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रंगों के बाज़ार में खड़ी हूँ

रंगों के बाज़ार में खड़ी हूँ सखि !
मेरा घर सूना , आंगन सूना ,
बाग बगीचे , पेड़ पात सूना
दिन रात सूना, सूना मेरा आंचल,
पिया परदेश , संसार मेरा सूना.
होली रंगों की थाल लिये
द्वार खड़ी हँस रही , क्या करूँ सखि !
उदासी मेरा रूप श्रृंगार, हाय !
नौकरी बनी सौतन मेरी.
बिन बादल बरसात होती नहीं,
डाल पर मैना अब गाती नहीं -
उ‌ड़ता है रंग हर कहीं,
कोई रंग मुझको भाता नहीं.
फूलों की बरसात हो रही,
मेरे जूड़े में फूल लगता नहीं -
अंतहीन व्यथा है क्या कहूँ ?
पिया मिलन की कोई राह नहीं.
रंगों के बाज़ार में खड़ी हूँ,
खुशियों का क्या मोल करूँ ?
इस रंगीन दुनिया में सखि !
कैसे अपना दामन फैलाऊँ ?

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 27, 2013 at 5:05am

सुन्दर रचना कुन्ती जी !

Comment by Meena Pathak on March 26, 2013 at 6:17pm

बहुत सुन्दर कुंती जी .. बधाई और रंगों के त्यौहार की हार्दिक शुभकामनाएँ

Comment by राज लाली बटाला on March 26, 2013 at 1:20am

रंगों के बाज़ार में खड़ी हूँ,
खुशियों का क्या मोल करूँ ?
इस रंगीन दुनिया में सखी  !
कैसे अपना दामन फैलाऊँ ? खूब !!कुन्ती मुखर्जी जी

Comment by Neelima Sharma Nivia on March 25, 2013 at 6:32pm

 बेहतरीन

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 25, 2013 at 5:41pm

आदरणीया कुन्ती मुखर्जी जी,पिया परदेश, संसार मेरा सूना,
होली रंगों की थाल लिये
द्वार खड़ी हँस रही,  क्या करूँ सखि !    बहुत ही सुन्दर भाव, बधाई स्वीकारें।

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