क्या वजह क्या वजह कहर बरपा रहे
मेहरबां - मेहरबां से नजर आ रहे
ये दुपट्टा कभी यूँ सरकता न था
आज हो क्या गया यूँ ही सरका रहे
चूडियाँ यूँ तो बरसों से ख़ामोश थी
बात क्या है हुजूर आज खनका रहे
यूँ तो चेहरे पे दिखती थीं वीरानियां
औ अचानक बिना बात मुस्का रहे
दिल ये चर्चित का यूं ही बडा शोख है
देख लो आप ही इसको भडका रहे
- विशाल चर्चित
Comment
गणेश भाईजी का कहा स्पष्ट तो नहीं हो पाया, किन्तु, यह अवश्य है कि चेहरा को चहरा, मोहब्बत को मुहब्बत, मेहरबान को महरबान आदि-आदि कर पढना खूब प्रचलित है. आपने भी कोहरा का उदाहरण दिया है. इसी तर्ज़ पर कोहराम है जिसे कुहराम खूब-खूब किया जाता रहा है. आदि-आदि
उसी हिसाब से मेहरबान या मेहरबां महरबां हुआ है यहाँ.
जी गुरुदेव सच कहा आपने यहाँ पर भी उच्चारण संबंधी विषय है
इसीलिए भाषा में उच्चारण भी समय रहते सीख लेना आवशयक् है
ख़ासकर ग़ज़ल के मामले मैं, क्यूंकी कभी कभी उच्चारण ही मात्राएँ गिराने के लिए इशारे करती हैं
जैसे कोहरा या कुहरा इत्यादि
सादर आभारी हूँ आपका
गणेश बागी सर से आंशिक सहमत हूँ
क्यूंकी उर्दू और हिन्दी मे साइलेंट करने की विषय मे पहली बार सुन रहा हूँ
हो सकता है ऐसा पढ़ पाने से मात्राएँ या वज्न ठीक हो जाए किंतु शब्द ही बदल जाएगा
मेहरबां - मेहरबां .....इसे ऐसे उच्चारित करें ....
मे(ह)रबां - मे(ह)रबां
इसे बोलते वक्त ऐसे बोलते है कि ह लगभग विलुप्त (silence) हो जाता है ।
जी, संदीप भाईजी.. इस मेहरबां ने कई मेहरबानों को घनचक्कर बना डाला होगा.
इस ग़ज़ल को .. ऐ वतन ऐ वतन तुमको मेरी कसम / तेरी राहों में जां तक लुटा जाइंगे.. की तर्ज़ पर गाते चले जाइये.
आगे से चर्चित जी से पूर्ण अपेक्षा रहेगी कि साहब अपनी ग़ज़ल के साथ बह्र नही तो मिसरों का वज़्न अवश्य साझा करें, जैसा कि कई वरिष्ठ ग़ज़लकार इस मंच पर बिना शक़ोसुब्हा करते हैं.
महरबां - महरबां
गुरुदेव श्री इस वज्न में तो फिट नहीं बैठ रही है ग़ज़ल.
मेहरबां - मेहरबां ?
गणेश भाई.. . २१२ २१२ २१२ २१२
वजन क्या लिया है विशाल भाई ?
बहुत खूब भाई श्री विशाल चर्चित जी उम्दा गजल के लिए बधाई -
दिल ये चर्चित का यूं ही बडा शोख है
देख लो आप ही इसको भडका रहे -
आपका स्नेह एवं मार्गदर्शन बहुमूल्य है मेरे लिये सौरभ सर......!!!!
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