नारी तू नहीं है अबला
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नारी तू नहीं है अबला
है शक्ति स्वयं पहचान
खुद को शोषित मान ले
फिर कौन करे सम्मान
दूषित जग से लड़ना होगा
खुद ही आगे बढ़ना होगा.
रूप धार कर रण चंडी का
अधिकार छीन लेना होगा
जगा आत्म अभिमान
नारी तू नहीं है अबला
है शक्ति स्वयं पहचान
क्या क्या नही तुझे सब कहते
कैसी कैसी फब्ती कसते
तुझे मूढ़ अज्ञानी कहते
दुर्गुण आठ सदा उर रहते
सब मिल करते बदनाम
नारी तू नहीं है अबला
है शक्ति स्वयं पहचान
पोखर सी ख़ामोशी क्यों
सागर सी तू रह मौन
कर बुलंद अपने को तू
आकाश झुके पूछे तू कौन
जग के इन झंझावातों में
तुझको स्वयं संवरना होगा
अब मत रहना अनजान
नारी तू नहीं है अबला
है शक्ति स्वयं पहचान
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आदरणीय प्रदीप सर जी सादर प्रणाम
ग़ज़ब का आत्मविश्वास जगाती रचना के लिए बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय प्रदीप कुमार कुशवाहा जी, अतिसुन्दर रचना। बधाई स्वीकारें। सादर,
आपकी बात सच है नारी को लड़ना होगा इसके बगैर आगे का रास्ता कठिन है। आपको बधाई इस आहवाहन के लिए।
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