For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जजिया कर फिर जिया, जियाये बजट हालिया-

 

मौलिक / अप्रकाशित

करकश करकच करकरा, कर करतब करग्राह ।
तरकश से पुरकश चले, डूब गया मल्लाह ।
डूब गया मल्लाह, मरे सल्तनत मुगलिया ।
जजिया कर फिर जिया, जियाये बजट हालिया ।
धर्म जातिगत भेद, याद आ जाते बरबस ।
जीता औरंगजेब, जनेऊ काटे करकश ।

करकश=कड़ा करकच=समुद्री नमक
करकरा=गड़ने वाला
कर = टैक्स
करग्राह = कर वसूलने वाला राजा

Views: 803

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 2, 2013 at 5:51pm

आदरणीय रविकर जी,

अलंकारों से समृद्ध इस सामयिक कथ्य युक्त और निर्बाध प्रवाहमय कुण्डलिया के लिए बहुत बहुत बधाई.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 2, 2013 at 5:49pm

आदरणीय सौरभ जी, मंच पर मौलिक और अप्रकाशित रचनाओं को ही प्रकाशन योग्य समझने के पीछे के दर्शन और वास्तविक उद्देश्य को सबके सामने विस्तारपूर्वक रखने के लिए आपका आभार...यदि उचित समझें तो इसे एक अलग पोस्ट की तरह भी फोरम में ज़रूर पेश करें, ताकि यदि कोइ भी कभी भी इस विषय में असंतुष्ट हो तो अपनी जिज्ञासा का उचित उत्तर पा सके..

सादर

शुभेच्छाएँ 

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 1, 2013 at 6:23pm

आदरणीय रविकर जी बहुत ही सुन्दर व सारगर्भित रचना है।अनुप्रास की छटा दर्शनीय।बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 1, 2013 at 6:05pm

इस रचना पर हुए एक जागरुक पाठक भाई संजय जी द्वारा मंच के नियमों के प्रति आग्रही होना और इस हेतु रचनाकारों को उत्प्रेरित करना इस मंच के युवा पाठकों और जागरुक सदस्यों के लगातार प्रौढ होते जाने के प्रमाण सदृश है.

काश इस भावना के तहत सभी रचनाकार उदार तथा सहयोगी दृष्टि अपनाते.. . इस तथ्य को समझते हुए कि आखिर प्रबन्ध-सम्पादक द्वारा अनुमन्य और प्रबन्धन द्वारा अपनाये गये नियम ’मौलिक और अप्रकाशित’ रचनाओं को ही प्रकाशन योग्य समझे जाने की बाध्यता के पीछे का वास्तविक उद्येश्य और महती दर्शन है क्या ? इस नियम की पवित्रता है कितनी ? वास्तविक सकारात्मक भावना है क्या ? लेकिन आज ऐसा हुआ नहीं दीखा. इसके उलट आदरणीय रविकर जी की प्रस्तुति हास्यास्पद रूप से मिनट और सेकेण्डों के मकड़जाल में उलझी और उलझायी गयी.

 

बात असहज कत्तई न लगे, सादर निवेदन कर रहा हूँ, कि यह मंच एक पवित्र उद्येश्य और व्यापक दर्शन के साथ अपनी उपस्थिति हेतु कृतसंकल्प है  --स्थापित हस्ताक्षरों और नव-हस्ताक्षरों को एक स्तर पर ला कर रचनाधर्मिता की पवित्रता को पगायी जाय.  सभी रचनाकार उदार वातावरण में वरिष्ठों के सान्निध्य में ’सीखने-सिखाने’ के सनातनी व्यवहार को अपनाते हुए रचनाकर्म करें.

रचनाकर्म में सिद्धहस्तता या प्राप्य ऊँचाई एकनिष्ट, सतत और दीर्घकालिक प्रयास से ही संभव है, इस समझ के अंतर्गत ही यह नियम अपनाया गया कि हर रचनाकार इस पटल पर सद्यःरचित और नेट की दुनिया में अप्रकाशित रचना ही प्रस्तुत करे,   ताकि हर रचना के साथ उसका अभ्यास प्रगाढ़ होता जाय.   उस रचना पर खूब मीमांसा और विवेचन होले ताकि एक नया रचनाकार रचनाकर्म के मौलिक विन्दुओं को पूरी तरह से आत्मसात कर ले.

ओबीओ के प्रबन्धन को यह खूब भान है कि हर रचनाकार अपने साहित्यिक जीवन में बहुत कुछ ऐसा लिखता है जो अत्यंत प्रभावकारी हुआ करता है. वह ऐसी रचनाओं को अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचाना भी चाहता है. लेकिन ओबीओ का मंच ऐसी पूर्व प्रकाशित रचनाओं के लिए कत्तई नहीं है. कारण कि, रचनाकर्म स्थायी जल-जमाव की तरह न हो कर निरंतर बहते प्रवाह की तरह होता है. नित नूतन..  और यह भी, कि पुरानी रचनाएँ या अन्य स्थानों पर साझा हो चुकी रचनाएँ पाठक/श्रोता की हो चुकी होती है, उन पर सुधार के लिए मीमांसा,  विवेचना या बहस नहीं हो सकती. या, होती भी है तो ऐसी समीक्षाएँ नीर-क्षीर की तरह होती हैं, सीखने-सिखाने के उद्येश्य से नहीं.

