सवैया...किरीट एवं दुर्मिल !!! श्री हनुमान जी !!!
कोमल कोपल बीच लुकावत, लंक निसाचर रावन आवत।
काढि़ कृपान नशावत कोपत, क्रोध बढ़े हनुमान छिपावत।।1
तिनका रख ओट कहे बचना, सिय रावन को डपटाय घना।
नहि सोच विचार करे विधना, अबला हिय हाय बचे रहना।।2
रावन कॅाप गयो तन से मन, आंख झुकाय कियो भुइ राजन।
पीठ दिखाय गयो जब रावन, सीतहि त्रास भयो धुन दाहन।।3
मन दीन मलीन हरी रट री, हनुमान सुजान दिये मुदरी।
लइ मातु बुझाय रही दुखरी,जय राम रमापति नाम धुरी।।4
राम सुनाम जपै कपि शोभत, भूख बढ़ाय रूके नहि रोकत।
मातु डरे रजनीचर डोलत, श्री हनुमान निसाचर धोवत।।5
रनवीर सभी घबराय भगे, रखि मान लड़े लतियाय पगे।
रजनीचर शान अक्षय टॅगे, बृहमा सर मेघ बॅधाय ठगे।।6
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ0 कुन्ती जी, जी मैम, श्री हनुमान जी के साथ ही एक तुलसी का पौधा भी होता है। वहां के लोगों में राम और हनुमान के प्रति बहुत श्रध्दा है। जिस पर हमें गर्व है। आपका बहुत-बहुत आभार, सादर,
केवल प्रसादजी नमस्कार ,बहुत सुंदर दोहे .mauritiusमें हर हिंदू घरों के आंगन में हनुमान जी की एक मंदिर होती है जिसपर
एक लाल झण्डा लहरता रहता है .बधाई स्वीकार करें.
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