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क्या न लिखूँ

दोपहर घर में बैठा मैं, कुछ,
सोच रहा,मस्तिस्क में आ रहे,
विषय कई,पर उलझन है की,
क्या लिखूँ और क्या न लिखूँ ।

शब्दों और वाणी में, आज,
अनुशासन है नहीं, फिर भी,
समय देशकाल को विचारकर,
क्या लिखूँ और क्या न लिखूँ ।

लिखने से तूफ़ान आ जाता,
लिखने से संबंध बिगड़ते,और,
सत्ता गिर जाती है ,इसीलिये,
क्या लिखूँ और क्या न लिखूँ ।

लिखने से मन के भाव आते,
कटु सत्य निकल जाता है,
आ जाता भूचाल इससे,अतः,
क्या लिखूँ और क्या न लिखूँ ।

पढ़ा जाता है,जो लिखा होता है,
सत्य है,जो लिख दिया जाता है,
लिखने पढ़ने को ध्यान रखकर,
क्या लिखूँ और क्या न लिखूँ ।

आडवाणी ने कुछ लिखा था,
जिन्ना की मज़ार पर,अलग-थलग,
पड़ गए,न होता ऐसा यदि सोच लेते,
क्या लिखूँ और क्या न लिखूँ ।

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Comment

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Comment by akhilesh mishra on April 11, 2013 at 5:28pm

धन्यवाद लक्ष्मण प्रसाद जी ।लेकिन आज के युग में हर कोई अपनी  बात कहना चाहता है पर दूसरे की बात सुनना नहीं चाहता ।

 

Comment by akhilesh mishra on April 11, 2013 at 5:26pm

धन्यवाद पटेल जी । आपने बिल्कुल सही कहा है ।

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 11, 2013 at 12:37pm

ये प्रश्न हमेशा से प्रश्न ही होता है के क्या लिखूं क्या न लिखूं
इस पर तो यही कहूँगा
कवि को सच लिखना चाहिए
सिर्फ़ सच वही उसकी कविताइ है वही उसका पांडीत्य
सादर

Comment by coontee mukerji on April 11, 2013 at 12:11am

समझदार वही जो वाणी वश में करके कूछ कहे .मैं लक्ष्मण जी की बातों का समर्थन करती हूँ . धन्यवाद

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 10, 2013 at 3:52pm

मन में आया लिख दिया,  विरोध अब संभाल,

सोच समझकर  लिख दिया,उन्नत होवे भाल |-लक्ष्मण 

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