नए ख्वाब खुद को दिखाने लगे हैं
वो उनमें भी तशरीफ़ लाने लगे हैं
समंदर किनारे ठहरने को थोडा
लहरों को कितना मनाने लगे हैं
वही बात तुमसे जो कहनी थी छुपकर
महफ़िल में गाकर सुनाने लगे हैं
हैं करते खुशामद सितारों की अब तो
हर इक दर पे सर को झुकाने लगे हैं
भुला दे खिलौने दुपहरी के अब तो
तुझे सांझ लोरी सुनाने लगे हैं
-पुष्यमित्र
Comment
बहुत खूब
आदरणीय सौरभ सर आपने जो संशोधन बतलाये हैं उनमें मुझे पूर्व से ही संशय था मगर जैसा कि आपने कहा मायने बदल जायेंगे तो इसीलिए मैं दूसरा उपर्युक्त हल ढूंढ़ नहीं पाया किन्तु आपने मेरी दुविधा हल कर दी...आपके मार्गदर्शन अक कोटिशः आभारी हूँ| आगे भी आपके मार्ग्धार्शन की कामना करता हूँ, अनुज का प्रणाम स्वीकार कीजिये|
भाई पुष्यमित्र जी, इस ग़ज़ल को हमसब से साझा करने के लिए तो पहले बधाई.
इस ग़ज़ल को पढ़ते समय जो मुझे महसूस हो रहा था वो यही था कि या तो ग़ज़लकार ग़ज़ल की बह्र को अपने हिसाब से जानता-समझता है या मैं ही प्रयुक्त हुई बह्र के वज़्न को नहीं समझ पा रहा हूँ.
फिर ध्यान से देखा तो इस ग़ज़ल की बह्र मुतकारिब मुसम्मन सालिम, वज्न: १२२, १२२, १२२, १२२, है.
इस लिहाज से आपकी इस ग़ज़ल के कुछ मिसरे थोड़ा और ध्यान चाहते हैं. जैसे -
लहरों को कितना मनाने लगे हैं = यहाँ लहरों को ’किनारों’ कर दिया जाय या ऐसा ही कुछ तो समस्या ख़त्म. यानि, किनारों को कितना मनाने लगे हैं .. .
मगर आगे, ये तो आपको बेहतर मालूम होगा कि मिसरे की कहन में इस तब्दीली का क्या प्रभाव पड़ेगा.
महफ़िल में गाकर सुनाने लगे हैं = इस मिसरे में भी महफ़िल में को बदल कर ’भरी बज़्म’ कर दिया जाय समस्या ख़त्म. यानि, भरी बज़्म गाकर सुनाने लगे हैं .. या ऐसा ही कुछ
अब ग़ज़ल पर -
कहना न होगा कि इस ग़ज़ल के शेर अत्यंत भावुक हृदय से निकले हैं.
भुला दे खिलौने दुपहरी के अब तो
तुझे सांझ लोरी सुनाने लगे हैं
उपरोक्त शेर के लिए विशेष दाद दे रहा हूँ.. .
वही बात तुमसे जो कहनी थी छुपकर
महफ़िल में गाकर सुनाने लगे हैं
हैं करते खुशामद सितारों की अब तो
हर इक दर पे सर को झुकाने लगे हैं
भुला दे खिलौने दुपहरी के अब तो
तुझे सांझ लोरी सुनाने लगे हैं
sundar shabd
bahut hi badhiya ..
bahot khoob.........bhai g
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online