For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लुढ़क के वहीं आ खड़ी हुई ज़िंदगी
जहाँ थे कभी खड़े,
कदम थे कितने नपे तुले
किस राह पर , कहाँ फिसल के रह गये.

मुड़कर देखना क्या ?
सोच के पछ्ताना क्या ?
हवा भी कुछ ऐसी बही,
चट्टान ढलान में ठहरता क्या ?

दूर दूर तक था रेगिस्तान
नैनों में कितने रेत पड़े,
आँसू किसके बहकर रहे
अतीत के या आने वाले कल के.

फूलों पर चलते थे कभी -
कब पंखुड़ियाँ रह गये मुरझा के,
एक शुष्क पात भी नहीं रहा
देखूँ जिसे कभी नज़र भर के.

जिधर भी गये हाथ बढ़ाए ,
साथी रह गये सपने बनके -
ऐसी भी क्या बेरूखी अपनों से,
कब रहा कोई सदा अपना बनके.

घने बादल से बरसे बहुत सी यादें
कुछ छिटपुट सुनहरी वसंत की बातें,
कितने झंझावात से जूझते
भीड़ में अकेले रहने की बातें.

सरदी में प्रभाती मुसकान
उभरते थे होठों के कोरों पर,
उस हास में सबकुछ विलीन हुआ
तूलिका फिसलती रही रंगीन चित्र पर.

सब कुछ छूट के रह गये
वो हरी भरी राहें जिसपर थे चलते,
इठलाकर – दौड़ते थे कभी,
पेड़ों की छाया तले , जो निरंतर रहे हटते.

जीवन का एक फासला तय कर
उमड़ी नदी रही कुछ सूखी,
फिर उमड़ी, सागर को चली
एक धारा को पकड़ने जिंदगी अनोखी.

पुरानी गयी , नयी पीढ़ी उपजी
विचारें उभरते ज्वार-भाटे सी,
ज़िंदगी संघर्ष ही नहीं, चुनौती भी
है “ज़िंदगी” को समझ पाने की.

Views: 398

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 22, 2013 at 2:39pm

ज़िंदगी के टूटे ख़्वाबों और बिछुड़ी यादों में ज़िंदगी को तलाशती सी अभिव्यक्ति आ. कुंती मुखर्जी जी 

बधाई स्वीकारे

Comment by Meena Pathak on March 21, 2013 at 7:33pm

ज़िंदगी संघर्ष ही नहीं, चुनौती भी
है “ज़िंदगी” को समझ पाने की.......... बहुत बहुत सुन्दर रचना .. बधाई आपको 

Comment by बृजेश नीरज on March 21, 2013 at 6:54pm

बहुत सुन्दर!

Comment by राजेश 'मृदु' on March 21, 2013 at 4:31pm

बढि़या प्रस्‍तुति, 

Comment by विजय मिश्र on March 21, 2013 at 4:14pm

कुन्तिजी !

बहुत ही प्रभावी और अनुभवी खाका है ऊपर से नीचे की ओर सरकते जीवन और उससे बंधे ,बदलते रिश्तों के हेर-फेर में उठते -बैठते मन का . कछमछाहट और उससे ताल-मेल बिठाते जीवन को स्पष्ट उजागर करती है आपकी यह रचना . बहुत सुंदर है . बधाई .


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 21, 2013 at 9:26am

//ज़िंदगी संघर्ष ही नहीं, चुनौती भी
है “ज़िंदगी” को समझ पाने की.//

हर कदम पर जिन्दगी चुनौती ही है, यदि चुनौती की तरह ली जाय, भावनाओं का ज्वार इस रचना में रेगिस्तान की आंधी की भाति समाहित है,अच्छी रचना, बहुत बहुत बधाई आदरणीया कुंती मुखर्जी जी । 

Comment by vijay nikore on March 21, 2013 at 9:00am

आदरणीया कुन्ती जी:

 

ज़िन्दगी के जैसे दो कमरे हों...

एक आशा से भरा, और एक निराशा से ...

और दोनों ही सच हैं। हम एक कमरे से दूसरे

और दूसरे से पहले कमरे आते रहते हैं।

यह निराशा का कमरा कभी-कभी बहुत   दुखद   होता है,

बहुत दुखद ...


जिससे निराशा मिलती है, वह नहीं जानता दूसरे का दर्द

कितना गहरा है, कितना घना है ...

एक रास्ता और है... आशा और निराशा दोनों से अप्रभावित रहना,

i.e. being not affected by all pairs of opposits. It is difficult,

but by practice it is possible, though not all the time and

not in all the situations for us householders.

 

इस भावयुक्त कविता के लिए बधाई।

सादर और सस्नेह,

विजय

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Gurpreet Singh jammu replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"मुशायरे की अच्छी शुरुआत करने के लिए बहुत बधाई आदरणीय जयहिंद रामपुरी जी। बदलना ज़िन्दगी की है…"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी, पोस्ट पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"पगों  के  कंटकों  से  याद  आयासफर कब मंजिलों से याद आया।१।*हमें …"
9 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय नीलेश जी सादर अभिवादन आपका बहुत शुक्रिया आपने वक़्त निकाला मतला   उड़ने की ख़्वाहिशों…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"उन्हें जो आँधियों से याद आया मुझे वो शोरिशों से याद आया अभी ज़िंदा हैं मेरी हसरतें भी तुम्हारी…"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. शिज्जू भाई,,, मुझे तो स्कॉच और भजिये याद आए... बाकी सब मिथ्याचार है. 😁😁😁😁😁"
12 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तुम्हें अठखेलियों से याद आया मुझे कुछ तितलियों से याद आया  टपकने जा रही है छत वो…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय दयाराम जी मुशायरे में सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई आपको"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय निलेश नूर जीआपको बारिशों से जाने क्या-क्या याद आ गया। चाय, काग़ज़ की कश्ती, बदन की कसमसाहट…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, मुशायरे के आग़ाज़ के लिए हार्दिक बधाई, शेष आदरणीय नीलेश 'नूर'…"
12 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"ग़ज़ल — 1222 1222 122 मुझे वो झुग्गियों से याद आयाउसे कुछ आँधियों से याद आया बहुत कमजोर…"
13 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"अभी समर सर द्वारा व्हाट्स एप पर संज्ञान में लाया गया कि अहद की मात्रा 21 होती है अत: उस मिसरे को…"
13 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service