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ग़ज़ल - उलझनों में गुम हुआ फिरता है दर-दर आइना

एक नई ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले कर रहा हूँ, जैसी लगे वैसे नवाजें

उलझनों में गुम हुआ फिरता है दर-दर आइना |
झूठ को लेकिन दिखा सकता है पैकर आइना |

शाम तक खुद को सलामत पा के अब हैरान है,
पत्थरों के शहर में घूमा था दिन भर आइना |

गमज़दा हैं, खौफ़ में हैं, हुस्न की सब देवियाँ,
कौन पागल बाँट आया है ये घर-घर आइना |

आइनों ने खुदकुशी कर ली ये चर्चा आम है,
जब ये जाना था की बन बैठे हैं पत्थर, आइना |

मैंने पल भर झूठ-सच पर तब्सिरा क्या कर दिया,
रख गए हैं लोग मेरे घर के बाहर आइना |

अपना अपना हौसला है, अपने अपने फैसले,
कोई पत्थर बन के खुश है कोई बन कर आइना |

मौलिक, अप्रकाशित व अप्रसारित

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Comment by राजेश 'मृदु' on February 27, 2013 at 3:18pm

बेहतरीन कहा है वीनस जी, यूं तो गज़ल मुझे बड़ी टेढ़ी खीर लगती है किंतु इतनी सुंदर गज़ल देख कर जी वाह-वाह जरूर करता है

Comment by वीनस केसरी on February 27, 2013 at 1:28pm

दिनेश साहिब, शुक्रिया

Comment by वीनस केसरी on February 27, 2013 at 1:27pm

सलीम साहिब तहे दिल से ममनूनो मशकूर हूँ

Comment by वीनस केसरी on February 27, 2013 at 1:26pm

@ बाली भाई आपकी नज़रे इनायत यूं ही बनी रहे .. आमीन

Comment by वीनस केसरी on February 27, 2013 at 1:26pm

@ बबृजेश जी हर शेर को लाजवाब कह कर आपने मुझे भी लाजवाब कर दिया ..

Comment by DINESH PAREEK on February 27, 2013 at 9:48am

बाह्य लिंक होने के कारण ओ बी ओ नियमानुसार यह टिप्पणी हटाई जा रही है ।

एडमिन 

2013022701

Comment by SALIM RAZA REWA on February 27, 2013 at 9:43am

VINAS JI ''AAINA'' RADEEF KO NIBHATE HUE AAPNE BAHUT UMDA GAZAL LIHI HAI ..IS SHER PAR DUAAEN KHAS ..अपना अपना हौसला है, अपने अपने फैसले,
कोई पत्थर बन के खुश है कोई बन कर आइना ..//

 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on February 26, 2013 at 11:49pm

वाह भाई वीनस बहुत अच्छी ज़मीन पे बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही है ...पूरी की पूरी ग़ज़ल ही बेमिशल हुई है...किसी एक शेर को कैसे कहें की ये अच्छा है...बहुत बहुत मुबारकबाद कुबूल करें !

Comment by बृजेश नीरज on February 26, 2013 at 11:45pm

वाह क्या बात! बहुत बेहतरीन! हर शेर लाजवाब!

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