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जीते चालीस चोर, रोज मरती मरजीना-

मौलिक / अप्रकाशित


जीना मुश्किल हो गया, बोला घपलेबाज |
पहले जैसा ना रहा, यह कांग्रेसी राज |


यह कांग्रेसी राज, नियम से करूँ घुटाला |
पर सांसत में जान, पडा इटली से पाला |


बनवाया उस रोज, आय व्यय का तख्मीना |
जीते चालीस चोर, रोज मरती मरजीना ||

बजट = आय व्यय का तख्मीना

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Comment

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Comment by pawan amba on March 3, 2013 at 1:58pm

achha likha hai sir

Comment by Abhinav Arun on March 2, 2013 at 6:34pm
आनँदित हूँ वाह रविकर जी !
Comment by Dr.Ajay Khare on March 2, 2013 at 4:24pm

BADHIYA LIKHA HAI

Comment by रविकर on March 2, 2013 at 3:49pm

आदरणीय त्रिपाठी जी-

शायद अब अधिक स्पष्ट है कथ्य -

यह कांग्रेसी राज, नियम से करूँ घुटाला |

खुल जाती झट पोल, पडा इटली से पाला |

Comment by रविकर on March 2, 2013 at 3:43pm

आभार आदरणीय सौरभ सर -


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 2, 2013 at 3:41pm

इंगितों के माध्यम से बात करना तो कोई आपसे सीखे, आदरणीय. जीते चालीस चोर, रोज़ मरती मरजीना .. के कूट पर आपने आजके माहौल में सामान्य गृहणियों की दशा का सुन्दर वर्णन किया है.

बधाई.. .

Comment by रविकर on March 2, 2013 at 3:41pm

आभार आदरणीय पाठक जी |

आभार आदरणीय त्रिपाठी जी-
घपले अब जल्दी उजागर होने लगे हैं-
कुछ और स्पस्ट करने की कोशिश करता हूँ-
सुधार लेता हूँ-
सादर ||

Comment by ram shiromani pathak on March 2, 2013 at 3:27pm

आदरणीय रविकर जी!एक सामयिक कुंडलिया के लिये बधाई।

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 1, 2013 at 9:55pm
आदरणीय रविकर जी!एक सामयिक कुंडलिया के लिये बधाई।
निम्न पंक्तियां पर पुन: गौर मांगती हैं-
//जीना मुश्किल हो गया, बोला घपलेबाज |
पहले जैसा ना रहा, यह कांग्रेसी राज |//
इन दोनो पंक्तियों में साम्यता नजर नहीं आ रही है,क्या कांग्रेसी राज पहले कम सख्त था या पहले अधिक घोटाले होते थे,अब कांग्रेस अधिक सख्त हो गया है,जो घपलेबाज सांसत में आ गये?

दूसरी बात दोहे कि दूसरी पंक्ति में //ना// का प्रयोग हिन्दी खड़ीबोली में ठीक नहीं माना जाता।क्या इस पंक्ति को इस तरह पढ़ना ठीक न होगा-
//पहले जैसा अब नहीं,यह कांग्रेसी राज//
आप प्रबुद्ध और रचना-कर्म सिद्धहस्त हैं देख लीजियेगा।

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