कच्चे रास्ते में, रास्ता होने की,
असली खुश्बू होती है।
वह चलता है और चलाता है
उसमें खुद को बदलने की हिम्मत है
वह कभी अहम नहीं करता।
वह बरसात की खुशबू को,
सुंदरता को,अच्छी तरह से परख़ता,
पहचानता है।
क्योंकि वह बरसात को सीने से लगा लेता है
वह आस-पास के पेड-पौधों से नहीं शर्माता।
उसे पता है कि शर्म उसकी खुशियों को रोकती है
उसे यह भी पता है
कि यह काम लोगों का है उसका नहीं।
वह अपने तन को धूल बनाकर
हवा के साथ हंसता हुआ उडा देता है
वह गीता के आत्म ज्ञान को कहता नहीं, भोगता है।
वह पक्का होना नहीं चाहता
वह आदमी से प्यार तो करता है
लेकिन उसे हमेशा यही डर सताता है
कंही वह उसे पक्का न कर दे।।
...........................सूबे सिंह सुजान...........
Comment
vijay nikore, जी आपको भी बधाई,,, और आपका बहुत धन्यवाद
pawan amba ..........जी बहुत शुक्रिया
कौन जिन्दा रहा है यहां देर तक
मनोज भाई, आप सब का प्रेम मेरे लिये बहुत लाभदायी है।।।
आप सबके प्रेम के लिये धन्यवादय़य़य़।।।।।।।।।।।।।।।
पुरूस्कार के लिए बधाई!
बहुत खूब भाई |
आदरणीय सूबे सिहं जी’
एक बहुत ही दिलकश कविता के लिए बधाई।
विजय निकोर
वह अपने तन को धूल बनाकर
हवा के साथ हंसता हुआ उडा देता है
वह गीता के आत्म ज्ञान को कहता नहीं, भोगता है।...bahut sundar waahhh...Sujan Sahab
आप सबका बेहद शुक्रिया
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