क्या वजह क्या वजह कहर बरपा रहे
मेहरबां - मेहरबां से नजर आ रहे
ये दुपट्टा कभी यूँ सरकता न था
आज हो क्या गया यूँ ही सरका रहे
चूडियाँ यूँ तो बरसों से ख़ामोश थी
बात क्या है हुजूर आज खनका रहे
यूँ तो चेहरे पे दिखती थीं वीरानियां
औ अचानक बिना बात मुस्का रहे
दिल ये चर्चित का यूं ही बडा शोख है
देख लो आप ही इसको भडका रहे
- विशाल चर्चित
Comment
सीमा दीदी, आपके स्नेह को प्रणाम.....!!!!
जी सौरभ सर जी.....आपने सही कहा.....ग़जल के मामले में तो बिलकुल आरोपित सा ही जान पडता है.....क्योंकि हम उच्चारित तो करते हैं श-हर (१२), क-हर(१२) और मे-हर-बां (१२२) लेकिन गजल में अगर ऐसा करे तो उसे बे-बहर मान लिया जाता है....वजह, शायद अरबी -फारसी की लिपि और उनके उच्चारण...खैर, मुझे इस मामले में अत्यंत अल्प ज्ञान है इसलिये वीनस भाई और तिलकराज कपूर सर जी की राय चाहता था इस विषय पर.....!!!
एक रोमांटिक ग़ज़ल पर इतनी चर्चा ने ग़ज़ल के खूबसूरत भावों को देखने ही नहीं दिया
क्या वजह क्या वजह कहर बरपा रहे
मेहरबां - मेहरबां से नजर आ रहे......मेहरबां - मेहरबां अब इसे आप लोग कैसे भी पढ़ें मेरी तरफ से तो वाह है
चूडियाँ यूँ तो बरसों से ख़ामोश थी
बात क्या है हुजूर आज खनका रहे....बहुत सुन्दर .........
चर्चित भाईजी, आप अपने इस पेज को रिफ़्रेश करें. बहुत कुछ पढ़ने को मिल जायेगा अब. और वह समीचीन है.
हिन्दी और उर्दू के शब्द अलग-अलग नहीं होते. हिन्दी ने बहुत कुछ आत्मसात किया हुआ है. हाँ, उर्दू में फ़ारसी और अरबी शब्दों की प्रधानता होती है या आरोपित की जाती है. कुछ लोग हिन्दी में संस्कृत शब्दों की प्रधानता पर बल देने लगते हैं. लेकिन यह सारा कुछ प्रयोगकर्ता के निजी परिवेश जन्य ही हुआ करता है.
शुभ-शुभ
गणेश भाई जी, अरुण भाई, संदीप भाई........आप सभी का आभार......सौरभ सर मैं क्षमा प्रार्थी हूं कि मैने मिसरों के वज्न नहीं दिये....आगे से मैं ध्यान रखूंगा.....अब बात मेहरबां - मेहरबां की....तो मुझे कुछ उर्दू के जानकारों ने बताया कि शह-र, कह-र, बह-र (२१) की तरह मेह-र-बां (२१२) गिना जाता है.....और ऐसा उर्दू में इस शब्द के उच्चारण के आधार पर किया जाता है.... बाकी इस मामले पर ज्यादा रोशनी के लिये यहां किसी उर्दू के जानकार से राय की अपेक्षा है....हो सकता है कुछ नया सीखने को मिल जाये.....!!!
जी जी भ्राताश्री वाकिफ हूँ
\\संदीप जी, ग़ज़ल का बहर विज्ञान क्या है, ध्वनि विज्ञान ही तो है, उच्चारण में लगने वाले समय के अनुसार ही तो वजन निर्धारित होता है ।\\
जी आदरणीय सही कहा आपने किंतु यदि सभी वर्ण उच्चारण मे नही आएँ तो फिर उसे लिखने का कोई अर्थ ही न रहेगा
हाँ मात्राएँ गिरा के पढ़ने से सहमत हूँ ............
जैसा कुछ प्रचलित शब्दों मे देखा गया है जैसा की गुरुदेव ने स्पष्ट किया है
सादर स्नेह यूँ ही बनाए रखिए
अरुण अनंत जी ....मेहरबां हिंदी शब्द नहीं है ....उर्दू शब्द है ।
संदीप जी, ग़ज़ल का बहर विज्ञान क्या है, ध्वनि विज्ञान ही तो है, उच्चारण में लगने वाले समय के अनुसार ही तो वजन निर्धारित होता है ।
//हो सकता है ऐसा पढ़ पाने से मात्राएँ या वज्न ठीक हो जाए किंतु शब्द ही बदल जाएगा//
बिलकुल सही ।
हार्दिक आभार आदरणीय गुरुदेव श्री एवं भ्राताश्री गणेश जी सच कहूँ तो मैंने भी हिंदी में साइलेंट पहली बार ही सुना है. हार्दिक आभार आप दोनों का.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online