(आदरणीया डा0 प्राची सिहं जी के सुझाव के बाद पुनः प्रस्तुत)
भ्रष्टाचार जड़ विकट, माया मन परतोष।
कहे सुने बढ़ जात है, अहम काम मद दोष।।1
पंडित वेद कुरान पाठ, करि सब भये मसान।
नेता भ्रष्ट भय आतंक, सब बनगै श्रीमान।।2
भ्रष्टाचार बन जग गुरु, लूटें देश समूल ।
रामदेव अन्ना लड़े , लिये हाथ मा तूल।।3
जनता निरी गाय-भैंस, लठैत है सरकार।
दूध दुहन को वोट है, फिर पीछे मक्कार।।4
नेता सब ज्रागत भये, सोवत सन्सद बीच ।
जनता जस जाग्रत हुये, मारे झोंटा खींच।।5
बंदर बाट-रेवडि़ बाट, बाटहि जोहे आज।
बाट-बाट से फोरि सिर, मिलता न काम काज।।6
भ्रष्टाचार लिप्त मनुष, बनता कैंसर ऐड।
कुजाति से डरे समाज, बेटी बेटा डैड।।7
सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
भाई केवल प्रसाद जी, आप दोहा छंद-रचना हेतु प्रयास करने के पूर्व भारतीय छंद विधान समूह में दोहा छंदों का विधान समझ लें.
अन्यथा, आपकी मेहनत और पाठकों दोनों का समय जाया होंगे. देखियेगा, आपके दोहों में शिल्पगत मूलभूत कमियाँ कम हो जायेंगीं.
शुभेच्छाएँ.. .
आदरणीय डा0 प्राची सिहं जी, सुप्रभात! आप के सुझावों को मैंने शिश्य की तरह शिरोधार्य किया है! ‘बिन गुरू ज्ञान कहॅा से पाउॅ‘ आपका यह मंच अच्छा और विशाल भी है मुझे किसी साथी ने सलाह दी थी कि आापको यहॅा भरपूर सहयोग और आत्मीयता मिलेगी, सो मैं अबोध बालक की भॅाति शिष्ट परिसर मे हॅू! मेरी किसी बात को अन्यथा न लिये जाने की कृपा की जाये! मैं वैसा ही कररूॅगा जैसा आप लोगों का निर्देश मिलता रहेगा! मेरा उद्देश्य केवल समाज की विकृतियों को यथा प्रयास दूर करने हेतु सत्य का पक्ष प्रस्तुत कर सकूॅ ! आपके सम्मान मे ही मेरा वजूद बन सकेगा! अतः आपके आदर एवं सम्मान में एक बार पुनः क्षमा प्राथी हॅू! कृपया आशीष बनाये रखें! कृतज्ञ पूर्ण बहुत बहुत आभार..!
आदरणीय डा0 स्वर्ण जे0 ओंकार जी, हार्दिक आभार !
दोहा छंद के प्रति आपकी रूचि प्रशंसनीय है,
मैंने आपकी पूर्व रचना पर टिप्पणी में शिल्प की सम्पूर्ण जानकारी लेकर तदनुरूप छंद रचना का सुझाव दिया था.... परन्तु इस रचना में भी आपने कई जगह शिल्प को नहीं निभाया है.
भ्रष्टाचार जड़ विकट......१२ मात्रा , माया मन परतोष।
कहे सुने बढ़ जात है, अहम काम मद दोष।।1
पंडित वेद कुरान पाठ............विषम चरण का अंत गुरु लघु से नहीं होना चाहिए , करि सब भये मसान।
नेता भ्रष्ट भय आतंक...विषम चरण का अंत गुरु लघु से नहीं होना चाहिए , सब बनगै श्रीमान।।2
भ्रष्टाचार बन जग गुरु, लूटें देश समूल ।.........भ्रष्टाचार एक इकाई है ..इसके साथ लूटें की जगह लूटे लिखना चाहिए
रामदेव अन्ना लड़े , लिये हाथ मा तूल।।3
जनता निरी गाय-भैंस.......विषम चरण का अंत गुरु लघु से नहीं होना चाहिए , लठैत है सरकार..........यहाँ गेयता बाधित है ।
दूध दुहन को वोट है, फिर पीछे मक्कार।।4
आपनी रचनामें में कथ्यात्मक संतुलन और निर्बाध गेयता के तत्वों को स्थान देने के लिए आप और सुधिजनों की दोहा रचनाएँ भी अवश्य पढते रहिये..
सद्कामनाएं
Bahut Khoob
All Doha are relavant to current situation
thanks for sharing
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