वो नन्ही नन्ही सी गोल मटोल,
आंखे इधर उधर निहारती ,
कुछ तलाशती सी लगती ,
न पा सकने की स्थिति,
समझ न पाती .............
कुछ कुछ कहना चाहती ,
पर कह न पाती,
शून्य मे निहारती सी लगती,
न कह पा सकने की स्थिति,
समझ न पाती............
खुशी से टिमटिमाती,
दुःख से टपकती,
डर से सहमती वो,
भाषा को पढ़ पाने की स्थिति,
समझ न पाती ................
प्यार दुलार अच्छे से,
पढ़ जाती और ,
सब कुछ वह मौन आँखों से ,
कह लेने की स्थिति ,
समझ न पाती...............
वो दादी की गाय की,
छोटी सी बछिया .....................
Comment
सभी सुधी जनो को मेरा हार्दिक धन्यवाद ।
इस सुन्दर रचना पर बधाई स्वीकारें .. आदरणीया
सुन्दर कविता हेतु बधाई स्वीकारें
आदरणीया अन्नपूर्ण जी
सादर
गाय की बछिया के लिए समर्पित इस संवेदनात्मक दृष्टी और उसकी अभिव्यक्ति के लिए हृदय से बधाई आ० अन्नपूर्णा जी
आप सबको हार्दिक धन्यवाद, एवं नवरात्रि की बधाई ।
प्यार दुलार अच्छे से,
पढ़ जाती और ,
सब कुछ वह मौन आँखों से ,
कह लेने की स्थिति ,
समझ न पाती...............
वो दादी की गाय की,
छोटी सी बछिया .................बड़ी प्यारी रचना आदरणीया !हार्दिक बधाई
प्यार दुलार अच्छे से,
पढ़ जाती और ,
सब कुछ वह मौन आँखों से ,
कह लेने की स्थिति ,
समझ न पाती...............
वो दादी की गाय की,
छोटी सी बछिया .................बड़ी प्यारी रचना आदरणीया !हार्दिक बधाई
बहुत ही सुंदर रचना आदरनेया
दादी की गाय की बछिया
बछिया तो चंचल हिरण सी होती है उस अवस्था मे
सुकुमारी से
गाँव की बरबस याद आ गयी
आजकल की पीढ़ी को बछिया देर मे समझ आएगा
बहुत बहुत बधाई हो आपको
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