For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

==========================
कुछ चट-पटॆ शेर = मगर बड़ॆ दिलॆर ,,,,,
==========================
एक मुशायरा कराया था,बाज़ कॆ बाप नॆ !!
नॆवलॆ की गज़ल पॆ,खूब दाद दी साँप नॆ !!१!!

शॆर की सदारत, निज़ामत थी बाघ की,
बकरॆ कॆ हाँथ पाँव लगॆ, खुद ही कांपनॆं !!२!!

मॆं-मॆं करता रहा वॊ,माइक पॆ बस खड़ा,
हिरण की नज़र लगी, हालत कॊ भाँपनॆ !!३!!

खरगॊश कॊ निमॊनिया, हॊ गया ठंड सॆ,
काला कुत्ता लगा उसॆ,कम्बल मॆं ढ़ाँपनॆ !!४!!

सियार कॊ सियासती, नज़लॆ नॆ जकड़ा,
बुझॆ अलाव कॊ ही, बॆचारा लगा तापनॆ !!५!!

खर्राटॆ हाँथी कॆ तॊड़, दियॆ थॆ अचानक,
कमसिन लॊमड़ी कॆ, सुरीलॆ आलाप नॆं !!६!!

छॆड़खानी हुई जमकॆ, दॊनॊं कॆ दरमियां,
अँगड़ाइयाँ ली जब,निज़ामी कॆ पाप नॆ !!७!!

लौटा था भालू बिना,सुनायॆ ही क़लाम,
टी.बी, की बीमारी थी, लगा था हाँफनॆ !!८!!

माइक था छॊटा,चिढ़ गया था ज़िराफ़,
संयॊजक कॊ जुटा था, वॊ बस श्राप नॆ !!९!!

चूहॊं बिल्लियॊं मॆं, ठन गई थी "राज"
समझौता करवाया था,जाकर कॆ आपनॆ !!१०!!

कवि- "राज बुन्दॆली"
२१/०२/२०१३

Views: 731

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 25, 2013 at 10:29pm

क्या ऐसा नहीं लग रहा है, राजभाई, आप आराम से ’सीखना’ चाहते हैं .. . सीखने में आराम किसी को सफल जानकार नहीं बनाता.

मेरा एक निवेदन था जो मैंने किया, उसे मानने की बाध्यता नहीं है.

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 25, 2013 at 10:06pm
आदरणीय बुंदेली साहब!कल्पना की क्या उन्मुक्त उड़ान भरा है आपने।यह तो बिल्कुल अद्भुत सा लग रहा है।गजल के प्रत्येक शेर में कल्पना रस टपकता है।जिसकी प्रत्येक बूंद के लिये आपको बधाई।
Comment by कवि - राज बुन्दॆली on February 25, 2013 at 9:41pm

Saurabh Pandey ,,,,जी,,,आदरणीय,,,,एक निवेदन है कि मुझे गज़ल के शिल्प का जरा भी ज्ञान नही है,,,,, मैने अपनी गज़ल की कक्षा मे भी यथा समय पढ़ने की कोशिश की लेकिन गुरु बिन होय न ज्ञान वाली बात हमेशा रही,,,,,,,,मेरा निवेदन है मंच सह-भागियॊं से कि जो भी इस विधा मे पारंगत है,,,,कृपया नि: संकोच इसमे तब्दीलियां करके पोस्ट कर दॆं,,,,,,शायद वह तब्दीलियाँ मेरा मार्ग दर्शन कर सकें,,,मंच का अहसान होगा मुझ पर,,,,,,,,,,,,, धन्यवाद,,,,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on February 25, 2013 at 9:35pm

Abhinav Arun,,,जी,,,,,,,,,,,,,,,धन्यवाद,,,,आभार,,,,,, मेनका गांधी ने सपने मे आकर कहा था कि आप जानवरो के बारे मे नही सोचते,,,,,सो लिखना पड़ा,,,,आपका,,,,,,,,,,,, इस जंगली मुशायरे में आपका स्वागत है आइये इसका आनंद लिया,,,,,,जाये,,,,,,,,,,

Comment by Abhinav Arun on February 25, 2013 at 3:20pm

सियार कॊ सियासती, नज़लॆ नॆ जकड़ा,
बुझॆ अलाव कॊ ही, बॆचारा लगा तापनॆ !!५!!

खर्राटॆ हाँथी कॆ तॊड़, दियॆ थॆ अचानक,
कमसिन लॊमड़ी कॆ, सुरीलॆ आलाप नॆं !!६!!

वाह वाह राज जी ! टाइम टाइम पे ऐसे शेर भी टेस्ट बदलने के लिए ज़रूरी हैं आपने जायके का ख़याल रखा और तारीफ के काबिल शेर कहे हार्दिक बधाई !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 25, 2013 at 1:29pm

अयँ..?  .. अरे भाई, हम तो उसी मुशायरे में थे सामयिन की तरह. तभी तो कुछ कह रहे थे. आप फिर बुला रहे हैं तो हम फिर आयेंगे... ज़रूर.  आप ग़ज़ल के विधान पर ध्यान दीजिये और आगे से काफ़िया, बह्र आदि की गहनता को समझ कर अपनी ग़ज़ल पर मशक्कत कीजिये. फिर बुलाइये.

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on February 25, 2013 at 11:35am

Saurabh Pandey,,,,,,जी,,,,,,,aadarneey,,,,,,,,धन्यवाद,,,,आभार,,,,,, मेनका गांधी ने सपने मे आकर कहा था कि आप जानवरो के बारे मे नही सोचते,,,,,सो लिखना पड़ा,,,,आपका,,,,,,,,,,,, इस जंगली मुशायरे में आपका स्वागत है आइये इसका आनंद लिया,,,,,,जाये,,,,,,,,,,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 25, 2013 at 3:17am

ये शेर जितने आसान लगते हैं वस्तुतः वैसे आसान हैं नहीं. राज साहब की वैचारिकता पर चकित हुआ मन बार-बार इन अश’आर के तंज़ पर बलैया ले रहा है. बहुत खूब भाईजी.. .

खरगॊश कॊ निमॊनिया, हॊ गया ठंड सॆ,
काला कुत्ता लगा उसॆ,कम्बल मॆं ढ़ाँपनॆ

खर्राटॆ हाँथी कॆ तॊड़, दियॆ थॆ अचानक,
कमसिन लॊमड़ी कॆ, सुरीलॆ आलाप नॆं..

इन दोनों शेरों में बहुत कुछ पिरोया है आपने.  अपने आप में एक अलहदी प्रस्तुति है यह !

आपकी सृजनशीलता विस्मित करती है, राज साहब. सादर निवेदन है, आप ग़ज़ल के विधान पर थोड़ा और समय दें. कमाल करेंगी आपकी ग़ज़लें ! हार्दिक बधाई .. .

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on February 24, 2013 at 12:27pm

मित्रो,,,,,,,,,,,,,आपका,,,,,,आभार,,,,,, इस जंगली मुशायरे में आपका स्वागत है आइये इसका आनंद लिया,,,,,,जाये,,,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on February 23, 2013 at 8:17pm

Dr.Ajay Khare ,,,,,जी,,,,,,,,,,,,,,,धन्यवाद,,,,आभार आपका,,,,,,,,,,,, इस जंगली मुशायरे में आपका स्वागत है आइये इसका आनंद लिया,,,,,,जाये,,,,,,,,,,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service