एक नई ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले कर रहा हूँ, जैसी लगे वैसे नवाजें
उलझनों में गुम हुआ फिरता है दर-दर आइना |
झूठ को लेकिन दिखा सकता है पैकर आइना |
शाम तक खुद को सलामत पा के अब हैरान है,
पत्थरों के शहर में घूमा था दिन भर आइना |
गमज़दा हैं, खौफ़ में हैं, हुस्न की सब देवियाँ,
कौन पागल बाँट आया है ये घर-घर आइना |
आइनों ने खुदकुशी कर ली ये चर्चा आम है,
जब ये जाना था की बन बैठे हैं पत्थर, आइना |
मैंने पल भर झूठ-सच पर तब्सिरा क्या कर दिया,
रख गए हैं लोग मेरे घर के बाहर आइना |
अपना अपना हौसला है, अपने अपने फैसले,
कोई पत्थर बन के खुश है कोई बन कर आइना |
मौलिक, अप्रकाशित व अप्रसारित
Comment
बेहतरीन कहा है वीनस जी, यूं तो गज़ल मुझे बड़ी टेढ़ी खीर लगती है किंतु इतनी सुंदर गज़ल देख कर जी वाह-वाह जरूर करता है
दिनेश साहिब, शुक्रिया
सलीम साहिब तहे दिल से ममनूनो मशकूर हूँ
@ बाली भाई आपकी नज़रे इनायत यूं ही बनी रहे .. आमीन
@ बबृजेश जी हर शेर को लाजवाब कह कर आपने मुझे भी लाजवाब कर दिया ..
बाह्य लिंक होने के कारण ओ बी ओ नियमानुसार यह टिप्पणी हटाई जा रही है ।
एडमिन
2013022701
VINAS JI ''AAINA'' RADEEF KO NIBHATE HUE AAPNE BAHUT UMDA GAZAL LIHI HAI ..IS SHER PAR DUAAEN KHAS ..अपना अपना हौसला है, अपने अपने फैसले,
कोई पत्थर बन के खुश है कोई बन कर आइना ..//
वाह भाई वीनस बहुत अच्छी ज़मीन पे बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही है ...पूरी की पूरी ग़ज़ल ही बेमिशल हुई है...किसी एक शेर को कैसे कहें की ये अच्छा है...बहुत बहुत मुबारकबाद कुबूल करें !
वाह क्या बात! बहुत बेहतरीन! हर शेर लाजवाब!
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