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राहत के दो दिन दे रब्बा- गज़ल श्याम सखा श्याम

राहत के दो दिन दे रब्बा,

कुछ अलग से पल छिन दे रब्बा |

दर्द उदासी कितनी बाकी,

आज मुझे तू गिन दे रब्बा |

नाचे थिरके दिल मेरा भी,

ताक धिना धिन-धिन दे रब्बा |

करदे पूरी हर हसरत जो,

ऐसा मुझको जिन दे रब्बा |

यार रकीब हुए जाते हैं,

जीवन उनके बिन दे रब्बा |

दुख के सब गुब्बारे  पिचकें,

घोंप जरा इक पिन दे रब्बा |

(मौलिक अप्रकाशित)

  • श्याम  सखा श्याम

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Comment by Sushil Thakur on July 5, 2013 at 3:46pm

kya bat hai shaym ji. dil se badaii swikar kare manyawar.

Comment by shyamskha on March 16, 2013 at 8:58pm

स्नेहिल पांडेय जी जर्रानवाजी हेतु शुक्रिया


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 8:25pm

आदरणीय श्याम भाईजी, आपका इस मंच हार्दिक स्वागत है. यहाँ आपकी किसी पहली प्रस्तुति से गुजर रहा हूँ.

हर शेर अपनी कहानी आप कह रहा है. इस मुकम्मल ग़ज़ल के लिए दिल से दाद कह रहा हूँ.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 15, 2013 at 9:55pm

वाह वाह वाह क्या बात है

इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद हाजिर हैं

Comment by Yogi Saraswat on March 15, 2013 at 11:55am

दर्द उदासी कितनी बाकी,

आज मुझे तू गिन दे रब्बा |

नाचे थिरके दिल मेरा भी,

ताक धिना धिन-धिन दे रब्बा |

बहुत सुन्दर ! एक एक अश'आर अपने आपमें पूर्ण ! बहुत बेहतरीन

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on March 15, 2013 at 8:20am

दुख के सब गुब्बारे  पिचकें,

घोंप जरा इक पिन दे रब्बा |.........वाह श्याम जी क्या बढ़िया पिन के काफिये को इस्तेमाल किया...जवाब नहीं॥बहुत बहुत बधाइयाँ एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए 

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on March 14, 2013 at 11:41pm

करदे पूरी हर हसरत जो,

ऐसा मुझको जिन दे रब्बा |

यार रकीब हुए जाते हैं,

जीवन उनके बिन दे रब्बा |

क्या कहने... वाह वाह !!!

Comment by shyamskha on March 14, 2013 at 8:28pm

shukriya vijay ji aur kesri ji

Comment by विजय मिश्र on March 14, 2013 at 3:51pm

श्यामसखा जी की गुजारिस उनके साथ मेरे लिए भी सुन दे रब्बा .

Comment by वीनस केसरी on March 14, 2013 at 1:50pm

दर्द उदासी कितनी बाकी,

आज मुझे तू गिन दे रब्बा |

वाह वाह कैसा रवां दवां शेअर है

वाह वा बहुत खूब

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