एक खवाब जो देखा था
सपने जो आँखों में संजोये थे
अरमान जो दिल में बरसे थे
तरसे थे सारी रातें
बरसे थे आँखों से ये दरिया
तड़पी थी ये रूहें
बुलंद थे ये होंसले
तेज थी आँखों में
छूना था आस्मां को
पाना था सारा जहाँ
जीना था उन सपनों को
करना था कुछ ऐसा
बन कर दिखाना था सरे जहाँ को
करनी थी दुनिया मुट्ठी में
कुछ कर गुजरने की तमन्ना थी
कुछ बदलने की आंस थी
कुछ ऐसी ख्वाइश थी
बस देखा एक स्वप्न था
आँखों जो तरसा था
मन में जो उमड़ा था
ऐसी कुछ आरजू थी
कुछ चाहत थी
ना जाने कैसे बीते थे वो
ज़माने इस चाहत में
ओझल जो होने ना पे
ना जाने क्यूँ
होते हैं ये ख्व्वाब कुछ ऐसे
जो कभी पुरे होने ना पे
क्यूँ बुन लिए जाते हैं
ना जाने क्यूँ
रिश्तों की डोर
खून के रिश्ते
ना जाने कब घुटन देने लगे
ना जाने कब चेहरा खो गया
इस भेड़ चाल का कब हिस्सा बनवा दिया गया
इतने आगे आ खड़े हो गए पर बुलंदियों को छू ना पे
बस एक तमन्ना अधूरी रह गई
धुंधला गए सपने
प्रतिस्पर्धा का हिस्सा बनवा दिया गया
अपने ही ना समझ पाए
रिश्वत और काले धन ने ना जाने कितने ने खरीद लिए वो स्वप्न
अमूल्य थे वो सपना जो बिक ना पाए
बस एक चाहत थी
एक तमन्ना थी
कुछ ऐसी ख्वाइश थी
बस देखा एक स्वप्न था
आँखों जो तरसा था
मन में जो उमड़ा था
ऐसी कुछ आरजू थी
कुछ चाहत थी
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
Ky baat hai Rohitjee man bhar aaya! Ati sundar rachna
ख्वाहिशें जब हाशियों पे आके दम तोडती हैं तो मन छटपटाता है यही अन्तर्द्वन्द आपकी लेखनी में देखने को मिला ,बढ़िया प्रयास है पोस्ट करने से पहले प्रीव्यू में टंकण मिस्टेक देख कर ठीक कर लिया करें । बहुत बहुत बधाई आपको
very nice
आदरणीय रोहित जी:
//ना जाने क्यूँ
होते हैं ये ख्व्वाब कुछ ऐसे
जो कभी पुरे होने ना पे
क्यूँ बुन लिए जाते हैं//
भावनाओं की मार्मिक अभिव्यक्ति के लिए बधाई।
सादर,
विजय निकोर
आँखों में बसे खूबसूरत स्वप्नों का ज़िंदगी की कटुता के सामने घुटने टेक कर आँखों से गुम हो जाना और मन में अधूरेपन की एक चुभती कसक बन रह जाना ...बहुत मार्मिकता से अभिव्यक्त किया है आ० रोहित जी .. हार्दिक बधाई इस अभिव्यक्ति पर
कृपया पुनः अवलोकन कर टंकण त्रुटियों को सुधार लें
मन में विचारों का द्वन्द, सब कुछ पा लेने कि तड़फ, चाहत को धरातल नहीं मिलने का अफसोस कहे
या फिर वह प्राणी जो विचारों में खोया रहता है, पर प्रयत्न नहीं करता है | प्रस्तुति के लिए बधाई |
क्या खूब ,
सादर ,
अश्क
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