दास्ताने होली (होली के पावन पर्व पर जनहित में जारी)
होली के हुरियारों ने, मुझे पिला दी भंग
अंग अंग में छा गई, भंग की तरंग
गिरते पड़ते जैसे तैसे, वापिस घर मै आया
बाहर खड़े खजहे कुत्ते को, खूब गले लगाया
वो मुझे चाट रहा था, मै उसको चूम रहा था
मदहोश था यारो, मेरा सर घूम रहा था
रंगरंगीली छैलछबीली, वहाँ एक नार खड़ी थी
वो मुझे देखकर मुस्काई, मेरी उससे आँख लड़ी थी
उसकी कातिल मुस्कान ने, मेरे अरमानो को हवा दी
रोमांटिक हुआ तन बदन मेरा, मैने बायीं आँख दबा दी
आगे बढकर उसके गोरे गालों में , रगडा खूब गुलाल
आलिंगन न कर पाए, दिल को हुआ मलाल
साहस करके मांग लिया, उसका सैल नंबर
तब आया भूचाल ऐसा कि, हिल गये धरती अम्बर
चंडी बन धाराप्रबाह, उसने दी मुझको गाली
उसने चेहरा धोया वो, निकली मेरी घरबाली
झाड़ू बेलन लेकर उसने, उतारी मेरी भांग
अंदर घसीटकर ले गई, पकड़कर मेरी टांग
एक बाल्टी ठंडा पानी उसने मुझ पर डाला
मेरे मुंह पर लगा हुआ था ख़ामोशी का ताला
तुम मर्द कुत्ते की पूंछ, टेढ़ी बारम्बार
देख के लड़की हर उम्र मै टपकाते हो लार
होली के पावन पर्व में दिल में भरो उमंग
किन्तु होली के हुरियारों मत पीना तुम भंग
Dr.Ajay Khare Aahat
Comment
adarniy Nema ji sadhubaad
अजय सर आप की चेतावनी का ध्यान रखा जायेगा ...सचेत करने के लिये बहुत बहुत बधाई ....
pathak ji mujhe to kujli nahi hui kintu mai sabko hasya rupi khujli karna chahta tha jo hui aapka sadhubaad
गिरते पड़ते जैसे तैसे, वापिस घर मै आया
बाहर खड़े खजहे कुत्ते को, खूब गले लगाया
वो मुझे चाट रहा था, मै उसको चूम रहा था
मदहोश था यारो, मेरा सर घूम रहा था!
आदरणीय अजय जी अपने तो हँसा दिया .......
खजहे कुत्ते को खूब गले लगाया .................आपको खुजली तो नहीं हुई ना....हा हा हा हा बहोत खूब .......
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