"मैं हूं मौन!"
मैं कौन हूं ?
मैं हूं मौन!
महिलाओं की चैन लुटती रही
सरे राह।
दामिनी-दिल्ली की अस्मिता बनी
लाचारी।
सड़क पर बिफर गई
बेचारी।
और मैं मोमबत्ती जलाकर देखता रहा!
मैं कायर हूं ? नहीं!
कायरता नहीं मुझमें!
बस उन अबलाओं और अपने घरों की सुरक्षा में
सेंध देखता रहा !
और मैं मौन रहा।1
पुलिस की घूस, ठूंस, लाठी
बेवजह चलते रहे
अविराम!
नौकरशाही घोटाले अथ.
नेताओं का खुला भ्रष्टाचार
उजाड़!
कनूनी दांव-पेंच से कतराता रहा
मैं चुप, सब देखता-सुनता रहा!
मैं अंधा हूं ! नहीं।
अंधता नहीं मुझमें!
बस स्वयं की रोजी-बच्चों की शिक्षा में एक
ब्लैक होल देखता रहा!
और मैं मौन रहा।2
बेटा मथुरा शान
जवान!
ये देश की कैसी मजबूरी
कटा दिया सिर को ना बेची
खुद्दारी!
भीड़ ने ही दिया श्रध्दांजलि
पिस कर यहां!
इण्डिया गेट पर जवान-ज्योति
बस! कराहती रही।
मैं गद्दार हूं? नहीं।
गद्दारी नही मुझमें
बस! बेहद सर्द मौसम मे खड़ा
मैं पानी और पानी की धार देखता रहा!
और मैं मौन रहा।3
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया कुंतीजी, आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार एवं धन्यवाद।
बहुत ही बढि़या । आम जन क्यों लाचार होता है, उसकी विडंबना को भली भांति आपने उजागर किया है
bahot sateek kaha apne adarneey kewal bhai ji
केवल प्रसाद जी,इंसान की यही तो सबसे बड़ी विडम्बना है कि वह सब कुछ देख सुन कर भी मौंन रहता है. एकदम यथार्त है.कलम
भी तो ज़बान है . बधाई हो.
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