राहत के दो दिन दे रब्बा,
कुछ अलग से पल छिन दे रब्बा |
दर्द उदासी कितनी बाकी,
आज मुझे तू गिन दे रब्बा |
नाचे थिरके दिल मेरा भी,
ताक धिना धिन-धिन दे रब्बा |
करदे पूरी हर हसरत जो,
ऐसा मुझको जिन दे रब्बा |
यार रकीब हुए जाते हैं,
जीवन उनके बिन दे रब्बा |
दुख के सब गुब्बारे पिचकें,
घोंप जरा इक पिन दे रब्बा |
(मौलिक अप्रकाशित)
Comment
kya bat hai shaym ji. dil se badaii swikar kare manyawar.
स्नेहिल पांडेय जी जर्रानवाजी हेतु शुक्रिया
आदरणीय श्याम भाईजी, आपका इस मंच हार्दिक स्वागत है. यहाँ आपकी किसी पहली प्रस्तुति से गुजर रहा हूँ.
हर शेर अपनी कहानी आप कह रहा है. इस मुकम्मल ग़ज़ल के लिए दिल से दाद कह रहा हूँ.
वाह वाह वाह क्या बात है
इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद हाजिर हैं
दर्द उदासी कितनी बाकी,
आज मुझे तू गिन दे रब्बा |
नाचे थिरके दिल मेरा भी,
ताक धिना धिन-धिन दे रब्बा |
बहुत सुन्दर ! एक एक अश'आर अपने आपमें पूर्ण ! बहुत बेहतरीन
दुख के सब गुब्बारे पिचकें,
घोंप जरा इक पिन दे रब्बा |.........वाह श्याम जी क्या बढ़िया पिन के काफिये को इस्तेमाल किया...जवाब नहीं॥बहुत बहुत बधाइयाँ एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए
करदे पूरी हर हसरत जो,
ऐसा मुझको जिन दे रब्बा |
यार रकीब हुए जाते हैं,
जीवन उनके बिन दे रब्बा |
क्या कहने... वाह वाह !!!
shukriya vijay ji aur kesri ji
श्यामसखा जी की गुजारिस उनके साथ मेरे लिए भी सुन दे रब्बा .
दर्द उदासी कितनी बाकी,
आज मुझे तू गिन दे रब्बा |
वाह वाह कैसा रवां दवां शेअर है
वाह वा बहुत खूब
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