मौलिक / अप्रकाशित
जीना मुश्किल हो गया, बोला घपलेबाज |
पहले जैसा ना रहा, यह कांग्रेसी राज |
यह कांग्रेसी राज, नियम से करूँ घुटाला |
पर सांसत में जान, पडा इटली से पाला |
बनवाया उस रोज, आय व्यय का तख्मीना |
जीते चालीस चोर, रोज मरती मरजीना ||
बजट = आय व्यय का तख्मीना
Comment
achha likha hai sir
BADHIYA LIKHA HAI
आदरणीय त्रिपाठी जी-
शायद अब अधिक स्पष्ट है कथ्य -
यह कांग्रेसी राज, नियम से करूँ घुटाला |
खुल जाती झट पोल, पडा इटली से पाला |
आभार आदरणीय सौरभ सर -
इंगितों के माध्यम से बात करना तो कोई आपसे सीखे, आदरणीय. जीते चालीस चोर, रोज़ मरती मरजीना .. के कूट पर आपने आजके माहौल में सामान्य गृहणियों की दशा का सुन्दर वर्णन किया है.
बधाई.. .
आभार आदरणीय पाठक जी |
आभार आदरणीय त्रिपाठी जी-
घपले अब जल्दी उजागर होने लगे हैं-
कुछ और स्पस्ट करने की कोशिश करता हूँ-
सुधार लेता हूँ-
सादर ||
आदरणीय रविकर जी!एक सामयिक कुंडलिया के लिये बधाई।
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