी रही
बोल क्या कमी रही.....
-पुष्यमित्र
Comment
वाह बहुत खूब पुष्यमित्र जी..सुन्दर रचना हेतु बधाई स्वीकारें...
प्रेम में मिली हताशा, टूटन और व्यथा को सुन्दर शब्द मिले हैं. भुक्तभोगी शैली में कही गयी इस रचना े शब्द यथानुरूप भावुक हैं. रचना में यथोचित प्रवाह है.
अपने रचनाकर्म के कैनावस पर अन्य भाव रंगों को प्रयुक्त करने का भी प्रयास करें.
शुभेच्छाएँ. ..
आदरणीय अजय सर, मंजरी दीदी
अनुज का प्रणाम स्वीकार कीजिये
प्राची दीदी आपका स्नेह सदैव मुझे मिलता है
स्नेह के लिए प्रणाम स्वीकार कीजिये
राम जी बहुत बहुत धन्यवाद् जी
आदरणीय बागी सर,
आपका कोटि कोटि आभारी हूँ
स्नेह बनाये रखिये :)
आदरणीय पुष्यमित्र जी " क्यों दुआ में जगती फिर आँख में नमी रही" भावुक कर गई रचना बधाई।
upadhya ji dil se nikali rachana hai dil ko choo gai badhai
वियोग के दर्द से बिलखती रचना बहुत प्रवाहमय लिखी है आदरणीय पुष्यमित्र जी
तू देख मेरे हाथ से तिनके भी छूटते हुए,............पल पल उम्मीदों का टूटना
तू देख नन्ही तितलियों के पंख टूटते हुए|...........मासूम दिल के टूटते जाने को बहुत सुन्दर शब्द मिले हैं
हार्दिक बधाई
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