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आदरणीय विन्ध्येश्वरि भाई साहब इन उत्कृष्ट दोहों की रचना हेतु बहुत बहुत बधाई आपको
विनय भाई कहते सुनो, देश का ख़स्ता हाल
नेता मिल के खा रहे, खरा हमारा माल ......................
आदरणीया डॉ प्राची जी की ओ बी ओ फॉर्मॅट की प्रतिक्रिया में मेरी भी भावनाएँ समाहित माने बंधुवर
प्रिय विन्ध्येश्वरी जी,
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर, विविध विषयों पर प्रस्तुत दोहावली के लिए
और नहीं कुछ दीजिये,हे! आगत नववर्ष।
मेरा भारत खुश रहे,सदा करे उत्कर्ष॥..............बहुत सुन्दर कामना
भूमि गगन वायू अनल,और संग में नीर।..................क्या वायु को वायू लिखना उचित होगा?
अग्र वर्ण भगवान बन,विरचित मनुज शरीर॥
दुर्भागी तुम हो नहीं,मत रोओ हे! तात।
भाग्य सितारे चमकते,गहन अंधेरी रातII ........ बहुत सुन्दर बात
हिन्दू हिन्दू रट रहे,न जाने हिन्दुत्व।...................सम चरण मात्रा गणना पुनः करें
है सच्चा हिन्दू वही,जे निर्मल व्यक्तित्व॥
गूंगा शासक देश का,दृष्टि हीन है न्याय।
बहरी जनता भेंड़ सम,देश गर्त में जाय॥................चुभता हुआ यथार्थ
एफ.डी.आई. से भला,होगा देश विकास।................विषम चरण में मात्रा 14 हो रही है
पैसा इटली जायगा,अपना सत्यानाश॥
गोदामों में सड़ रहा,कुंतल खरब अनाज।
तड़प भूख से मर रहा,ग्राम देवता आज॥......................कितनी शर्मनाक स्थिति है
तुम इतनी गुणवान हो,जैसे शॉपिंग मॉल।
कसे जेब जाते सभी,आते खस्ता हाल॥ ....................हाहाहा सुन्दर व्यंग किया है ... पर मॉल और हाल का तुकांत कुछ जम नहीं रहा
सत्ता बादल ओट से,बरसे भ्रष्टाचार।
दादुर टर्राते फिरें,आई मस्त बहार॥ .............. बड़े सटीक बिम्ब चुने हैं, बहुत सुन्दर
इस सुन्दर दोहावली के लिए पुनः हार्दिकं बधाई
'कीचड़ से गलियां सनीं,चलना नहिं आसान।बचना तो मुश्किल बहुत,आफत आयी जान॥'माननीय श्रीविन्ध्येश्वरी त्रिपाठी विनय जी, सुप्रभात! एक अच्छा व्संग दिलो-दिमाग को झकझोर देने वाले दोहे..वाह.वाह..! बहुत.बहुत बधाई..!
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