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ओ बी ओ तृतीय वर्षगाँठ को समर्पित : 'मत्तगयन्द' सवैया

'मत्तगयन्द' सवैया : 7 भगण व अंत में दो दीर्घ

जात न पात न भेद न भाव न रूप न रंग न डोर दिवारें.
एक धरा यह प्रेम भरी जँह प्रेम लिए हम आप पधारें,
सीख सिखाय रहे सबहीं यँह ज्ञान भरें अरु लेख निखारें,
देश विदेश मिलाय दिए जन मेल मिलाप यहाँ करि डारें.

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 2, 2013 at 4:41pm

हम तो मंच मात्र समझते थे, आपने तो ओबीओ को एक अलग धरा ही गिन लिया, भाई !

लोग सही कहते हैं, कवि वो बोल लेता है जो सामान्य जन सोच तक नहीं पाते. .. :-)))

सवैया के सधे होने की बधाई, अरुन भाई.

सही कहा आपने, अरुनभाई, ओबीओ को मात्र सुनाने का स्थान न जान कर सुनने और अध्ययन का स्थान भी जानें तो हममें से कई परिपक्व रचनाकार हो जायँ. लेकिन टेक तो यहीं है.

आपको भी ओबीओ के प्रादुर्भाव दिवस की अनेकानेक बधाइयाँ.

Comment by ram shiromani pathak on April 2, 2013 at 1:54pm

वाह अरून भाई! बहुत सुन्दर! बधाई स्वीकारें।
सभी को वर्षगांठ की हार्दिक शुभकामनाएं!

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 2, 2013 at 9:19am

भाई अरुण जी सादर, सुन्दर शब्दों सवैया रूप में मंच के चरित्र का बखान बहुत खूब. सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकारें.

 

Comment by shikha kaushik on April 2, 2013 at 8:10am

सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक  आभार

Comment by श्रीराम on April 1, 2013 at 8:48pm

" सुंदर प्रस्तुति ... बहुत-बहुत बधाई"

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 1, 2013 at 5:25pm

आदरणीय बृजेश भाई सादर रचना आपको पसंद आई, लेखन कार्य सफल हुआ हार्दिक आभार. ओ बी ओ तृतीय वर्षगांठ की आपको भी हार्दिक शुभकामनाएं!

Comment by बृजेश नीरज on April 1, 2013 at 5:20pm

वाह अरून भाई! बहुत सुन्दर! बधाई स्वीकारें।
सभी को वर्षगांठ की हार्दिक शुभकामनाएं!

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