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क्या वजह क्या वजह कहर बरपा रहे
मेहरबां - मेहरबां से नजर आ रहे


ये दुपट्टा कभी यूँ सरकता न था

आज हो क्या गया यूँ ही सरका रहे


चूडियाँ यूँ तो बरसों से ख़ामोश थी

बात क्या है हुजूर आज खनका रहे


यूँ तो चेहरे पे दिखती थीं वीरानियां

औ अचानक बिना बात मुस्का रहे


दिल ये चर्चित का यूं ही बडा शोख है

देख लो आप ही इसको भडका रहे

- विशाल चर्चित

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Comment

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Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on April 28, 2013 at 4:53pm

सौरभ सर जी एकदम सही बात है आपकी......आगे से मैं बिलकुल ध्यान रखूंगा कि बहर का नाम एवं वज्न के साथ ही गजल पोस्ट करूं...इस बार के लिये मैं आप सब से क्षमा प्रार्थी हूं....!!!!

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on April 28, 2013 at 4:49pm

धर्मेंद्र भाई जी......इतनी विस्तृत टिप्पणी की लिये हृदय से आभारी हूं आपका........

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on April 28, 2013 at 4:27pm

शुक्रिया भ्रमर भाई जी !!!!

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on April 28, 2013 at 4:25pm

वन्दना जी आभार !!!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 27, 2013 at 5:35pm

जो सीखते हैं वे रचनाओं पर सकारात्मक टिप्पणियों द्वारा अच्छी तरह सीख सकते हैं.

चर्चित भाई की इस ग़ज़ल को बह्र की समझ रखने वाला कभी बेबह्र ग़ज़ल नहीं कह सकता. जो अभी बह्र और उसकी तक्तीह करना सीख रहे हैं वे अवश्य प्रस्तुत हुई सार्थक ग़ज़ल के माध्यम से ही सीखेंगे. उसका पहला सोपान टिप्पणी के माध्यम से पूछना ही होता है.

अतः, इस ग़ज़ल के ऊपर हुई चर्चा को उसी रूप में देखा जाय तथा आगे निवेदन यहभी है कि ग़ज़ल प्रस्तुत करने वाले भले बह्र का नाम न लिख पायें,  अपनी ग़ज़ल के साथ बह्र का वज़्न अवश्य लिख दिया करें. इसके लिए प्रबन्धन की ओर से आग्रह भी किया जाता रहा है.

किसी भाषा की शाब्दिकता या अन्य भाषाओं से आये शब्दों का स्वरूप अत्यंत अलग वस्तुतः एक तरह का भाषायी विषय है. वह इतनी सरल या इतनी विन्दुवत नहीं होती जितनी मान ली गयी है.  ग़ज़ल के लिहाज से हम विधा सीखते हैं और यही सीख भी रहे हैं न कि एक अलहदी भाषा. जिन्हें फ़ारसी या अरबी में ग़ज़ल कहनी है वे फ़ारसी और अरबी में ग़ज़ल कहने के लिए स्वतंत्र हैं.

सादर धन्यवाद.

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 27, 2013 at 3:24pm

चर्चित साहब मेरे हिसाब से तो ग़ज़ल बिल्कुल बह्रोवज़्न में है।

२१२ २१२ २१२ २१२ 

क्या वजह / क्या वजह / कह र बर /पा रहे [दूसरे "क्या वजह" की जगह "बेवजह" किया जा सकता है]
मेह र बां - मेह र बां / से नजर / आ रहे


ये दु पट् / ट्टा कभी / यूँ सरक / ता न था

आज हो / क्या गया / यूँ ही सर / का रहे   ["यूँ" की जगह "खुद" कर सकते हैं]


चूडियाँ / यूँ तो बर / सों से ख़ा / मोश थीं [चूडियाँ नहीं चूड़ियाँ, "ड" और "ड़" दो अलग ध्वनियाँ हैं]

बात क्या / है हुजू / राज खन / का रहे

यूँ तो चेह / रे पे दिख / ती थीं वी / रानियां
औ अचा / नक बिना / बात मुस् / का रहे  ["औ" की जगह आज भी हो सकता है]


दिल ये  चर् / चित का यूं / ही बडा / शोख है [बडा नहीं बड़ा]  ["यूँ ही" की जगह "यूँ तो" कर सकते हैं क्या?]

देख लो / आप ही / इसको भड / का रहे [भडका नहीं भड़का]

चर्चित साहब दाद कुबूलें। ग़ज़ल बाबह्र है, अच्छी है।

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 24, 2013 at 12:46am
सुन्दर गजल ...चर्चित जी कुछ कुछ होने लगा है ...
 दिल ये चर्चित का यूं ही बडा शोख है
देख लो आप ही इसको भडका रहे
जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 
Comment by Vindu Babu on April 4, 2013 at 10:55pm
अच्छी चर्चा दे गई आपकी गज़ल पर आदरणीय चर्चित जी,बहुत कुछ सीखने को मिला।
सादर

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 4, 2013 at 10:45pm

///एक रोमांटिक ग़ज़ल पर इतनी चर्चा ने ग़ज़ल के खूबसूरत भावों को देखने ही नहीं दिया ///

तो आप नीचे से पढ़ने लगीं क्या आदरणीया ....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 4, 2013 at 10:25pm

आपको किसने रोका है ?  आपकी प्रस्तुत ग़ज़ल में ऐसे शब्दों को बेबह्र माना गया है क्या ?

कृपया ध्यान दे...

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