हास्य घनाक्षरी
आप तो पहाड़ हम माटी भुरभुरी वाली
धूल न हो जाएँ कहीं , गले न लगाइए
आपका शरीर है ये तन से अमीर बड़ा
दुबले गरीब हम रहम तो खाइए
माटी वाला घर मेरा और द्वार छोटा बना
टूट नहीं जाए ज़रा धीरे धीरे आइए
फूल थी जो आप कद्दू हो गयी हो आजकल
ऐसा क्या है खाया ज़रा हमें भी बताइए
संदीप पटेल “दीप”
Comment
हाहाहा
हास्यघनाक्षरी पर सुन्दर प्रयास आदरणीय संदीप जी,
माटी वाला घर मेरा और द्वार छोटा बना
टूट नहीं जाए ज़रा धीरे धीरे आइए..............इतने भारी भरकम दोस्त हों तो चौखट बड़ी लगवानी चाहिए न, घर न टूट जाए,हाहाहा
फूल थी जो आप कद्दू हो गयी हो आजकल
ऐसा क्या है खाया ज़रा हमें भी बताइए.............लोग पतले होने के तरीके पूछ रहे हैं, और आप मोटापे से इंस्पायरड..हाहाहा
हंसाने के लिए आभार और इस रचना के लिए बहुत बहुत बधाई
/फूल थी जो आप कद्दू हो गयी हो आजकल
ऐसा क्या है खाया ज़रा हमें भी बताइए/
बात बन गई संदीप जी ।
आदरणीय राम जी सादर
इसे कुछ इस तरह से सुधार किया है
फूल थी जो आप कद्दू हो गयी हो आजकल
ऐसा क्या है खाया ज़रा हमें भी बताइए
आदरणीय गणेश बागी सरजी सादर प्रणाम
सच कहा आपने ये मेरे लेखन की कमी ही है
जिसमे मैं ये स्पष्ट नही कर पाया
के मैने ये कहा है के
फूल जैसे आप ऐसी हो गयी हो आजकल
अर्थात मोटी हो गयी
जो उपरोक्त पदों मे स्पष्ट कर भी चुका हूँ
और पहले आप फूल जैसी थी
तो फिर कौन सी चक्की का खाना खाया आपने
सुधार करने की कोशिश करूँगा
आदरणीय गणेश सर से सहमत हूँ! .... हार्दिक बधाई संदीप भाई
//कहाँ लगी ऐसी चक्की हमें भी बताइये//
कैसी चक्की ?
हास्य घनाक्षरी पर बढ़िया प्रयास हुआ है, ध्यान रहे रचना में बात पूरी होनी चाहिए ।
//फूल जैसी आप ऐसी हो गयीं जो आजकल// भाई जी फूल कोमलता का प्रतिक है, और ऊपर में आप उन्हें भारी भरकम बता चूके हैं फिर "फूल" क्यों ?
सादर ।
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