For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लिखना चाहता हूँ

लिखना चाहता हूँ


वो गाँव की अमराई
बहार आते ही जो बौराई
सरसों की अंगड़ाई
बाली बाली गदराई


पर कैसे ??
कहाँ से ले आऊँ
वो रंग भरी स्याही
स्याही ????
कहाँ से ले आऊँ
वो क़लम
जो सफाह पे
चले और भरने लगे
हर्फ हर्फ
रंगीन
बिलकुल बासंती
आए वो
मादक सुगंध
चहकें परिंदे
कूके कोयल
हर्फ दर हर्फ


लिखना चाहता हूँ
बसंत तुम्हे
अल्फाज़ों मे
समेट लेना चाहता हूँ

नये नये कोपल
की किलकारी
शबनम से भीगी
सब्ज़ मुलायम
कालीन
में बैठे
सुनता हूँ जो
मस्त भीनी भीनी
खुनक खुनक सी
हवा
कानों मे छेड जाती है
कभी मीठी सी नज़्म
कभी ग़ज़ल

मैं देना चाहता हूँ
तुम्हे शब्द
बसंत
मैं लिखना चाहता हूँ

मैं पूछ्ता हूँ
फुटपाथ पे पड़े लोगों से
कैसा लग रहा है
अब तो बहार आ गयी न !!
तब उनके चेहरों के
भाव
देख तुरंत आन खड़ा होता है
पतझड़
और टूट जाता है
तुम्हे समेटने का साहस

जो दिन रात तेरी आगोश में है
वो तड़प रहा है
तो हम तो घरों मे
चुपचाप
८ बजे सो कर उठने वाले हैं

नहीं नहीं
इस भ्रम को कैसे लिखूं
बसंत
मैं लिखना चाहता हूँ
और हर बार की तरह
होता हूँ असफल

हारा हुआ
हूँ मैं
शब्दों से
कैसे जीतूं


संदीप पटेल "दीप"

Views: 622

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 8, 2013 at 7:12am

आदरणीय ब्रजेश जी , आदरणीय मोहन जी सादर प्रणाम

आपने इस प्रयास को सराहा आपका कोटि कोटि आभार

स्नेह यूँ  ही  बनाये रखिये

Comment by मोहन बेगोवाल on March 7, 2013 at 11:06pm

दीप जी ,आप ने बहुत अच्छा चित्रण किया ,बधाई हो 

Comment by बृजेश नीरज on March 7, 2013 at 10:15pm

बहुत सुन्दर कविता! इससे सुन्दर आभास बसन्त का होता भी नहीं होगा किसी की। चाहे आठ बजे सोकर उठने वाला हो या फुटपाथ पर रहने वाला, उनके एहसास को सटीक शब्द मिले यहां।

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 7, 2013 at 8:14pm

आदरणीय रविकर सर जी ,आदरणीय लक्ष्मण सर जी , आदरणीय विजय सर जी सादर प्रणाम

रचना कर्म को सराहने हेतु आपका बहुत बहुत आभार स्नेह यूँ ही बनाये रखिये अनुज पर

Comment by vijay nikore on March 7, 2013 at 6:12pm

आदरणीय संदीप जी,

 

बहुत ही मार्मिक और सुन्दर कविता लिखी है।

बधाई।

 

सादर

विजय

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 7, 2013 at 5:11pm

मैं पूछ्ता हूँ फुटपाथ पे पड़े लोगों से 
कैसा लग रहा है अब तो बहार आ गयी न !!
तब उनके चेहरों के भाव 
देख तुरंत आन खड़ा होता है 
पतझड़ और टूट जाता है 
तुम्हे समेटने का साहस ---वाह ! बहुत सुन्दर , बधाई श्री संदीप कुमार पटेल जी 

Comment by रविकर on March 7, 2013 at 5:00pm

बढ़िया है आदरणीय-
शुभकामनायें-

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service