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ज़रूरी नहीं

कि हम पीटें ढिंढोरा

कि हम अच्छे दोस्त हैं

कि हमें आपस में प्यार है

कि हम पडोसी भी हैं

कि हमारे साझा रस्मो-रिवाज़ हैं

कि हमारी मिली-जुली विरासतें हैं

कतई ज़रूरी नहीं है ये

कि हम दुनिया के सामने

अपने प्यार का इज़हार करें

क्योंकि जब दोस्ती टूटती है

जब प्यार नफरत में बदलता है

तब रिश्तों में खटास आती है

तब दिल टूट जाते हैं

तब अकबका जाते हैं वे लोग

जिनके दिल मोम हैं

जो सरल हैं

जो सहज हैं

सीधे-सादे हैं

जिन्हें नहीं आती

पोलिटिक्स की क-ख-ग....

थोड़ी सी भी

इत्ती सी भी....

 

कुछ तो सोचो

ऐसे नादानों के लिए.....

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 12, 2013 at 12:50pm

सरल सहज सीधे साधे के लिए, सहज संवेद्नलशील ही सोचते है, उन्हें प्यार के दिखावे की जरूरत नहीं, 

सीधी सरल सहज रचना के माध्यम से सुन्दर सन्देश के लिए बधाई स्वीकारे श्री अनवर भाई 

Comment by Dr.Ajay Khare on March 12, 2013 at 11:03am

jab dil tootte hai to beech ke log maja bhi poora lete hai badhai sunder soch ke liye

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 12, 2013 at 7:27am

बेहतरीन साहब ...................उन्हें तो सब जो समझते हैं वो क्या कहिये आपकी संवेदनाएं ऐसे लोगों के प्रति आश्वश्त करती है के दुनिया में सज्जन आज भी हैं

जय हो बधाई हो

Comment by ram shiromani pathak on March 11, 2013 at 8:51pm

आदरणीय बहोत ही सटीक व्यंग .....हार्दिक बधाई

Comment by mrs manjari pandey on March 11, 2013 at 7:11pm

  दिखावे की संस्कृति ही चल पड़ी है क्या कीजियेगा वैसे मुर्गा खा कर पर खोंसना ज़रूरी तो नहीं . बधाई  रचना हेतु

Comment by Savitri Rathore on March 11, 2013 at 5:33pm

दिखावे की अपेक्षा वास्तविकता में प्रेम एवं सहयोग आवश्यक है और आपकी यह रचना इस तथ्य को व्यक्त करने में सक्षम है।सटीक शब्दों का प्रयोग इसे और सुन्दर बनाता है।आपको बधाई।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 11, 2013 at 1:44pm

संबन्धों में बस गये या बसाये गये शातिरपने से कवि का विद्रोह करना सुखद लगा.  बनावट और दिखावे की भीत पर फिर से साधे जा रहे दोस्ती के महल चिरजीवी नहीं होते.

जब दोस्ती टूटती है

जब प्यार नफरत में बदलता है

तब रिश्तों में खटास आती है

तब दिल टूट जाते हैं

तब अकबका जाते हैं वे लोग

जिनके दिल मोम हैं

जो सरल हैं

जो सहज हैं

सीधे-सादे हैं

जिन्हें नहीं आती

पोलिटिक्स की क-ख-ग....

थोड़ी सी भी

इन पंक्तियों से हर उस दिल की बात निकल रही है जो परस्पर प्यार को सिर्फ़ और सिर्फ़ प्यार की तरह जीना चाहता है. 

आपकी संवेदना के लिए सादर अभिनन्दन, अनवर भाई

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 10, 2013 at 7:54pm

आपने बिलकुल सही फ़रमाया है, पर समाज की उल्टी चाल से हम आप सभी वकिफ हैं!

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