मौलिक
अप्रकाशित
मसले सुलझाने चला, आतंकी घुसपैठ ।
खटमल स्लीपर सेल बना, रेकी रेका ऐंठ ।
रेकी रेका ऐंठ, मुहैया असल असलहा ।
विकट सीरियल ब्लास्ट, लाश पर लगे कहकहा ।
सत्ता है असहाय, बढ़ें नित बर्बर नस्लें ।
मसले होते हिंस्र, जाय ना खटमल मसले ।
Comment
आभार आदरणीय ||
choti churi ki tarah hai rachna...bahut sundar ...Ravikar sahab....
बहुत ही सामयिक एवं देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर वाली रचना, शब्दों का इतना अद्भुत प्रयोग अनायास ही आपके सामने सिर को झुका देता है, सादर
आभार आदरणीय ||
सही है, आदरणीय, खटमलों का न मसला जाना सारे मसलों की जड़ है.
विंध्येश्वरी जी के सुन्दर सुझाव के लिए और आप द्वारा उसके अनुमोदन के लिए हार्दिक बधाई. परस्पर स्नेह और आदर के माहौल में क्या कुछ नहीं सध जाता !!
शुभ-शुभ
बहुत मजेदार अद्भुद शैली विकसित हो रही आपकी
हाँ जी-
खटमल स्लीपर सेल ज्यों--
आभार उचित है यह-
सादर
आभार आदरणीय-
(स्लीपर-सेल = ४+२ मात्रा / उच्चारण की दृष्टि से लिया है )
क्या ऐसी छूट का कोई प्रावधान नहीं है आदरणीय -
सादर
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