किसी को अन्यथा न लगे, यह मंच मात्र विद्वताप्रदर्शन के लिए कभी नहीं है. यह रचना प्रस्तुति के साथ-साथा अभ्यास हेतु किसी कक्षा के बोर्ड की तरह भी है. उचित होगा कि हम इस मंच को अपनी अत्यंत समृद्ध और मौलिक रचना दें, ताकि सारा साहित्यिक विश्व प्रयासकर्ता की प्रस्तुति से झंकृत हो उठे.   लेकिन इससे पहले, रचना पर खूब विवेचन और मर्दन तो होले, ताकि किसी अन्य मंच से उक्त रचना पर अनावश्यक उँगली न उठे.

हम कितने बजे कहाँ अपनी रचना पोस्ट किये की रिपोर्ट लिस्ट रखने की जगह क्यों न हम यह रिपोर्ट लिस्ट रखें कि हमने ओबीओ के मंच से रचनाओं की कितनी विधाएँ सीखीं. या, हमने रचनाकर्म के लिहाज से भाषा, भावना, शब्द, व्याकरण और संप्रेषण के अंतर्गत क्या और कितना सीखा ?  फिर विद्वता की उड़ान दिखाने को तो सारा विश्व ही आकाश है. 

सादर ..

पुनः .. भाई संजय जी, आपकी जागरुकता और पाठकधर्म हेतु समर्पण के प्रति हम विशेष आदर रखते हैं. एक संवेदनशील रचनाकार और मंच के लिए एक जागरुक पाठक अवश्य ही सबसे सही मार्गदर्शक होता है.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 1, 2013 at 5:21pm

आदरणीय रविकर जी / प्रिय अरुण जी, 

तकनीकी बाते अपनी जगह, मैं यह कहना चाहता हूँ कि हम सभी को इस नियम के पीछे स्थित उद्देश्य को समझना होगा । अच्छा होगा कि ओ बी ओ पर रचना प्रकाशित होने तक इन्तजार किया जाय ताकि नियम की गरिमा बनी रहे ।

आदरणीय संजय जी आप सजग पाठक है, आपका धन्यवाद । 

Comment by अरुन 'अनन्त' on March 1, 2013 at 5:14pm

वाह आदरणीय गुरुदेव श्री वाह हालिया बजट पर आधारित बहुत सटीक कुंडलिया रची है आपने. इस शानदार कुंडलिया के लिए भूरि-भूरि बधाई गुरुदे श्री. सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on March 1, 2013 at 5:05pm

आपका सदैव स्वागत है आदरणीय गुरुदेव श्री मैं जानता हूँ कि आप लैपटॉप की गेस्ट विंडो इतेमाल करते हैं और आप समय का परिवर्तन नहीं सकते हैं जब तक की आप एडमिन से लॉग इन न करें.

Comment by रविकर on March 1, 2013 at 5:02pm

बहुत बहुत आभार
प्रिय अरुण जी-
अब अवश्य ही --
आदरणीय पाठक की शंका का समाधान हो गया होगा-
यहाँ मेरे ब्लॉग पर उनकी टिप्पणी का प्रकाशन समय २.४१ दिख रहा है-
मैं इस कम्पू का एडमिन नहीं हूँ -इस लिए यह सेटिंग ठीक नहीं कर पा रहा -

Comment by अरुन 'अनन्त' on March 1, 2013 at 4:55pm

आदरणीय संजय जी गुरुदेव श्री रविकर सर वर्तमान पोस्ट कंप्यूटर महाशय के कारण के दिन पहले की दिखती है परन्तु वो मौलिक एवं अप्रकाशित होती है. एक बार ओ. बी. ओ. पर अनुमोदित होने के पश्चात् ही ब्लॉग या अन्य जगह पर पोस्ट करते हैं. कृपया निचे दिए गए चित्र में FRIDAY, 1 March 2013 समय २:४१ देखें. सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on March 1, 2013 at 4:51pm

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा पंचक - राम नाम
"वाह  आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत ही सुन्दर और सार्थक दोहों का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई…"
21 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
दिनेश कुमार posted a blog post

प्रेम की मैं परिभाषा क्या दूँ... दिनेश कुमार ( गीत )

प्रेम की मैं परिभाषा क्या दूँ... दिनेश कुमार( सुधार और इस्लाह की गुज़ारिश के साथ, सुधिजनों के…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

दोहा पंचक - राम नाम

तनमन कुन्दन कर रही, राम नाम की आँच।बिना राम  के  नाम  के,  कुन्दन-हीरा  काँच।१।*तपते दुख की  धूप …See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"अगले आयोजन के लिए भी इसी छंद को सोचा गया है।  शुभातिशुभ"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका छांदसिक प्रयास मुग्धकारी होता है। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह, पद प्रवाहमान हो गये।  जय-जय"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी, आपकी संशोधित रचना भी तुकांतता के लिहाज से आपका ध्यानाकर्षण चाहता है, जिसे लेकर…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई, पदों की संख्या को लेकर आप द्वारा अगाह किया जाना उचित है। लिखना मैं भी चाह रहा था,…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए है।हार्दिक बधाई। भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ । "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, हार्दिक धन्यवाद  आभार आपका "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service