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कुछ चट-पटॆ शेर = मगर बड़ॆ दिलॆर ,,,,,
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एक मुशायरा कराया था,बाज़ कॆ बाप नॆ !!
नॆवलॆ की गज़ल पॆ,खूब दाद दी साँप नॆ !!१!!
शॆर की सदारत, निज़ामत थी बाघ की,
बकरॆ कॆ हाँथ पाँव लगॆ, खुद ही कांपनॆं !!२!!
मॆं-मॆं करता रहा वॊ,माइक पॆ बस खड़ा,
हिरण की नज़र लगी, हालत कॊ भाँपनॆ !!३!!
खरगॊश कॊ निमॊनिया, हॊ गया ठंड सॆ,
काला कुत्ता लगा उसॆ,कम्बल मॆं ढ़ाँपनॆ !!४!!
सियार कॊ सियासती, नज़लॆ नॆ जकड़ा,
बुझॆ अलाव कॊ ही, बॆचारा लगा तापनॆ !!५!!
खर्राटॆ हाँथी कॆ तॊड़, दियॆ थॆ अचानक,
कमसिन लॊमड़ी कॆ, सुरीलॆ आलाप नॆं !!६!!
छॆड़खानी हुई जमकॆ, दॊनॊं कॆ दरमियां,
अँगड़ाइयाँ ली जब,निज़ामी कॆ पाप नॆ !!७!!
लौटा था भालू बिना,सुनायॆ ही क़लाम,
टी.बी, की बीमारी थी, लगा था हाँफनॆ !!८!!
माइक था छॊटा,चिढ़ गया था ज़िराफ़,
संयॊजक कॊ जुटा था, वॊ बस श्राप नॆ !!९!!
चूहॊं बिल्लियॊं मॆं, ठन गई थी "राज"
समझौता करवाया था,जाकर कॆ आपनॆ !!१०!!
कवि- "राज बुन्दॆली"
२१/०२/२०१३
Comment
क्या ऐसा नहीं लग रहा है, राजभाई, आप आराम से ’सीखना’ चाहते हैं .. . सीखने में आराम किसी को सफल जानकार नहीं बनाता.
मेरा एक निवेदन था जो मैंने किया, उसे मानने की बाध्यता नहीं है.
Saurabh Pandey ,,,,जी,,,आदरणीय,,,,एक निवेदन है कि मुझे गज़ल के शिल्प का जरा भी ज्ञान नही है,,,,, मैने अपनी गज़ल की कक्षा मे भी यथा समय पढ़ने की कोशिश की लेकिन गुरु बिन होय न ज्ञान वाली बात हमेशा रही,,,,,,,,मेरा निवेदन है मंच सह-भागियॊं से कि जो भी इस विधा मे पारंगत है,,,,कृपया नि: संकोच इसमे तब्दीलियां करके पोस्ट कर दॆं,,,,,,शायद वह तब्दीलियाँ मेरा मार्ग दर्शन कर सकें,,,मंच का अहसान होगा मुझ पर,,,,,,,,,,,,, धन्यवाद,,,,,,,,,,,
Abhinav Arun,,,जी,,,,,,,,,,,,,,,धन्यवाद,,,,आभार,,,,,, मेनका गांधी ने सपने मे आकर कहा था कि आप जानवरो के बारे मे नही सोचते,,,,,सो लिखना पड़ा,,,,आपका,,,,,,,,,,,, इस जंगली मुशायरे में आपका स्वागत है आइये इसका आनंद लिया,,,,,,जाये,,,,,,,,,,
सियार कॊ सियासती, नज़लॆ नॆ जकड़ा,
बुझॆ अलाव कॊ ही, बॆचारा लगा तापनॆ !!५!!
खर्राटॆ हाँथी कॆ तॊड़, दियॆ थॆ अचानक,
कमसिन लॊमड़ी कॆ, सुरीलॆ आलाप नॆं !!६!!
वाह वाह राज जी ! टाइम टाइम पे ऐसे शेर भी टेस्ट बदलने के लिए ज़रूरी हैं आपने जायके का ख़याल रखा और तारीफ के काबिल शेर कहे हार्दिक बधाई !!
अयँ..? .. अरे भाई, हम तो उसी मुशायरे में थे सामयिन की तरह. तभी तो कुछ कह रहे थे. आप फिर बुला रहे हैं तो हम फिर आयेंगे... ज़रूर. आप ग़ज़ल के विधान पर ध्यान दीजिये और आगे से काफ़िया, बह्र आदि की गहनता को समझ कर अपनी ग़ज़ल पर मशक्कत कीजिये. फिर बुलाइये.
Saurabh Pandey,,,,,,जी,,,,,,,aadarneey,,,,,,,,धन्यवाद,,,,आभार,,,,,, मेनका गांधी ने सपने मे आकर कहा था कि आप जानवरो के बारे मे नही सोचते,,,,,सो लिखना पड़ा,,,,आपका,,,,,,,,,,,, इस जंगली मुशायरे में आपका स्वागत है आइये इसका आनंद लिया,,,,,,जाये,,,,,,,,,,
ये शेर जितने आसान लगते हैं वस्तुतः वैसे आसान हैं नहीं. राज साहब की वैचारिकता पर चकित हुआ मन बार-बार इन अश’आर के तंज़ पर बलैया ले रहा है. बहुत खूब भाईजी.. .
खरगॊश कॊ निमॊनिया, हॊ गया ठंड सॆ,
काला कुत्ता लगा उसॆ,कम्बल मॆं ढ़ाँपनॆ
खर्राटॆ हाँथी कॆ तॊड़, दियॆ थॆ अचानक,
कमसिन लॊमड़ी कॆ, सुरीलॆ आलाप नॆं..
इन दोनों शेरों में बहुत कुछ पिरोया है आपने. अपने आप में एक अलहदी प्रस्तुति है यह !
आपकी सृजनशीलता विस्मित करती है, राज साहब. सादर निवेदन है, आप ग़ज़ल के विधान पर थोड़ा और समय दें. कमाल करेंगी आपकी ग़ज़लें ! हार्दिक बधाई .. .
मित्रो,,,,,,,,,,,,,आपका,,,,,,आभार,,,,,, इस जंगली मुशायरे में आपका स्वागत है आइये इसका आनंद लिया,,,,,,जाये,,,,,,,,,,
Dr.Ajay Khare ,,,,,जी,,,,,,,,,,,,,,,धन्यवाद,,,,आभार आपका,,,,,,,,,,,, इस जंगली मुशायरे में आपका स्वागत है आइये इसका आनंद लिया,,,,,,जाये,,,,,,,,,,
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