For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अँधेरे में डूबकर
सन्नाटे से बतियाता
वो वीराना
समय से दौड़ में पिछड़ा
वह बेबस, कर्महीन खंड है
जो आजकल
बड़ा घबराया हुआ है उस
विशिष्ट उजाले की आहट सुनकर
जो उसके भाग्य की कालिमा
को धोने नहीं बल्कि उसे दुनिया के
सामने उजागर कर उसका
मजाक उड़ाने आनेवाला है।

Views: 849

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on March 13, 2013 at 9:13am

आदरणीया प्राची दीदी, आपका हार्दिक आभार। आपने रचना की मूल भावना को समझा।

ये अँधेरे तो आज न जाने कितने लोगों की जिंदगी का हिस्सा बन गये हैं। जिनके पास उजाले आते तो हैं लेकिन वो उस अंधकार को और भी गहरा करके चले जाते हैं। ऐसी घटनाओं से दुख होता है। कैसे मिटे अंधेरा यदि दिया ही स्वार्थी हो जाए? लेकिन आजकल शायद यही हो रहा है.......

प्रोत्साहन हेतु पुनः आभार

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on March 13, 2013 at 9:06am

बहुत-बहुत धन्यवाद आपका मित्र राम शिरोमणि पाठक जी

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on March 13, 2013 at 9:05am

आदरणीय बड़े भैया गणेश जी, रचना की सराहना करके आपने मुझे मेरा पारिश्रमिक दे दिया। हार्दिक आभार

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on March 13, 2013 at 9:04am

प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय रविकर सर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 12, 2013 at 10:14pm

बहुत भाव प्रधान रचना प्रिय कुमार गौरव जी 

सचमुच ऐसे उजाले किस काम के..जो अन्धकार को दूर न कर उस पर अट्टहास करते हों... और ऐसे उजाले की आहट से डरा एकाकी अंधकारमय व्यक्तित्व..... 

इस संवेदना के लिए हार्दिक बधाई 

समझना तो ये है कि वास्तिविक अन्धकार है कहाँ?

शुभकामनाएं 

Comment by ram shiromani pathak on March 12, 2013 at 5:39pm

बढ़िया प्रस्तुति-आदरणीय 

बधाई स्वीकार करें ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 12, 2013 at 4:46pm

बड़ा घबराया हुआ है उस
विशिष्ट उजाले की आहट सुनकर
जो उसके भाग्य की कालिमा
को धोने नहीं बल्कि उसे दुनिया के
सामने उजागर कर उसका
मजाक उड़ाने आनेवाला है।
सुन्दर भाव युक्त रचना है प्रिय गौरव जी, यह प्रस्तुति अच्छी लगी, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by रविकर on March 12, 2013 at 4:26pm

हुम्म-
बढ़िया प्रस्तुति-
शुभकामनायें आदरणीय-

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service