For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : रदीफ़ों काफियों को चाह पर अपने चलाता है.

बहर : हज़ज मुसम्मन सालिम
वज्न: १२२२, १२२२, १२२२, १२२२

रदीफ़ों काफियों को चाह पर अपने चलाता है,
बहर के इल्म में जो रोज अपना सिर खपाता है,

हुआ है सुखनवर* उसकी कलम करती ग़ज़लगोई*,
सभी अशआर के अशआर वो सुन्दर बनाता है,

कभी वो लाम* में जागे कभी वो गाफ़* में सोये,
सुबह से शाम तक बस तुक से अपने तुक भिड़ाता है,

मुजाहिफ* को करे सालिम, करे सालिम* मुजाहिफ में,
वो रुक्नों के तराजू में वजन रखता हटाता है,

इजाफत* की पढ़े भाषा नियम तक़्ती'अ का समझे,
तखल्लुस* का सही उपयोग मक्ता* में कराता है,

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

सुख़नवर* = उर्दू काव्य लिखने वाला
ग़ज़लगोई* = ग़ज़ल लिखने की प्रक्रिया
लाम* = लाम का अर्थ होता है “लघु” और इसे १ मात्रा के लिए प्रयोग करते हैं
गाफ़* = गाफ का अर्थ होता है दीर्घ और इसे २ मात्रा के लिए प्रयोग करते हैं
इजाफत* = उर्दू भाषा में इज़ाफ़त का नियम है जिसके द्वारा दो शब्दों को अंतर सम्बंधित किया जाता है
तखल्लुस* = उपनाम
मक्ता* = ग़ज़ल का आख़िरी शे'र
मुजाहिफ* / सालिम* = रुक्न के नाम

Views: 2134

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 3, 2013 at 8:44pm

भाई अरुण जी सुन्दर गजल लिखी है पढ़कर मजा आ गया बधाई स्वीकारें, आदरणीय सौरभ जी की प्रतिक्रया से बहुत कुछ सीखने मिला है.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 3, 2013 at 7:40pm

आदरणीय अरून शर्मा’अनन्त’ जी, मुझे गजल तो पसंद है पर कभी लिखा नहीं। आप द्वारा प्रस्तुत गजल को पढ़कर ऐसा लगा कि मुझे गजल लिखने की प्रथम सीढ़ी मिल गई हो।  सुन्दर, यहां पर गुरूवर जी की टिप्पणी से और भी साफ हो गया कि ‘कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता है‘। सार्थक प्रयास। सादर,

Comment by बृजेश नीरज on April 3, 2013 at 7:00pm

अरून भाई बहुत सुन्दर प्रयास! बधाई स्वीकारें!

Comment by वीनस केसरी on April 3, 2013 at 6:07pm

अच्छा प्रयास है 
बधाई स्वीकारें 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 3, 2013 at 5:28pm

एक बढिया और रोचक प्रयास जल्दबाज़ी की भेंट चढ गया. 

एक तथ्य तो यह भी है कि प्रयास न किया गया तो फिर सम्यक अभ्यास होगा कैसे ?  सही है.  किन्तु,  भाषायी व्याकरण या शब्दों के प्रयुक्ति स्वरूप तो स्वाध्याय के विषय हैं भाई.  

दूसरे, यह ग़ज़ल किनके लिए कही गयी है, यह स्वयं में एक रोचक प्रश्न है !

रदीफ़ों काफियों को चाह पर अपने चलाता है,
बहर के इल्म में जो रोज अपना सिर खपाता है.. .   बहर का वज़्न २१  है  भाई.  इसे शहर के बरअक्स तो हम न ही रखें. या बह्र का बहर स्वरूप मान्य हो गया है ?  मुझे इसकी जानकारी नहीं है.

हुआ है सुखनवर* उसकी कलम करती ग़ज़लगोई*.... सुखनवर का सही उच्चारण सु-खन-वर होता है यानि यह मिसरा बहरियाया.
सभी अशआर के अशआर वो सुन्दर बनाता है,.. . .

कभी वो लाम* में जागे कभी वो गाफ़* में सोये,
सुबह से शाम तक बस तुक से अपने तुक भिड़ाता है.. .. अपने तुक   कभी नहीं, बल्कि सदा अपनी तुक.

मुजाहिफ* को करे सालिम, करे सालिम* मुजाहिफ में,
वो रुक्नों के तराजू में वजन रखता हटाता है,..... ...    मुज़ाहिफ़ में सालिम कुछ अटपटा लग रहा है. रुक्न का बहुवचन अरकान होता है. और, चूँकि,  तराज़ू स्त्रीलिंग में व्यवहृत होता है अतः रुक्नों की तराज़ू   सही वाक्यांश होगा. यही हाल वज़्न का हुआ कि वज़न मान्य है या वज़्न ?

इजाफत* की पढ़े भाषा नियम तक़्ती'अ का समझे,
तखल्लुस* का सही उपयोग मक्ता* में कराता है... . . इज़ाफ़त की भाषा क्या होती है ? हमने तो, भाई, इज़ाफ़त के नियम ही पढ़े हैं. इसी तरह से तक्तीह के नियम नहीं होते बल्कि यह स्वयं में एक ’तरीका’ है.

भाईजी, प्रविष्टियाँ पाठकों को चौंकाने के उद्येश्य से न हो कर विधाजन्य भाव-प्रेषण के लिये हों.  चौंकाना कभी-कभार तो यों ठीक भी है... .  लेकिन उसके पहले हम सुगढ़ और सम्यक अभ्यास तो कर लें.

शुभेच्छाएँ.. .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
4 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service