For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

       

                      प्राण-पल

 

पेड़ से छूटे पत्ते-सा समय की आँधी में उड़ा

मैं हल्के-से तुम्हारे सामने था आ गिरा,

तुमने मुझे उठाया, देखा, परखा, मुझको सोचा,

जाने क्यूँ मुझको लगा

कि वह पल मेरी बाकी ज़िन्दगी से अलग

मेरा ज़्यादा अपना था, अधिक प्रिय था,

और बिना सोचे समझे मैं ख़यालों में डूबा

मोती-से उस पल को हथेली में रख कर

देखता रहा, देखता रहा, देर तक सोचता रहा

कि तुम्हारी ज़िन्दगी का वह समानान्तर पल भी

जिसको तुमने उस समय

अपने आँचल के कोने से बाँध कर, सम्हाल कर,

मुझको इतना सम्मान दिया था,  वह पल

अभी भी तुम्हारे आँचल के छोर से बंधा था क्या?

या, पेड़ से छूटे सूखे पत्ते-सा  अब उसको तुमने

अलगावों की तिमिर भरी आँधी में उड़ा दिया था,

क्योंकि अब कुछ अरसे से मुझको

तुम्हारे उस पल की समकालिक धड़कन

मेरी हथेली में संजोए इस प्राण-पल के संग

टिक-टिक करती सुनाई नहीं देती।

                  

                   -------

                                         -- विजय निकोर

Views: 681

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुन 'अनन्त' on March 31, 2013 at 11:26am

आदरणीय ह्रदय में विद्यमान भावों को बहुत ही सरलता एवं सुन्दरता से उकेरा है हार्दिक बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 31, 2013 at 9:17am

अभी भी तुम्हारे आँचल के छोर से बंधा था क्या?

या, पेड़ से छूटे सूखे पत्ते-सा  अब उसको तुमने

अलगावों की तिमिर भरी आँधी में उड़ा दिया था,

क्योंकि अब कुछ अरसे से मुझको

तुम्हारे उस पल की समकालिक धड़कन

मेरी हथेली में संजोए इस प्राण-पल के संग

टिक-टिक करती सुनाई नहीं देती।

        कभी-कभी बाहर की परिस्थितियों,व्यस्तताओ,अड़चनों के शोर इतने बढ़ जाते हैं कि हिय स्पंदन की आवाजें दब जाती हैं जिनसे सामने वाला प्रतिकूल अर्थ निकाल बैठता है ,मन के कोमल भावों को बहुत सुंदर शब्दों से बांधा है आपकी रचनाएँ पाठक को खींचती हैं बहुत बहुत बधाई

Comment by vijay nikore on March 31, 2013 at 7:24am

आदरंणीय सौरभ जी:

 

जैसा कि आपने इस कविता में देखा, मेरी कविताएँ प्राय: भावनाओं के माध्यम सूक्षम को ही इंगित करती हैं ... स्थूल और सूक्षम का संतुलनभार करना एक श्रमसाध्य कला है, जिसके लिए मैं प्रत्येक रचना को न जाने कितनी बार पढ़ता हूँ ... कभी एक शब्द यहाँ, तो कभी एक भाव वहाँ बार-बार बदलता हूँ ... फिर भी कभी-कभी संतुष्टि नहीं होती। आपके अमूल्य सुझाव के लिए मैं आपका आभारी हूँ ...मेरा प्रयास जारी रहेगा।

 

//एक सफ़ल प्रेम-प्रवाही कविता के लिए आपका सादर धन्यवाद व अतिशय बधाइयाँ.//

यह कह कर आपने मुझको जो मान दिया है उसके लिए मैं आभारी हूँ, सौरभ जी।

ऐसे ही अपनत्व और संबल बनाए रखें।

 

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 31, 2013 at 6:17am

पारस्परिक भावनाओं की ऊहापोह को शब्द देने का प्रयास अच्छा लगा. भावुक शब्दों से वाग्जाल का ताना-बाना हृदय के तंतुओं को भी भला लगता है. अधिक स्पष्टता और तदनुरूप सतत शाब्दिक होने से बचा जाता तो यही भाव-संप्रेषण गहन इंगितों का अभिनव कारण होता. स्थूल द्वारा इसी स्थूल पटल माध्यम से सूक्ष्म और कारण तत्व को इंगित करना सदा से अधिक रोचक हुआ करता है.

चूँकि आपकी रचना का उत्स ही सूक्ष्म के प्रति इंगित है, अतः मैं निवेदन कर पा रहा हूँ, आदरणीय.

मुझे भान है कि मेरे कहे का अन्वर्थ आपके लिए सहज एवं स्पष्ट होगा.

एक सफल प्रेम-प्रवाही कविता के लिए आपका सादर धन्यवाद व अतिशय बधाइयाँ.

सादर

Comment by coontee mukerji on March 31, 2013 at 1:13am

विजय जी ,मानना पड़ेगा आपको .कोमल भावनाओं के वर्णन करने में आपका कोई सानी नहीं.आप यूँही लिखते रहें .

Comment by Savitri Rathore on March 31, 2013 at 12:21am

आदरणीय विजय जी,सादर नमस्कार!
अत्यंत सुन्दर तरीके से मन के सुकोमल भावों की अभिव्यक्ति करती सुन्दर रचना।बधाई हो।

Comment by vijay nikore on March 30, 2013 at 8:43pm

 

प्रिय मित्र संदीप जी:

 

भावों के अनुमोदन के लिए आपका हार्दिक आभार।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 30, 2013 at 7:52pm

  

मोती-से उस पल को हथेली में रख कर
देखता रहा, देखता रहा, देर तक सोचता रहा
कि तुम्हारी ज़िन्दगी का वह समानान्तर पल भी
जिसको तुमने उस समय
अपने आँचल के कोने से बाँध कर, सम्हाल कर,
मुझको इतना सम्मान दिया था, वह पल------सुंदर अहसास का आपका वह पल वाकई प्राण पल से कम नहीं हो सकता

था | निश्चित ही आपने उसे अन्तमन में सहेज कर रखा होगा | रचना में प्रस्तुत अभिव्यक्ति तो यही बताती है | उस सहेज कर रखे पल के लिए और उसे प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक बधाई श्री विजय निकोरे जी

Comment by ram shiromani pathak on March 30, 2013 at 7:01pm

बहुत खूबसूरती से मन के भावों को पिरोया है सर जी .................बधाई हो

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 30, 2013 at 5:16pm

बहुत खूबसूरती से मन के भावों को पिरोया है सर जी .................बधाई हो

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।बेहतर शीर्षक के बारे में मैं भी सोचता हूं। हां,पुर्जा लिखते हैं।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। चेताती हुई बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लगता है कि इस बार तात्कालिक…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service